गरबा में हंगामा क्यों?
भारतीय संस्कृति ने सदैव ही सभी संस्कृतियों और सभी धर्मों की श्रेष्ठ चीजों को अपने में समाहित करके उसको श्रेष्ठ बनाया है।
12:15 AM Oct 07, 2022 IST | Aditya Chopra
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भारतीय संस्कृति ने सदैव ही सभी संस्कृतियों और सभी धर्मों की श्रेष्ठ चीजों को अपने में समाहित करके उसको श्रेष्ठ बनाया है। सर्वधर्म सद्भाव और गंगा-जमुनी संस्कृति ही भारत की पहचान है। इतिहास साक्षी है कि भारत में कई धर्मों के लोग रहते हैं। पारसी समुदाय ने भी भारत में आकर शरण ली थी और यह समुदाय भारत की संस्कृति में ऐसे घुल गया जैसे पानी में नमक। रामलीलाओं के पात्रों की वेशभूषा से लेकर मंच सज्जा और रावण के विशाल पुतलों का निर्माण मुस्लिम बंधु ही करते आ रहे हैं। गुजरात में ज्यादातर नवरात्रि डांडिया मुस्लिम लोग ही बनाते आ रहे हैं। आज भी कई स्थानों पर माता के जागरणों में सजावट का काम मुस्लिम ही करते हैं। आज भी श्रीराम की बारात निकलने पर उनका स्वागत मुस्लिम भाई ही करते दिखाई देते हैं। लेकिन इन दिनों गुजरात के सांस्कृतिक महोत्सव गरबा पंडालों में लगातार हंगामे की खबरें मिल रही हैं। अहमदाबाद के गरबा पंडाल में आए मुस्लिम युवकों को पकड़ कर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने जमकर पिटाई की। उज्जैन में भी गरबा आयोजन में तीन मुस्लिम युवकों को पीटा गया। इंदौर में भी ऐसा ही बवाल हुआ। गरबा पंडालों में हंगामे को लेकर आम लोगों में और सोशल मीडिया पर जबरदस्त चर्चा चल रही है।
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इन सब घटनाओं के वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए। मुस्लिम युवकों के विरुद्ध केस भी दर्ज किए जा रहे हैं। कोरोना महामारी के दो साल के बाद इस बार राज्यों में नवरात्रि और गरबा के उत्सव भव्य ढंग से मनाए जा रहे हैं। हंगामों को देखकर कई संगठनों ने गरबा महोत्सवों में मुस्लिम युवाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी है। वास्तव में गुजरात का गरबा डांडिया का संबंध संस्कृति से है। भारतीय उत्सवों में लोकनृत्यों का हमेशा महत्व रहा है। संचार क्रांति आने के बाद अब पूरा देश एक-दूसरे से इतना जुड़ गया है कि अब उत्सव हर लोग मनाने लगे हैं। पंजाब के पॉप संगीत की पूरे देश में धूम है। गुजरात से लेकर दक्षिण भारत के लोग भी पंजाबी गीतों पर थिरकते नजर आते हैं। पंजाब, हरियाणा समेत उत्तर भारत में गरबा डांडिया पहले से कहीं अधिक देखे जा रहे हैं। क्योंकि इन उत्सवों का संबंध विशुद्ध संस्कृति से है, इसलिए इनमें शामिल होने के लिए किसी समुदाय विशेष के लोगों पर पाबंदी नहीं लगाई जानी चाहिए। व्यक्ति किसी जाति या धर्म का हो अगर उसे गरबा डांडिया पसंद है तो वह करे। अगर किसी को भांगड़ा या कोई और नृत्य करना है तो उसे इसकी अनुमति है।
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1990 के दशक से पहले गुजरात के गरबा डांडिया कार्यक्रमों में हिन्दू-मुस्लिम कोई मुद्दा नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे देश में जाति और धर्म की राजनीति शुरू हुई तब से हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा राजनीतिक रूप लेता गया। अब यह मुद्दा जाति और धर्म के आधार पर सियासी बन चुका है। पिछले कुछ सालों के दौरान लव जेहाद मुस्लिम युवाओं द्वारा नाम बदलकर हिन्दू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाने और उनसे शादी कर उनका धर्म परिवर्तन कराने के कई मामले सामने आने के बाद इस पर एक लम्बी बहस छिड़ गई। कई जगह हिन्दू युवतियों की नृशंस हत्या भी की गई। आरोप यह है कि मुसलमान युवा नवरात्रि और गरबा डांडिया को लव जेहाद के साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। अहमदाबाद में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कुछ मुस्लिम युवा चोरी-छिपे लड़कियों की तस्वीरें ले रहे थे। जब उन्हें रोकने की कोशिश की गई तो वह झगड़ने को तैयार हो गए। हिन्दू संगठनों का कहना है कि हम केवल लव जेहाद रोकने के लिए और हिन्दू बेटियों की रक्षा के लिए ऐसा कर रहे हैं। इसमें कोई सियासत नहीं। यद्यपि मुस्लिम संगठन जमात-ए-उलेमा का कहना है कि ‘‘जब हम सभी धर्मों में समानता में विश्वास रखते हैं तो गरबा प्रेमी मुस्लिम युवाओं पर इस तरह हमला करना उचित नहीं। कई मुस्लिम युवतियां गरबा में जाती हैं उन पर कोई रोक नहीं है। सांस्कृतिक उत्सवों में हर किसी को जाने की छूट है, लेकिन अगर इन उत्सवों का इस्तेमाल अपनी साजिशों को अंजाम देने के लिए किया जाना पूरी तरह से गलत है। मुस्लिम नमाज पढ़ें या गरबा करें हिन्दुत्व आहत नहीं होता लेकिन अगर कुछ हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता कानून को अपने हाथ में लेकर मारपीट करने लगें तो यह भी कानून सम्मत बात नहीं है। न कोई एफआईआर, न कोई पूछताछ, न कोई कोर्ट-कचहरी का झंझट सीधी मारपीट यानि फैसला ऑन दी स्पॉट। गुजरात सरकार ने धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 को पारित किया था। इसमें अधिनियम की धारा-3 में जबरन धर्मांतरण निर्णय को फिर से परिभाषित किया गया है। हालांकि इस संशोधन को भी चुनौती दी गई है।
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अब सवाल यह है कि गुजरात में इसी वर्ष चुनाव होने हैं, इसीलिए धर्म और जाति पर आधारित मुद्दों को ज्यादा उछाल मिल सकता है। मुस्लिम युवाओं का गरबा महोत्सव में आना कोई जुर्म नहीं है, लेकिन उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे बदनीयती न फैलाएं। अगर वे कुत्सित इरादों को लेकर कार्यक्रमों में आएंगे तो फिर उनकी हर क्रिया की प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है। साधु समाज और हिन्दू संगठन गरबा पंडालों में मुस्लिमों की एंट्री को लेकर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। संत समाज का यह भी कहना है कि अगर धर्म परिवर्तन करने वाले मुस्लिम युवा गरबा कार्यक्रमों में आना चाहते हैं तो वे पहले हिन्दू धर्म में घर वापसी करें। दूसरी तरफ आयोजकों और पुलिस को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि बेवजह हंगामे न खड़े हों और बदनीयती फैलाने वाले युवाओं को चाहे वे किसी भी धर्म के हों उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। क्योंकि गरबा डांडिया को नवरात्रि उत्सव के साथ जोड़ा जाता है, इसलिए इसके स्वरूप से धर्म को अलग नहीं किया जा सकता। धर्म बहुत संवेदनशील मुद्दा है। किसी की भी भावनाएं आहत होने पर उसकी प्रक्रिया हिंसक हो सकती है। मुस्लिम समाज के लिए यही उचित होगा कि वे नेक इरादों से उत्सवों में भाग लें।
‘‘पहले अच्छा इंसान बनो
फिर हिन्दू-मुसलमान बनो
पहले निभाओ मानव धर्म
फिर अपना जाति धर्म निभाओ
सर्वधर्म समभाव को गले लगाओ।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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