ये नेतागण मुस्कराते क्यों नहीं?
पूरे विश्व में इन दिनों नकारात्मक माहौल फैला है। इन दिनों कहीं भी किसी भी…
पूरे विश्व में इन दिनों नकारात्मक माहौल फैला है। इन दिनों कहीं भी किसी भी क्षेत्र में ताज़ी हवा नहीं बह रही। जले-भुने राजनेता, जले-भुने टीवी एंकर, जले-भुने प्रवक्तागण, गली-सड़ी भाषा का पथराव। किसी भी प्रमुख नेता के चेहरे पर कोई दमक या ऊर्जा दिखाई नहीं देती। मेरी प्रपौत्री की उम्र 6 वर्ष है। पूछती है बड़े दादा। ये नेतागण कभी मुस्कराते या हंसते क्यों नहीं? राहुल गांधी, सोनिया, योगी आदित्यनाथ, केजरीवाल, मल्लिकार्जुन खड़गे को तो कभी किसी ने मुस्कराते भी नहीं देखा।
यही स्थिति विश्व पटल पर भी है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन, अमेरिकी-बॉस ट्रम्प, जेलेंस्की, शाहबाज़ शरीफ कोई भी तो संतुलित या खिलखिलाता दिखाई नहीं देता। बकौल दुष्यंत कुमार ः
अब किसी को भी नज़र
आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं
इतने इश्तिहार,
रोज़ अखबारों में पढ़कर
यह ख्याल आया हमें
इस तरफ आती तो
हम भी देखते फसले बहार
यानि कहीं भी राहत, संतुष्टि वाली या सुखद हवा नहीं बहती दिखाई देती है। अब ऐसी शख्सियतों को हम अपना आदर्श नायक भी कैसे मानें? कुछ प्रश्नों के कोई उत्तर मिल ही नहीं पाते। इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिलेगा कि आखिर सादगी, पारदर्शिता और निष्कलंकता की प्रतिमूर्ति बने अरविंद केजरीवाल ने अपने आवास पर इतना खर्च कैसे करवा डाला? इस प्रश्न का भी उत्तर नहीं मिलेगा कि आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अब गाज़ा पर क्यों कब्ज़ा करना चाहते हैं?
आरोप यह भी है कि ट्रम्प मूल रूप से रियल एस्टेट कारोबारी भी हैं और कॉलोनाइजर्स भी, इसलिए टॉवर निर्माण में उनकी दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही है। विश्वभर में उनकी सम्पत्तियां व आवासी टॉवर फैले हैं। यहां तक कि भारत में भी गुरुग्राम व पुणे में उनके टॉवर हैं। इन दोनों में फ्लैटों की कीमतें करोड़ों में हैं। आखिर अब्राहम लिंकन, रुज़वेल्ट, कैनेडी व ओबामा जैसे आदर्श राष्ट्रपतियों के वारिस ट्रम्प इतने बड़बोले, रुखे, लोभी व संवेदनशील क्यों हैं?
स्थिति रूस व चीन में भी अच्छी नहीं है। टालस्टाय, गोर्की, चेखव, तुर्गदेव और सोल्ज़ेनित्सिन वाला रूस वर्षों से एक ऐसे नेता की मुट्ठियों में जकड़ा है जो मूल रूप से एक जासूस है। पुतिन की पृष्ठभूमि कभी भी एक जुझारू महानायक वाली नहीं रही। उन्होंने अपने ही देश में अपने प्रतिद्वंद्वियों को चुन-चुनकर ठिकाने लगाया है। अब अपने देश को एक ऐसे देश के खिलाफ युद्ध में झोंके हुए हैं जो कभी सोवियत संघ का ही एक सदस्य देश था। अब पुतिन पुराने सोवियत संघ की बहाली का सपना भी देखने लगे हैं। वे चाहते हैं कि वे सभी देश, जो पहले सोवियत संघ का अंग थे, वापिस उसी तरह के नए-नए राष्ट्र के रूप में उभरकर आएं ताकि नया सोवियत संघ अपनी पुरानी गरिमा बहाल कर सके।
उधर, ट्रम्प महोदय, गाज़ा-पट्टी पर कब्जे के अलावा एक और रोडमैप बिछाने में लगे हैं। उन्होंने अपने अटार्नी जनरल को आदेश दिया है कि अमेरिका में चर्च-विरोधी तत्वों का भी सफाया किया जाए। यानि वह ईसाइयत की बहाली चाहते हैं। ट्रम्प कहते हैं, ‘मैं ‘गॉड’ को वापिस लाना चाहता हूं ताकि देश को उनकी शरण में रहने का अवसर मिले’। ट्रम्प ‘गॉड’ को फिर से क्यों बुलाना चाहते हैं, यह स्पष्ट नहीं है। यानि चारों ओर ‘सनक’ का साम्राज्य फैलता जा रहा है। ‘आदर्श नायक’ नाम की कोई भी प्रजाति किसी भी देश में दिखाई नहीं देती।
लेकिन इस सारे अराजक माहौल में हमारा महाकुम्भ सभी तरह की आलोचनाओं के बावजूद पूरी तरह से समापन की ओर बढ़ता दिखाई देता है। महाकुम्भ के आयोजन में जहां एक ओर शाही संगम स्नान अपनी छटा बिखेर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ‘एआई’ अर्थात् आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भी धूम है। बाबाओं, साधुओं, महामण्डलेश्वरों के झोलों में उनके ‘लैपटॉप’ हैं और साथ ही साथ अत्याधुनिक ‘गैजेट्स’ से सम्पन्न संयंत्र भी। फिलहाल यह सही-सही अनुमान लगाना भी सम्भव नहीं है कि हम ऐसे माहौल में किस दिशा की ओर अग्रसर हैं। क्या विश्व-शांति की परिकल्पना समाप्त होने को है? इस अराजकता के माहौल में हम ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के आदर्श को बहाल कैसे कर पाएंगे?