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भारत से इतने खफा क्यों हो गए ट्रम्प

04:45 AM Aug 05, 2025 IST | विजय दर्डा

इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो डोनाल्ड ट्रम्प भारत के पक्के दोस्त हुआ करते थे। अभी भी वो भारत को अपना दोस्त ही बताते हैं, वे भारत से इतने खफा क्यों हो गए कि टैरिफ का बड़ा बोझ डाल दिया और पाकिस्तान को ऐसे गोद में लेकर बैठ गए जैसे भारत से उन्हें कोई रिश्ता ही न रखना हो। हमें इस सवाल का जवाब तलाशना चाहिए। मैं अमेरिका के सामने झुकने की बात नहीं करता लेकिन हमारी कूटनीति के समक्ष इस वक्त बड़ी चुनौती है। भारत को यह समझना होगा कि ट्रम्प आखिर चाह क्या रहे हैं? हम भारतीयों को पता ही नहीं था कि पाकिस्तान के साथ भारत की जंग उन्होंने रुकवाई लेकिन उन्हें पता था। भारत ने उनकी बात को तवज्जो नहीं दी लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। अब देखिए ना, बेचारे पाकिस्तानियों को पता ही नहीं है कि उनके पास पैट्रोलियम पदार्थों का ऐसा अकूत भंडार है कि वे किसी दिन भारत को भी तेल बेचने की क्षमता रखते हैं। वह तो उन्हें तब पता चला जब ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर यह जानकारी दी कि पाकिस्तान के पास तेल का विशाल भंडार है।

उन्होंने यहां तक कहा कि शायद पाकिस्तान किसी दिन भारत को तेल बेचेगा। जो पाकिस्तानी पैट्रोल और डीजल की कमी से जूझ रहे हैं, जिनके यहां पिछले दिनों तेल उत्पादन में 11 प्रतिशत की कमी आई है, उन्हें यदि मुंगेरीलाल का यह हसीन सपना दिखा दिया जाए कि वह तो अरब देशों की तरह तेल बेचने वाले बन जाएंगे तो क्या हालत होगी? वो देश पगलाएगा कि नहीं? अब जो थोड़ा पढ़े-लिखे हैं या जिन्हें पैट्रोलियम भंडारों के बारे में चल रही खोजबीन की जानकारी है, वे जानते हैं कि हालात क्या हैं। भारत के पास कच्चे तेल का प्रामाणिक भंडार 5600 लाख बैरल के आसपास है जबकि पाकिस्तान का भंडार महज 236 लाख बैरल के आसपास ही है। जो आंकड़े उपलब्ध हैं वे बताते हैं कि फरवरी 2025 में भारत में प्रतिदिन 6 लाख बैरल तेल का उत्पादन हुआ जबकि पाकिस्तान में उसी महीने यह मात्रा केवल 68 हजार बैरल थी। हां, समय-समय पर यह जरूर कहा जाता रहा है कि पाक के पास तेल का बड़ा भंडार हो सकता है। 2015 में अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन ने बगैर किसी खोज के केवल विश्लेषण के आधार पर कह दिया था कि पाकिस्तान में लगभग 9 अरब बैरल तेल भंडार हो सकता है। आश्चर्यजनक रूप से भारत का आंकड़ा केवल 3.8 अरब बैरल ही आंका गया था।

उस वक्त भी अमेरिका की नीयत पर शंका उत्पन्न हुई थी लेकिन बहुत हल्ला नहीं मचा क्योंकि कुछ भी प्रामाणिक नहीं था लेकिन असली सवाल है कि वे संदेश क्या देना चाह रहे हैं? निश्चित रूप से ट्रम्प भारत को डराने की कोशिश कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि पाकिस्तान में तेल निकालने का काम अमेरिकी कंपनियां करेंगी और पाकिस्तान को मालामाल कर देंगी। किसी देश को डराने का यह कौन सा तरीका है? क्या ट्रम्प यह मान कर चल रहे थे कि अमेरिका जिन गायों को तंदुरुस्त रखने के लिए मांस से बना आहार देता है, उसका दूध वे धौंस-डपट से भारत में बेच लेंगे। मगर वे भारत की संस्कृति को नहीं जानते। हमारे यहां सरकार किसी भी दल की हो, ट्रम्प का सपना कभी पूरा हो ही नहीं सकता। हम खूनी दूध नहीं पीते। इसीलिए हमारी सरकार नहीं झुकेगी। संस्कृति का बहुत बड़ा फर्क है जनाब! इसलिए डराने की कोशिश मत कीजिए। किसकी इकोनॉमी डेड? और ये भारत की इकोनॉमी को जो डेड इकोनॉमी यानी मृत अर्थव्यवस्था कह रहे हैं ना तो जरा आंकड़ों का विश्लेषण कर लीजिए। भारत की अर्थव्यवस्था पिछले दस वर्षों में 105 प्रतिशत बढ़ी है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान जताया है कि 2025 और 2026, दोनों में भारत की अर्थव्यवस्था 6.4 फीसदी की दर से बढ़ेगी जबकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2025 में महज 1.9 फीसदी और 2026 में 2 फीसदी रहने का ही अनुमान है। लगे हाथ यह भी जान लीजिए कि विश्व स्तर पर अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर करीब 3 प्रतिशत रहने का ही अनुमान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने लगाया है। ये आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के मामले में भारत की रफ्तार क्या है। यदि रफ्तार न होती तो क्या भारत दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था यूं ही बन गया? जल्दी ही हम तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भी बनने वाले हैं। ट्रम्प की असली चिंता यही है कि पहले ही चीन चुनौती दे रहा है और भविष्य में भारत भी चुनौती देने की स्थिति में आ गया तो सर्वशक्तिमान को बहुत परेशानी होगी। इसीलिए वे लंगड़ी मार रहे हैं। लंगड़ी मारना याद है ना! बचपन का वो खेल जिसमें कोई बदमाश बच्चा रेस में दौड़ रहे बच्चे की टांग में टांग फंसा कर उसे गिराने की कोशिश करता है लेकिन हम गिरने वाले नहीं हैं।

मगर स्थितियों को नाजुक तरीके से संभालना होगा। दुनिया में अमेरिका एक ताकत है और वह पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़ा होता है तो हमारे लिए यह परेशानी का सबब होगा क्योंकि चीन भी पाकिस्तान के साथ है। हां, अच्छी बात है कि रूस अभी भी हमारे साथ बना हुआ है। इस दोस्ती को नजर लगाने की कोशिश की जा रही है। इस बात से हमें संभलना होगा। परिस्थितियां कठिन हैं लेकिन भारत के भीतर ताकत भी बहुत है। हम ऐसे हालात से निपटना जानते हैं इसीलिए आज तरक्की की राह पर हैं। तरक्की के लिए जरूरी है कि हमारे दोस्त ज्यादा हों और दुश्मन कम हों। दोस्ती के लिए बातचीत से ज्यादा बेहतर तरीका और क्या हो सकता है?

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