क्या भाजपा को मिलेगी पहली महिला अध्यक्ष?
‘इन दिनों मौसमों का भी कहां कोई अंदाजा होता है
फिज़ा की थी आहट, पर आई तो यह बहार है’
अपना चाल, चरित्र व चेहरा बदलने की कवायद में यह पार्टी अपने अभ्युदय काल से ही जुटी है, नई सियासत की पैरोकारी और नए मिथक गढ़ने की बाजीगरी में भी इस भगवा पार्टी का कोई सानी नहीं। खास कर 2014 के बाद से ही पार्टी में कई मान्य परंपराओं को धत्ता बता कर कई बड़े फैसले लिए गए हैं, क्या आने वाला वक्त भी एक ऐसा ही नया अध्याय लिखने की तैयारियों में हैं? केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण क्या भाजपा की अगली राष्ट्रीय अध्यक्ष हो सकती हैं? नहीं तो क्या वजह है कि नई दिल्ली स्थित उनके सरकारी बंगले 15 सफदरजंग रोड पर सीपीडब्ल्यूडी न सिर्फ तोड़-फोड़ कर नई आधारभूत संरचनाएं तैयार कर रहा है, मीटिंग के लिए बड़े हॉल बनाए जा रहे हैं, कई पोर्टा कैबिन लगाए जा रहे हैं, बंगले की साज-सज्जा भी बदली जा रही है, आगंतुकों के लिए बड़े वेटिंग रूम तैयार किए जा रहे हैं।
जब इस बारे में वित्त मंत्री से संबद्ध एक अधिकारी से कुछ जानने की चेष्टा हुई तो उन्होंने गोल-गोल घुमाते हुए कहा कि ‘चूंकि माननीय मंत्री जी को अब घर पर ही बहुत सारी विभागीय मीटिंग्स लेनी पड़ जाती हैं सो, उसे देखते हुए ही नए निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं।’ पर यह बात सहजता से गले नहीं उतरती क्योंकि यह कोई अबूझ पहेली नहीं रह गई है कि आखिरकार माननीया मंत्री जी का मंत्रालय चलता कहां से है? इसे चलाता कौन है? चलो एक पल को यह बात मान भी ली जाए कि मंत्री महोदया पर शायद ‘वर्कलोड’ बढ़ गया हो, पर पिछले तीन महीनों से नियम से उन्हें एक गढ़वाली हिंदी टीचर हिंदी सिखाने क्यों आ रहा है? अब मंत्रालय का कामकाज भी कितना हिंदी में होता है यह सबको पता है। हालिया निर्वाचित हुए उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन की तरह निर्मला भी तमिलनाडु से ही आती हैं, यानी अगर भाजपा इनको अपना अगला अध्यक्ष चुनती हैं तो एक तीर से कई निशाने साधे जा सकते हैं। मसलन, देशभर की महिला मतदाताओं के बीच एक सकारात्मक संदेश दिया जा सकता है, दक्षिण के राज्यों में कमल के प्रस्फुटन को उचित माहौल मिल सकता है। और भाजपा को पहली महिला अध्यक्ष देने का श्रेय पार्टी व पार्टी से बाहर मोदी जी को तो मिलेगा ही।
संघ में यह क्या चल रहा है?
आमतौर पर स्वयंसेवक संघ एक संगठन के तौर पर इस कदर परिपक्व व अनुशासित है कि यहां शीर्ष में संघर्ष, टकराव या टंकार की खबरें कभी सतह पर ही नहीं आ पातीं। पर पिछले दिनों जब संघ के नंबर दो दत्तात्रेय होसबोले संघ की जोधपुर की एक सभा में अचानक से अस्वस्थ हो गए, उनका बीपी डाउन हो गया और उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर जाना पड़ा तो इसके तुरंत बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत के बेहद करीबी माने जाने वाले सुनील आंबेकर ने दत्तात्रेय के स्वास्थ्य की ब्रीफिंग देने के लिए बकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस आहूत कर दी, जिस कांफ्रेंस में पत्रकारों को दत्तात्रेय के स्वास्थ्य के बारे में ताजा अपडेट दिया गया।
यह कांफ्रेंस संघ के नजरिए से भी अजूबा थी, संघ एक स्वयंसेवी या स्वायत्त संस्था है और इसके पदाधिकारी होसबोले भी किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति नहीं कि उनके लिए कोई ‘हेल्थ बुलेटिन’ जारी करने की जरूरत आन पड़े। कहते हैं इस बात से स्वयं होसबोले हैरत में थे कि आखिरकार किसके कहने पर सुनील आंबेकर की ओर से यह धृष्टता हुई। दरअसल, पिछले काफी समय से संघ समर्थकों व सोशल मीडिया में यह सुगबुगाहट उभर रही थी कि इन कुछ दिनों में जब संघ प्रमुख मोहन भागवत भी 75 वर्ष के हो रहे हैं तो क्या वह अपने उत्तराधिकारी के लिए अपनी गद्दी खाली कर देंगे? जब सरसंघचालक पद के लिए उम्र कोई बाधक नहीं, पर चूंकि स्वयं भागवत कई मौकों पर कह चुके हैं कि संघ को अपने नए अवतार में नई पीढ़ी तक अपनी पहुंच बढ़ानी होगी, उसे अपने अप्रोच में भी ज्यादा मॉर्डन होना होगा।
भागवत को करीब से जानने वाले लोगों का दावा है कि वह संघ का शीर्ष नेतृत्व भी अपने बाद किसी युवा हाथों में सौंपने के पक्षधर हैं, उनके मन में है कि संघ का नया नेतृत्व वह संभाले जो 55-60 साल का व्यक्ति हो जो अगले एक दशक तक सफलतापूर्वक इसका नेतृत्व कर सके, इससे ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ सके। चर्चा है कि अगर मौजूदा हालात में भागवत अपनी गद्दी छोड़ते हैं तो उनके स्वभाविक उत्तराधिकारी संघ के नंबर दो इसके सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ही हैं। पर होसबोले की उम्र भी कोई 70 साल के आस-पास की है जो भागवत के युवा नेतृत्व के थ्योरी पर फिट नहीं बैठती है। वैसे भी दत्तात्रेय की किसी से इस कदर नजदीकियां भागवत करीबियों को नहीं भाती है, सो आंबेकर की प्रेस कांफ्रेंस का एक पहलू यह भी हो सकता है कि दत्तात्रेय जी देखो स्वास्थ्य के ग्राउंड पर अब उतने फिट नहीं रह गए हैं।
क्या भाजपा व आप के बीच कुछ पक रहा है?
सियासत अगर अनिश्चिताओं की एक अलिखित इबारत है तो इसे आहटों व दस्तकों में ही बूझा जा सकता है, नहीं तो अचानक से ऐसा क्या हुआ कि भाजपा व मोदी विरोध की सतत् अलख जगाने वाली केजरीवाल की पार्टी आप अचानक से कमल के मोहपाश में जकड़ने लगी है। अगर सिर्फ ताजा-ताजा संपन्न हुए उपराष्ट्रपति चुनाव का ही हवाला दिया जाए तो तृणमूल नेता अभिषेक बनर्जी के उस बयान पर जरूर गौर फर्माया जाए जिसमें वे क्रॉस वोटिंग के लिए आप सांसदों की ओर इशारा करते हुए दिखे।
सूत्रों का दावा है कि भविष्य की राजनीति को लेकर भाजपा व आप के दरम्यान एक गुप्त समझौता हुआ है जिसके तहत इन बातों पर सहमति बनी है कि आप पंजाब के अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए एक माकूल माहौल तैयार करेगी यानी एक तरह से भाजपा को पंजाब की सरजमीं पर पैर जमाने में परोक्ष-अपरोक्ष तौर पर आप पूरा सहयोग देगी, बदले में आप नेताओं मसलन, केजरीवाल, मनीष सिसोदिया व सत्येंद्र जैन पर केंद्रीय जांच एजेंसियां अपना शिकंजा किंचित ढीला कर देंगी, उन्हें बच निकलने के रास्ते भी मुहैया कराए जा सकते हैं।
इसके बदले आप भाजपा की ‘बी टीम’ की तरह चुनावी मैदान में हाथ आजमाएगी, जैसा रोल वह इन बिहार चुनावों में अदा कर रही है, आप ने साफ कर दिया है कि वह बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी यानी यह एक तरह से एनडीए गठबंधन को ही अपरोक्ष तौर पर फायदा पहुंचाने का एक उपक्रम साबित हो सकता है। क्योंकि आप का अपना अनुमान है कि वह बिहार में अपने लिए कुछ नए वोटर और अल्पसंख्यक वोटरों के समर्थन का जुगाड़ कर सकती है।
इसके अलावा गुजरात जैसे जिन राज्यों में भाजपा व कांग्रेस की आमने-सामने की लड़ाई होगी वहां आप कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने का काम कर सकती है। सो इस दफे भी अभिषेक बनर्जी ने जो इशारों-इशारों में कह दिया है, उनके दावों में भी दम हो सकता है, क्योंकि इस दफे के उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में एनडीए के पास 427 वोटों का जुगाड़ था, उसमें जगन मोहन रेड्डी की पार्टी के 14 वोट जोड़ लें तो इसके बाद भी एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले यानी उन्हें दर्जन भाव से क्रॉस वोटिंग का लाभ भी मिला, तो ऐसे में यह सवाल पूछा जाना लाजिमी ही हो जाता है कि क्या यह क्रॉस वोटिंग भाजपा-आप की इसी डील की ओर इशारा तो नहीं कर रही?
...और अंत में
प्रधानमंत्री मोदी का मणिपुर दौरा पहले से प्रस्तावित था तो कांग्रेस नेतृत्व ने अपने इनर मणिपुर के सांसद बिमोल अकाईजम से कहा कि वे पीएम के दौरे का बॉयकॉट करें और उनकी अगवानी के लिए इंफाल न जाएं। समझा जाता है कि इस बारे में कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने स्वयं अपने इस सांसद से बात की और उनसे पीएम के दौरे का बॉयकॉट करने को कहा, पर माना जाता है कि अकाईजम इसके लिए तैयार नहीं हुए, उन्होंने प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए कहा कि चूंकि मैं वहां का निर्वाचित सांसद हूं और देश के प्रधानमंत्री मेरे क्षेत्र में जा रहे हैं तो मेरा वहां होना प्रोटोकॉल के नजरिए से अनिवार्य होगा। हालांकि मैं भाजपा की नीतियों का मुखर विरोधी रहा हूं।