संसद का विशेष सत्र क्यों ?
भारत के 16 विरोधी राजनैतिक दलों ने प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को खत लिखकर…
भारत के 16 विरोधी राजनैतिक दलों ने प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को खत लिखकर पहलगाम जनसंहार की आतंकवादी घटना के बाद पैदा देश की परिस्थितियों पर विचार करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। विपक्षी दलों की इस मांग के पीछे जो मंशा है वह पहलगाम घटना के बाद भारत द्वारा चलाये गये सैनिक ‘आॅपरेशन सिन्दूर’ पर चर्चा करने की है। विपक्ष इस मामले में सरकार से कई तरह के सवाल पूछ रहा है और कह रहा है कि इस आॅपरेशन में भारतीय वायुसेना के कितने लड़ाकू विमान गिरे। इसके साथ ही विगत छह मई को शुरू हुआ यह आॅपरेशन अचानक 10 मई को क्यों मुल्तवी कर दिया गया? इस सन्दर्भ में विपक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की उस घोषणा को भी सवालिया घेरे में ले रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत व पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराने में अमेरिका की प्रमुख भूमिका रही है और उसी ने मध्यस्थता कराकर संघर्ष विराम कराया। हालांकि विदेश मन्त्रालय की तरफ से इसका जवाब दिया जा चुका है, जिसमें उसने कहा था कि आॅपरेशन को मुल्तवी करने या संघर्ष विराम में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं रही है और दोनों देशों के सैनिक कमांडरों के बीच हुई बातचीत के बाद संघर्ष विराम किया गया। एेसा लगता है कि विपक्ष सरकार के इस मत से सहमत नहीं है क्योंकि विदेश मन्त्रालय के बयान के बाद भी कई बार श्री ट्रम्प ने अपने कथन को दोहराया है।
दूसरी तरफ प्रधानमन्त्री से लेकर रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह घोषणा कर चुके हैं कि आॅपरेशन सिन्दूर खत्म नहीं हुआ है, यह सिर्फ स्थगित हुआ है और यह जारी है। इन हालात में अगर विपक्षी दल संसद के विशेष सत्र की मांग कर रहे हैं तो इसमें राजनैतिक बढ़त प्राप्त करने की इच्छा छिपी हुई लगती है। स्वतन्त्र भारत में अभी तक सिर्फ एक बार 1962 में ही विपक्ष की मांग पर संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था जब चीन से भारत युद्ध हार गया था। इस सत्र को बुलाने की मांग तत्कालीन विपक्षी दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. जवाहर लाल नेहरू से मिलकर की थी। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तब जनसंघ के नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। इसके अलावा अभी तक भारत की संसद के जितने भी कुल 13 विशेष सत्र बुलाये गये वे सरकारों के कहने पर ही बुलाये गये। असल में संसद का विशेष एक दिवसीय सत्र तो 14 व 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को ही बुलाया गया था जिसमें अंग्रेजों के स्थान पर भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। उस समय विद्यमान संविधान सभा को ही अस्थायी लोकसभा में परिवर्तित कर दिया गया था। अतः स्वतन्त्र भारत की शुरूआत ही संसद के एक दिवसीय विशेष सत्र से हुई थी। परन्तु इसके बाद 1972, 77, 91, 92, 97, 2008, 12,15,17 व 2023 के विशेष सत्र सरकारों की तरफ से ही बुलाये गये।
पिछले विशेष सत्रों में सबसे ताजा 2023 का पांच दिवसीय विशेष सत्र मोदी सरकार ने तब बुलाया था जब संसद के नये भवन का श्रीगणेश किया जाना था। इसी सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित हुआ था। 1962 को छोड़ कर जितने भी विशेष सत्र बुलाये गये वे सभी सत्ता पर काबिज सरकारों की तरफ से ही बुलाये गये। इनमें सबसे महत्वपूर्ण 2008 का लोकसभा का जुलाई महीने में बुलाया गया दो दिवसीय सत्र था जिसमें अमेरिका से परमाणु करार के मुद्दे पर तत्कालीन मनमोहन सरकार ने सदन का विश्वास मत प्राप्त किया था। इससे पूर्व 2017 में मोदी सरकार ने माल व वस्तु कर (जीएसटी) से सम्बन्धित विधेयक को पारित कराने के लिए विशेष सत्र बुलाया था। इससे पूर्व 2015 में मोदी सरकार ने बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयन्ती के अवसर पर दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया था। जबकि 2012 में मनमोहन सरकार ने भारतीय संसद के 60 साल पूरे होने पर रविवार को एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाया था। प्रायः ये विशेष सत्र सरकारों द्वारा भारतीय गणतन्त्र के उज्ज्वल पक्षों को लेकर ही बुलाये गये। अतः विपक्ष की मांग की तुलना 1962 के विशेष सत्र से नहीं की जा सकती क्योंकि उस समय भारत-चीन के युद्ध में भारत की पराजय हो रही थी और चीनी सेनाएं उस युद्ध के दौरान भारत के असम राज्य के तेजपुर शहर तक आ गई थीं।
जबकि वर्तमान में भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तानी सेनाओं के छक्के छुड़ा दिये हैं और वहां स्थित नौ आतंकवादी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर डाला है और 11 पाकिस्तानी सैनिक हवाई अड्डों को भारी नुकसान पहुंचाया है। भारत इस आॅपरेशन सिन्दूर की मार्फत विजयी रहा है। इसी वजह से मोदी सरकार इस सत्र को बुलाये जाने पर सहमत नहीं दिखती है। पाकिस्तान के होश ठिकाने लाने के लिए उसने इस देश के साथ हुए सिन्धु नदी जल समझौते को भी ताक पर रख दिया है और चेतावनी दी है कि यदि पाकिस्तान की ओर से अब भविष्य में भारत की भूमि पर कोई भी आतंकवादी कार्रवाई होती है तो उसे लड़ाई का कृत्य समझा जायेगा। इसी से मोदी सरकार के पाकिस्तान के प्रति कड़े रुख को समझा जा सकता है। वैसे जिन 16 विपक्षी दलों ने सत्र बुलाये जाने की मांग पर हस्ताक्षर किये हैं उनमें देश के सबसे अनुभवी नेता व राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष श्री शरद पवार के दस्तखत नहीं हैं। श्री पवार नरसिम्हाराव सरकार के दौरान देश के रक्षामन्त्री भी रह चुके हैं और सैनिक मामलों पर उनकी पैनी पकड़ को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने तो आगे बढ़कर यह तक कह दिया कि विशेष सत्र की कोई आवश्यकता नहीं है।