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ट्रंप से मिल कर क्यों रुसवा हुए ये युवा भाजपा सांसद

04:08 AM Jul 06, 2025 IST | Shera Rajput

‘हर आदमकद शीशा अंदर से उतना ही तन्हां है
क्योंकि इसमें कैद तो हमारी-तुम्हारी ही दास्तां है’

‘ऑपरेशन सिंदूर’ की कथित धमक से वैश्विक दुनिया को बावस्ता कराने का भारत सरकार का उपक्रम कई दफे नए पेंचोखम में उलझ गया। जब भारतीय सांसदों का एक डेलिगेशन कांग्रेसी सांसद ​शशि थरूर के नेतृत्व में अमेरिका पहुंचा तो उसमें शामिल एक युवा भाजपा सांसद अपनी अति सियासी महत्वाकांक्षाओं को परवाज देने के चक्कर में बिलावज़ह सुर्खियों में आ गए। यह सांसद महोदय इस बात को लेकर सबसे ज्यादा परेशान थे कि इसी प्रतिनिधिमंडल में शामिल मिलिंद देवड़ा ने ट्रंप जूनियर से मिलने का टाइम पहले से तय कर रखा था और एक सौहार्दपूर्ण माहौल में उनकी जूनियर संग मुलाकात भी हो गई। सो, इस युवा सांसद ने भी ट्रंप जूनियर से मिलने की संभावनाएं टटोली, पर इसमें वे कामयाब नहीं हो पाए। तब जाकर इन्होंने एक बड़ा फैसला लिया और अपने साथियों से कहा कि ‘वे अब सीधे डोनाल्ड ट्रंप से ही मिलेंगे।’
इस कार्य में उन्हें सहयोग दिया उनके अमेरिका में रह रहे एक पुराने मित्र ने, जिनका आचरण भी रहस्यों से भरा माना जाता है। सांसद के मित्र उन्हें लेकर फ्लोरिडा स्थित ‘मार-ए-लागो’ ट्रंप आवास में पहुंच गए, जो 1985 से ही सीनियर ट्रंप के निजी आवास में शुमार है। इस मार-ए-लागो में कुल 126 कमरे हैं, जो 62,500 स्क्वायर फीट जगह में फैला हुआ है। 1994 के बाद ट्रंप ने इस जगह को एक क्लब में तब्दील कर दिया, कोई भी व्यक्ति एक भारी- भरकम फीस अदा कर इस क्लब का मेंबर बन सकता है।
ट्रंप परिवार भी विशिष्ट व्यक्तियों से यहां अपनी मुलाकात रखते हैं, सनद रहे कि एक वक्त ट्रंप भी जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबो और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से यहीं मिले थे। खैर लौट कर आते हैं इस भाजपा सांसद पर इन्हें ट्रंप से यह कहते हुए मिलवाया गया कि ‘यह भारत के राष्ट्राध्यक्ष के बहुत खास आदमी हैं।’ पर अपनी आदत के अनुसार ट्रंप का व्यवहार इस सांसद महोदय के साथ कतई भी शोभनीय नहीं कहा जा सकता, उनकी फौरी टिप्पणियां भी दिल दुखाने वाली थी। यह सांसद महोदय भी ‘बड़े बेआबरू होकर निकले तेरे कूचे से’ की तर्ज पर अपना सा मुंह लेकर फ्लोरिडा से वापिस लौट आए। उन्होंने इस घटना का जिक्र भी किसी से नहीं किया। पर खबरों के तो पंख होते हैं, ये नए परवाज भरते सात समंदर पार भारत के रायसिना हिल्स से टकरा गए। सूत्र बताते हैं कि पार्टी शीर्ष ने इन्हें तलब कर इनकी अच्छी क्लास लगाई है, वह भी पार्टी के तीन बड़े नेताओं की मौजूदगी में यह सब हुआ। एक राय तो इन्हें पार्टी से बाहर का दरवाजा दिखाने पर भी बनी थी, पर सांसद महोदय के अनुनय-विनय व माफी के बाद फिलहाल इन्हें अभयदान मिल गया लगता है।
बिहार सातवें आसमान पर
परीक्षा में बैठने के लिए जिस तरह छोटे बच्चों को मनाया जाता है, उनकी मनुहार की जाती है, उन्हें लॉली पॉप थमाया जाता है, कमोबेश बिहार के साथ भी यही सुलूक दुहराया जा रहा है, चुनावी परीक्षा में भले ही बिहार बैठेगा, पर फेल-पास तो सियासी दल ही होंगे न। सो, आगामी बिहार चुनाव के आलोक में सत्ताधारी दल की ओर से बिहार पर तोहफों की बारिश की जा रही है। इसी क्रम में 30 जून को ‘एयरपोर्ट ऑथरिटी ऑफ इंडिया’ और बिहार सरकार के बीच एक एमओयू साइन हुआ है जिसमें बिहार के समग्र विकास के लिए ‘उड़ान स्कीम’ को परवाज़ देने की खातिर बिहार में 6 नए एयरपोर्ट बनाने पर समझौता हुआ है। ये नए एयरपोर्ट होंगे-बीरपुर, सहरसा, मधुबनी, मुंगेर, वाल्मीकि नगर और मुजफ्फरपुर। इसके अलावा पूर्णिया एयरपोर्ट को चालू करने की दिशा में तेज प्रगति देखी जा सकती है।
सत्तारूढ़ दल चाहता है कि ‘बिहार चुनाव से पहले कम से कम सितंबर में पूर्णियां में उड़ान चालू हो जाए।’ पर अब तक इसकी राह में कई बाधाएं थीं। मसलन राज्य सरकार की जमीन देने में देरी की वज़ह से अप्रोच रोड का निर्माण ही नहीं हो पा रहा था, अब यह मामला निपट गया है, बाऊंड्री वॉल निर्माण के लिए जरूरी 15 एकड़ भूमि का भी अभी आवंटन नहीं हुआ है। पूर्णिया एयरपोर्ट को जल्दी शुरू करने के नजरिए से यह फैसला हुआ है कि पेरिफेरियल रोड और एप्रन एरिया पुराने एयरपोर्ट का ही इस्तेमाल कर लिया जाएगा, बाद में समय काल के साथ इसका विस्तार होगा या नए का निर्माण कर लिया जाएगा। पर पूर्णिया एयरपोर्ट के रनवे की लंबाई पटना या गया जैसे इंटरनेशनल एयरपोर्ट से भी बड़ा है, यहां रनवे की लंबाई 2800 मीटर है, इससे आशय यह निकाला जा सकता है कि यहां ए-320, ए-321 एयरबस जैसे बड़े एयरक्राफ्ट भी आसानी से ऑपरेट किए जा सकेंगे। जिस द्रुत गति से पूर्णिया एयरपोर्ट के निर्माण का कार्य प्रगति पर है यह अपने आप में एक केस स्टडी का विषय है।
दो महीने पहले 29 मई को स्वयं प्रधानमंत्री ने 1200 करोड़ रुपयों की लागत से निर्मित पटना एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का उद्घाटन किया था। पीएम से पटना से लगे बिहटा एयरपोर्ट के निर्माण को भी हरी झंडी दिखा दी थी, पटना का रनवे छोटा है इसीलिए यहां ब्रॉड बॉडी वाले एयरक्राफ्ट नहीं उतर सकते, बिहटा एयरपोर्ट इस कमी को पूरा कर सकता है। वहीं 600 करोड़ रुपयों की लागत से दरभंगा एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का निर्माण हो रहा है, जिसे ‘स्टेट ऑफ आर्ट’ का एक नायाब उदाहरण के तौर पर पेश करने की तैयारी है। पर इतने के बावजूद बिहार के भाजपा नेताओं की यह शिकायत आम है कि ‘सिर्फ एयरपोर्ट बनाने से काम नहीं चलेगा, बिहार को चाहिए कुछ नई इंडस्ट्री, ‘एग्रोबेस्ड’ आधारित कुछ नए उपक्रम ताकि यहां के लोगों के लिए रोजगार का सृजन हो सके और उन्हें राज्य से पलायन न करना पड़े।’
महागठबंधन की राजनीति पर लालू का कंट्रोल
लालू यादव अभी भी सियासत के माहिर खिलाड़ी की तरह आचरण कर रहे हैं, वे कांग्रेस को साथ रख कर भी उसे एक हद में रखना चाहते हैं। लालू के कहने और चाहने पर ही सीमांचल के एक बड़े नेता पप्पू यादव की खुल कर कांग्रेस में एंट्री नहीं हो पा रही, क्योंकि लालू पप्पू को अपने बेटे तेजस्वी के लिए एक बड़ी चुनौती मानते हैं। कांग्रेस के फायरब्रांड नेता कन्हैया की ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पद यात्रा पर लालू के चाहने पर ही रोक लग गई है। प्रदेश में राहुल गांधी की अति सक्रियता को भुनाने के लिए कांग्रेस लालू से गठबंधन के तहत 60 सीटें मांग रही है, 58 सीटों पर तो बाकायदा कांग्रेस ने अपने ऑब्जर्वर भी भेज दिए हैं। पिछले दिनों बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मिल कर पटना गए हैं, उनसे कहा गया है कि ‘कांग्रेस इस दफे के बिहार विधानसभा चुनाव में संसाधनों की कोई कमी नहीं आने देगी।’
वहीं लालू वीआईपी के मुकेश साहनी के मार्फत कांग्रेस पर शह-मात का दबाव बना रहे हैं। सहनी जिनका राज्य के 15 विधानसभा सीटों पर बमुश्किल से प्रभाव है, वह भी कांग्रेस की तर्ज पर 60 सीटों की डिमांड कर रहे हैं। लालू की रणनीति का यह भी एक हिस्सा है, वे महागठबंधन में शामिल छोटी पार्टियों को डर दिखा कांग्रेस पर नकेल कसे रखना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर लालू जानते हैं कि साहनी के पास अपनी पार्टी सिंबल से लड़ाने के लिए योग्य उम्मीदवार का टोटा है, तो वे साहनी को आवंटित कई सीटों पर अपरोक्ष तौर पर राजद के उम्मीदवार उतार सकते हैं, यानी चित्त भी लालू की और पट भी उनकी।
क्या ओवैसी बनाएंगे तीसरा मोर्चा?
बिहार का चुनावी महासमर हर बदलते दिन के साथ और भी दिलचस्प होता जा रहा है। इस बार कई छोटी पार्टियों ने मसलन प्रशांत किशोर की जन सुराज, केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने इस चुनावी महासंग्राम को दिलचस्प बनाने का काम किया है। अब ताजा-ताजा इस लड़ाई में एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भी कूद गए हैं।
ओवैसी की पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने हालिया दिनों में राजद सुप्रीमो लालू यादव को एक पत्र लिख कर उनसे आग्रह किया है कि ‘उनकी पार्टी भी महागठबंधन का एक हिस्सा बनने को तैयार है।’ पर कहते हैं लालू और उनके पुत्र तेजस्वी ने इस पत्र को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है। इससे नाराज़ होकर ओवैसी ने अब बिहार में तीसरे मोर्चे की हुंकार लगाई है और कहा है कि ‘यह तीसरा मोर्चा बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है।’ कमोबेश यही ऐलान आदमी पार्टी भी पहले ही कर चुकी है, यानी एक के बाद एक भाजपा को मुस्कुराने के लिए कई वज़ह मिलती जा रही हैं, क्योंकि उनके एक अहम खिलाड़ी पीके पहले से कहीं मजबूती से चुनावी मैदान में डटे हैं।
...और अंत में
मध्य प्रदेश में नौकरशाही किस हद तक बेलगाम होती जा रही है, इसका एक नायाब उदाहरण देखिए। कोई तीन महीने पहले 12 अप्रैल 2025 को एक पूर्व विधायक किशोर समरीते ने मंत्री संपतिया उइके पर एक हजार करोड़ रुपयों के कमीशनखोरी का गंभीर आरोप लगाते हुए इस पत्र की कॉपी पीएमओ, मुख्य सचिव, लोकायुक्त और प्रमुख सचिव को भेज दी। लोकायुक्त ने शिकायत को निराधार बताते हुए इसकी जांच की कोई जरूरत नहीं समझी।
मुख्य सचिव को जब 24 अप्रैल को यह पत्र प्राप्त हुआ तो बगैर ज्यादा माथा-पच्ची के इस पर जांच का ठप्पा लगा पत्र को अवर सचिव को प्रेषित कर दिया। अवर सचिव ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता को यह पत्र मार्क कर दिया, इन्होंने जल निगम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर और इंजीनियरों से सात दिनों के अंदर जवाब देने को कहा। जब इस बात का संज्ञान मंत्री को हुआ तो उन्होंने पूछा कि ’किस आधार पर जांच बिठाई गई है? इसकी पुष्टि नहीं हो रही?’ बाद में प्रशासन को अपनी भूल का आभास हुआ और जांच पलट दी गई, कहा गया कि ‘शिकायत निराधार है।’

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