गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी शताब्दी पर सियासत क्यों?
गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। गुरु जी की शहादत को नवम्बर माह में 350 साल होने जा रहे हैं मगर अफसोस कि जिन लोगों को गुरु जी की शहादत का प्रचार करना चाहिए था वह अपनी जिम्मेवारी का निर्वाह सही ढंग से नहीं कर पाए और आज उन लोगों के द्वारा शहीदी शताब्दी को सियासत की भेंट चढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं। इतना ही नहीं इसके लिए श्री अकाल तख्त साहिब और वहां के जत्थेदार का भी खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि सिख कौम के लिए सही नहीं है। इतिहास में जब भी कोई शताब्दी आई तो उसे उसी स्थान पर मनाया गया जहां से उसका इतिहास जुड़ा हो। भाव 1999 में खालसा पंथ के 300 साल होने पर श्री आनंदपुर साहिब की धरती पर समागम किए गए और समूचे सिख पंथ ने वहां पहुंचकर शताब्दी समारोह में भाग लिया। इसी प्रकार गुरु गोबिन्द सिंह जी का 350वां प्रकाश पर्व तख्त पटना साहिब की धरती पर मनाया गया। अब गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी पर्व नवम्बर में आ रहा है। गुरु तेग बहादुर जी की शहादत का फरमान दिल्ली के लाल किला से सुनाया गया और चादनी चौक में गुरु जी को शहीद किया गया। गुरु जी के धड़ का संस्कार भी दिल्ली में गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब में हुआ इस हिसाब से गुरु जी की शहीदी शताब्दी के मुख्य समागम दिल्ली में होने चाहिएं।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा अपनी जिम्मेवारी का बाखूबी निर्वाह करते हुए शहीदी शताब्दी मनाने हेतु देश भर से धार्मिक जत्थेबंिदयों की एक मीटिंग दिल्ली में बुलाई गई थी जिसमें शिरोमिण गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की ओर से गुरचरन सिंह ग्रेवाल ने भाग लेकर मिलकर शताब्दी मनाने पर सहमति भी दी थी मगर ना जाने अब ऐसा क्या हो गया कि शिरोमिण गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अलग तौर पर पंजाब में शहीदी शताब्दी मनाने की बात कर रही है। इतना ही पंजाब सरकार के द्वारा जब शहीदी शताब्दी को पंजाब में सरकारी स्तर पर मनाने की बात कही तो उसके अगले ही दिन शिरोमिण कमेटी के प्रभावहीन कार्यरत जत्थेदार अकाल तख्त साहिब ने पंजाब के मुख्यमंत्री को गुरसिखी का पाठ पढ़ाते हुए अमृतपान करने की सलाह दे डाली। एक ओर तो इस कार्य के लिए जत्थेदार अकाल तख्त बधाई के पात्र हैं जिन्होंने हिम्मत दिखाकर मुख्यमंत्री को सिखी स्वरुप में आने की बात कही मगर उनके इस बयान के पीछे पूरी तरह से राजनीति की बास आ रही है। जत्थेदार अकाल तख्त कोे पंजाब के मुख्यमंत्री का सिखी स्वरुप सरकार के शहीदी शताब्दी मनाने के ऐलान के बाद ही क्यों दिखाई दिया जो कि जत्थेदार की कार्यशैली पर कई तरह के सवाल खड़ा करता है। अच्छा होगा जत्थेदार अकाल तख्त शिरोमिण कमेटी प्रधान को एकजुटता का पाठ पढ़ाएं और अलग से राग अलापने की जगह दिल्ली मे हो रहे समागमों के लिए सहयोग देकर शताब्दी मनाने के लिए कहें।
सिख लड़कियों की गैर सिख से शादी बना विवाद
सिख कौम के पहले से ही अनेक मसले ऐसे हैं जिनका समाधान नहीं हो पा रहा है ऐसे में हजूर साहिब नांदेड़ की संगत के द्वारा एक नया विवाद कौम में खड़ा कर दिया है जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि सिख लड़की की गैर सिख लड़के से शादी होने पर उस परिवार से हर तरह नाता तोड़ लिया जाएगा। इस फैसले को उन्होंने तख्त हजूर साहिब के जत्थेदार ज्ञानी कुलवंत सिंह जी के पास अन्तिम निर्णय के लिए भेजा है। हालांकि अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं आया है मगर यह अपने आप में एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। आज भी अनेक ऐसे सिख परिवार हांेगे जिनमें गैर सिख परिवारों के साथ खून का रिश्ता होगा क्योंकि पहले के समय में हर गैर सिख परिवार घर के बड़े बेटे को सिख बनाया करता था। इतना ही नहीं ज्यादातर गैर सिख गुरुघर में पूरी तरह से आस्था रखते हैं और अपने हर कार्य को गुरु मर्यादा अनुसार ही करते हैं, इस फैसले के बाद वह लोग क्या करेंगे। सिख बुद्धिजीवी जतिन्दर सिंह साहनी का मानना है कि सिख लड़की के मामले में ही फैसला क्यों, अगर लेना ही था तो सिख लड़के पर भी लेना चाहिए था जो सिख लड़के गैर सिख लड़कियों से शादी करते उनका क्या होगा। सिख धर्म को गुरु साहिब ने मानस की जात सबै एक पहचानने की बात कही थी। इतना ही नहीं सिखी तो गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अमृतपान करवाकर सिखों को दी उससे पहले तो सभी गैर सिख ही थे। इसलिए बेहतर होता अगर यह लोग सिख युवकों के केश कत्ल करने पर चिन्ता करते, सिखों के ईसाईकरण पर चिन्ता करते मगर इन्होंने सिख लड़कियों की शादी पर बयान देकर केवल नए विवाद को जन्म दिया है।
सिखों का एक स्कूल ऐसा भी
आमतौर पर देखने में आता है कि सिखों के जितने भी स्कूल चल रहे हैं उनकी हालत ज्यादा अच्छी नहीं है जिसके चलते स्वयं सिख अपने बच्चों को वहां पढ़ाना पसन्द नहीं करते। मगर पंजाब के धुरी में गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर चलता एक स्कूल ऐसा भी है जहां एक छत के नीचे 8200 बच्चे आस पास के 120 से अधिक गांवों से आकर शिक्षा ले रहे हैं। करीब 200 किले में बने इस स्कूल में मैनेजमेंट के नाम पर मात्र 2 से 3 लोग हैं जिनमें पंजाब के पूर्व डी आई जी परमजीत सिंह हैं जिनके मागदर्शन और प्रिंसीपल सतबीर सिंह जिन्हें खासतौर पर दिल्ली से लाया गया है उनके द्वारा दिये जा रहे निर्देशों पर स्कूल स्टाफ कार्य करता आ रहा है। स्कूल की खासियत यह है कि यहां पर एक भी सिफारिशी टीचर यां बच्चा भर्ती नहीं किया जाता जिसके परिणाम ही स्कूल इस मुकाम तक पहुंचा है। बीते दिनांे मुझे स्कूल देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसे देखकर गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूलों के शुरुआती दौर की याद ताजा हो गई जब इन स्कूलों में देश के प्रधानमंत्री से लेकर बड़े राजनेताओं की सिफारिश पर दाखिला मुश्किल से मिला करता था। टीचरों के सिफारिशी भरती होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था मगर समय के साथ साथ स्कूलों का प्रबन्ध ऐसे हाथों मंे चला गया जिन्होंने अपनी कुर्सियां बचाने की खातिर स्कूलों को उन लोगों के हवाले कर दिया जिन्हें एजुकेशन यां स्कूल चलाने का कोई ज्ञान नहीं था। उन चेयरमैनों और सदस्यों के द्वारा अपने पहचान के सिफारिशी टीचर्स भर्ती किए जाने लगे। जरुरत से ज्यादा भर्तियां होने के चलते तनख्वाह समय से ना मिलने और विपक्षी दलों के इशारे पर टीचर्स और स्टाफ ने कोर्ट का रुख अख्तियार कर लिया। जिसके बाद से मानो स्कूलों का पूरी तरह बर्बादी का दौर शुरु हो गया। आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि कोर्ट के द्वारा प्रबन्धकों को स्कूलों की जायदाद बेचकर स्टाफ का बकाया देने की बात कही जा रही है हालांकि मौजूदा प्रबन्धक साफ कर चुके हैं कि एक ईंच जमीन भी बेची नहीं जाएगी और सभी स्टाफ का पूरा बकाया भी दिया जाएगा जिसके लिए एक शैडयूल कोर्ट में दिया गया है जिस पर कोर्ट के द्वारा सहमति भी जताई गई है। इसके साथ ही प्रबन्धकों का यह भी दावा है कि जब से उनके पास मैनेजमेंट आई है 140 करोड़ रुपये गुरुद्वारा से स्कूलांे को दिया जा चुका है।
अमरीका सरकार की खालिस्तानियों पर कार्रवाई
पिछले कुछ दिनों से जिस प्रकार अमरीका की सरकार के द्वारा खालिस्तानियों के ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है उसे भारत में रहते सिख समुदाय के द्वारा सही ठहराया जा रहा है क्योंकि खालिस्तानियों के द्वारा पाकिस्तान की शह पर केवल भारत में ही नहीं बल्कि अमरीका जैसे देशों में भी आतंकी गतिविधियों को अन्जाम देने की निरन्तर कोशिशें की जाती हैं। इस बात से कभी इन्कार नहीं किया जा सकता कि गुरपतवंत सिंह पन्नू जैसे खालिस्तानी पाकिस्तानी एजेन्सियों की मदद और उनके द्वारा की जा रही आर्थिक मदद से ही अपनी गतिविधियों को अन्जाम देते हैं मगर अब तो खालिस्तािनयों और गैंगस्टरों के बीच भी सम्बन्ध होने की बात सामने आने लगी है हालांकि पन्नू जैसे लोग इसे भारतीयांे एजेन्सियांे की उपज बताते दिख रहे हैं। वहीं सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनैशनल के राष्ट्रीय सैक्रेटरी जनरल गुणजीत सिंह बख्शी का मानना है कि केवल अमरीका ही नहीं कनाडा सहित अन्य देशों को भी खालिस्तानियांे पर नकेल कसनी चाहिए जिससे जहां एक ओर खालिस्तानी गतिविधियों पर अंकुश लगेगा वहीं पाकिस्तान जैसे आतंकी देशों की भी कमर टूटने लगेगी।