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देश आहत क्यों है?

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08:35 AM Feb 21, 2019 IST | Desk Team

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पुलवामा में आतंकी हमले के बाद समूचे राष्ट्र में आक्रोश की ज्वाला धधक रही है। हर कोई शहादत का बदला चाहता है लेकिन एक के बाद एक कुतर्कों से भरी बयानबाजी से देश का जनमानस आहत है। पहले क्रिकेटर से सियासतदान बने अपने लच्छेदार भाषणों के कारण लोकप्रिय हुए नवजोत सिंह सिद्धू की बयानबाजी ने आहत किया, फिर कामेडियन कपिल शर्मा उनका बचाव करते नजर आए। कोई कह रहा है कि ‘‘हर रोज भुखमरी, बेरोजगारी, डिप्रेशन जैसी वजहों से मरते हैं। ऐसा सिर्फ हमारे देश में नहीं होता, पूरी दुनिया में लोग मरते हैं, तब क्या आप अपनी जिन्दगी रोक देते हैं। क्या सिर्फ शोक मनाना ही काम है।’’ और तो और फिल्म जगत से राजनीति में पदार्पण करने वाले कभी दक्षिण भारत के सुपर स्टार रहे कमल हासन ने अपना ही राग अलापना शुरू कर दिया।

कमल हासन ने तो भारत सरकार से सवाल किया कि वह जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह क्यों नहीं करा रही है? आखिर सरकार किससे डर रही है। अगर भारत ने अपने आपको अच्छा देश साबित करना है तो उसे इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं कमल हासन ने तो पाक अधिकृत कश्मीर को आजाद कश्मीर बता दिया। जब कमल हासन जनता के निशाने पर आए तो उनकी पार्टी मक्कल निधि मय्यम की तरफ से बयान जारी कर कहा गया कि कमल हासन के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। कमल हासन ने केवल इतना कहा था कि कश्मीर के लोगों से बातचीत करनी चाहिए और उनसे पूछा जाना चाहिए कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? एक बीजद विधायक ने तो शहीद के पार्थिव शरीर के निकट बैठने को लेकर शहीद के परिजन से ही दुर्व्यवहार कर डाला। आज एक के बाद एक नौसिखिये बयानबाजी कर रहे हैं।

महाराष्ट्र में एक नेता को तो यह कहते हुए सुना गया कि राष्ट्रवाद का बुखार तेज है, इसे वोटों में तब्दील करो। देश में ऐसी बयानबाजी कर हम किस तरह का वातावरण सृजित कर रहे हैं। मुम्बई हमला हो या आतंकवादियों से मुठभेड़, उन पर जमकर सियासत होती रही है। यदि नेता ईमानदार होते तो देश के नेताओं के प्रति इतनी वितृष्णा नहीं होती। कभी किसी नेता का बयान आ जाता है कि जो फौज में जाता है उसे पता होता है कि वह मरने के लिए ही जा रहा है। नेताओं की बेकाबू जुबान से देश पहले भी कई बार घायल हो चुका है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन के बढ़ते प्रचलन से देश में जहर घोलने का काम किया जा रहा है। देश फेक न्यूज से पीड़ित हो रहा है। सोशल मीडिया की विश्वसनीयता पर संकट आ खड़ा हुआ है। केवल राजनीति की जा रही है। प्रसिद्ध समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक राजनीति है।

धर्म का काम है अच्छाइयों की ओर प्रेरित करना, जबकि राजनीति का काम है बुराइयों से लड़ना। धर्म जब अच्छाई न करे, केवल उसकी स्तुति ही करता रहे तो वह निष्प्राण हो जाता है और राजनी​ति बुराइयों से लड़ती नहीं, केवल निन्दा भर करती है तो वह कलही हो जाती है। आज धर्म निष्प्राण हो चुका है और राजनीति मर्यादाएं तोड़ती नजर आ रही है। आजादी के बाद भी कुछ दशकों तक राजनीति में काफी हद तक मर्यादाएं कायम थीं। राष्ट्रहित के मुद्दों पर सभी राजनीतिक दल और नेता नियंता व्यक्तिगत और दलगत नीतियों, स्वार्थों से ऊपर उठकर एकमत हो जाया करते थे। वैचारिक मतभिन्नता के बावजूद व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी और दलगत नीतियों, स्वार्थों से ऊपर उठकर एकमत हो जाते थे। भले ही विपक्ष ने पुलवामा आतंकी हमले के बाद सरकार को पूरा समर्थन दिया है लेकिन सभी राजनीतिक दलों के प्रवक्ता टीवी शोज में एक-दूसरे की धज्जियां उड़ाते नजर आ रहे हैं। एक-दूसरे पर व्यक्तिगत टिप्पणियां और शालीनता की हदें पार करते दिखाई दे रहे हैं।

ऐसी प्रतिस्पर्धा तो पहले कभी नहीं देखी गई। राजनीति का उद्देश्य केवल वोट बैंक नहीं होता बल्कि समाज और राष्ट्र को सही दिशा देना भी होता है। राजनीति को तो सांप की कुंडली की तरह जकड़ा जा चुका है और कोई भी उच्च आदर्शों को आत्मसात करने के लिए तैयार नहीं है। कोरी बयानबाजी करने वाले लोगों को शहीदों के परिवारों की पीड़ा का कोई अहसास ही नहीं है। क्या कोई देशवासी चाहेगा कि कश्मीर की एक इंच भूमि  भी पाकिस्तान के हाथ में चली जाए, कौन देश के जवानों की शहादत को सलाम नहीं करना चाहेगा, हर देशवासी राष्ट्र के स्वाभिमान के साथ जीना चाहता है लेकिन कुछ लोगों को शहीदों के खून की कोई चिन्ता नहीं है। कश्मीर में जनमत संग्रह की बात याद आ रही है। देशवासियों से मेरी अपील है कि अनर्गल बयानबाजी करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दें। जरा सोचिये-
क्या हो हमारा राष्ट्रबोध?
क्या हो हमारा कर्त्तव्यबोध?
निर्णय आपका? आप अपने कर्त्तव्य का नि​र्धारण स्वयं करें।

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