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क्या ‘गेमचेंजर’ साबित होंगे पीके?

04:00 AM Oct 19, 2025 IST | त्रिदीब रमण
क्या ‘गेमचेंजर’ साबित होंगे पीके
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‘जाति-धर्म में इतने बांट दिए गए हैं हम कि हमारा ज़मीर ही आज वेंटिलेटर पर है
इस बीमार जम्हूरियरत का इलाज भला करेगा कौन, जब चारागर ही आज स्टेक्चर पर है’

प्रशांत किशोर एक नए सियासी उद्घोष के साथ बिहार आए थे कि ’वे एक आशावादी राजनीति के प्रवर्त्तक बनेंगे और उनकी राजनीतिक पार्टी ‘जन सुराज’ जाति-धर्म से इतर एक नए बिहार के निर्माण को कृतसंकल्प रहेगी।’ पीके का सियासी मजमा भी ठीक-ठाक जुटा, कुछ अच्छे लोग उनकी पार्टी से जुडे़ भी। भाजपा को उम्मीद थी कि पीके नीतीश की जड़ों में मट्ठा डालने का काम करेंगे, वे महागठबंधन का भी खेल बिगाड़ेंगे, पर अब तो घर को ही आग लग गई, घर के चिराग से। राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि अगर जन सुराज की रफ्तार यूं ही बरकरार रही तो वह कम से कम 15-20 सीटों पर भाजपा का खेल बिगाड़ सकती है। जैसे सीवान सदर की सीट पर पीके ने भाजपा के दिग्गज नेता मंगल पांडेय की चुनावी जीत की संभावनाओं को धूमिल कर दिया है, पटना साहिब लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली कुम्हरार सीट से पीके ने राज्य के एक चर्चित गणितज्ञ प्रोफेसर केसी सिन्हा को मैदान में उतारा है जो जाति से कायस्थ हैं और कुम्हरार को कायस्थों का गढ़ माना जाता है। यहां 1 लाख से ज्यादा कायस्थ वोटर हैं, कुम्हरार 2010 से ही भाजपा के एक अभेद किले में शुमार है, यहां से भाजपा के उम्मीदवार अरुण कुमार सिन्हा जीत दर्ज करते आए हैं, पार्टी ने उनका टिकट काट कर यहां से एक पुराने स्वयंसेवक और अपने एक पके-पकाए नेता संजय गुप्ता को मैदान में उतारा है। पर कहते हैं भाजपा के परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले कायस्थों ने बगावत का झंडा उठा लिया है। सिर्फ कुम्हरार में ही नहीं, बल्कि राज्य के अन्य हिस्सों में भी उन्होंने भाजपा से मुखालफत का इरादा बना लिया है। कुम्हरार में भूमिहार और अति पिछड़े वोटरों की भी एक बड़ी तादाद है, उनका रुख क्या रहने वाला है, यह देखना भी दिलचस्प रहेगा। वैसे ही जन सुराज ने भागलपुर की चुनावी जंग को भी बेहद दिलचस्प बना दिया है, भाजपा ने यहां से रोहित पांडे को टिकट दिया है, पीके ने उनके जवाब में शहर के एक चर्चित वकील अभयकांत झा को मैदान में उतारा है, सनद रहे कि ये अभयकांत वही हैं जिन्होंने भागलपुर दंगे के वक्त मुस्लिमों का केस बिना पैसे लिए लड़ा था, 74 वर्षीय झा की एक सेकुलर छवि है जिसका फायदा जन सुराज को इन चुनावों में मिल सकता है। वहीं सीतामढ़ी के अंतर्गत आने वाली रीगा विधानसभा सीट से पीके ने भाजपा के दो बार के जिलाध्यक्ष रहे कृष्ण मोहन को मैदान में उतारा है, जिन्होंने वाकई वहां के अधिकृत भाजपा उम्मीदवार की राह मुश्किल कर दी है। पर जन सुराज का मोमेंटम पीके के इस ऐलान के बाद थोड़ा जरूर गड़बड़ा गया है जब उन्होंने स्वयं चुनाव लड़ने से मना कर दिया।
जाति ही पूछो साधो की
सूत्रों की मानें तो बिहार चुनाव की पूर्व बेला में आईबी ने अपनी एक रिपोर्ट शीर्ष आकाओं को सौंपी थी, जिसमें भाजपा के 30 ऐसे निवर्तमान विधायकों की अलोकप्रियता को चिन्हित किया था और चुनाव में उनकी जगह नए चेहरे उतारने की सलाह दी गई थी। पर भाजपा ने जिस रफ्तार से अपने निवर्तमान विधायकों के टिकट काटने शुरू किए, बगावती आंधियों ने भी एक रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी। भाजपा कोर ग्रुप की प्रारंभिक रणनीति यह थी कि ’इस बार अगड़ों की जगह ज्यादा से ज्यादा ओबीसी और ईबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जाए।’ पर प्रशांत किशोर ने राज्य में इस कदर अगड़ों को लुभाना शुरू किया कि जन सुराज अगड़ों की पसंदीदा पार्टी में शुमार होने लगी, इससे भगवा पेशानियों पर बल पड़ना स्वाभाविक ही था। सो, भाजपा को भी अपने टिकट वितरण की रणनीति बदलनी पड़ी। 15 राजपूत उम्मीदवार मैदान में उतारने पड़े, 11 भूमिहारों को भी भगवा टिकट मिल गया, साथ ही 7 ब्राह्मणों को भी पार्टी टिकट से उपकृत करना पड़ा। यानी कुल जमा 35 अगड़ों को एक झटके में भगवा टिकट मिल गया। अगर एनडीए की बात करें तो लगभग 85 सीटें अगड़ों के हवाले आई हैं, जिसमें 37 राजपूत, 32 भूमिहार, 14 ब्राह्मण, 2 कायस्थ उम्मीदवार शामिल हैं। वहीं 77 सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतारे गए हैं, जिसमें 24 कुशवाहा, 20 वैश्य, 19 यादव और 14 कुर्मी प्रत्याशी शामिल हैं। एनडीए से 5 मुस्लिम उम्मीदवार भी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में नीतीश ने 11 मुसलमानों को टिकट दिए थे, पर वे सब के सब चुनाव हार गए थे, इसीलिए इस दफे नीतीश ने सिर्फ 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। पर्यवेक्षक बताते हैं कि इस दफे जिस तरह से नीतीश और भाजपा के रिश्तों में एक असहज़ तल्खी दिखी है यह मैसेज जदयू के निचले कैडर तक जा पहुंचा है, सो सूत्रों का दावा है कि इन चुनावों में जदयू के वोट बमुश्किल ही भाजपा की ओर ट्रांसफर होंगे, कुछ यही रीत भाजपा वोटर भी आजमा सकते हैं, अब जदयू उनकी स्वाभाविक पसंद में शुमार नहीं, ऐसे में भाजपा और जदयू इन दोनों ही दलों के ‘स्ट्राइक रेट’ गिर सकते हैं, जिसका फायदा विपक्षी खेमा उठा सकता है।
राजपूत वोटरों पर भाजपा की नजर
अब तक के बिहार चुनावों में आम तौर पर भाजपा राजपूत वोटरों को साधने में कामयाब रही है। पर इस दफे के चुनाव में राजपूत वोटरों में एक तरह की बेचैनी दिख रही है। आर.के. सिंह हों या फिर सारण के सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी, पार्टी ने एक तरह से उन्हें ठंडे बस्ते के हवाले किया हुआ था। देर से ही सही जब पार्टी को राज्य में राजपूतों की नाराज़गी का इल्म हुआ तो डैमेज कंट्रोल अभियान भी साथ-साथ शुरू हो गया। भाजपा ने इस चुनाव में रिकार्ड 15 राजपूत उम्मीदवार मैदान में उतारे, आर.के. सिंह व रूढ़ी जैसे नेताओं की नाराज़गी दूर करने के उपक्रम साधे जाने लगे। सूत्रों की मानें तो दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में जिस रूढ़ी को भाजपा शीर्ष ने संजीव बालियान के मुकाबले उपेक्षित छोड़ दिया था, अब पार्टी में उनकी पूछ बढ़ गई है। पार्टी के एक बड़े नेता ने उन्हें फोन कर इस चुनाव में लग जाने का आग्रह किया, बल्कि उन्होंने रूढ़ी के संसदीय क्षेत्र सारण से ही अपने चुनावी अभियान का शंखनाद भी किया। राजपूत वोटरों को लुभाने के लिए ही योगी आदित्यनाथ की एक लंबी ड्यूटी बिहार में लगाई गई है। सबसे पहले योगी बिहार आकर रामकृपाल यादव का नामांकन कराने दानापुर गए, फिर वे शाहाबाद भी गए, जहां लोकसभा चुनाव के दौरान राजपूत-कुशवाहा समीकरण बिगड़ गया था। दानापुर में योगी ने ‘विकास बनाम बुर्के’ का राग छेड़ कर अपने इरादों की झलक पहले ही दिखला दी है।
ऐसे माने कुशवाहा
महागठबंधन में जहां अभी भी घटक दलों में जूतम-पैजार जारी है, वहीं एनडीए के घटक दलों में एक अघोषित शांति का आलम व्याप्त है। चिराग पासवान व नीतीश के साथ-साथ उपेंद्र कुशवाहा को मनाने में भी भाजपा नेताओं के पसीने छूट गए। उपेंद्र कुशवाहा को मनाने में सबसे अहम भूमिका रही नित्यानंद राय की। वे एक बार फिर कुशवाहा को लेकर अमित शाह के पास पहुंचे, जहां पुराने गिले-शिकवे दूर हुए, भाजपा शीर्ष की ओर से कुशवाहा को आश्वासन प्राप्त हुआ कि ’आप पूरे मन से चुनाव में जुट जाइए हम आपका पूरा ध्यान रखेंगे, अगली बार आपको एक बार फिर से राज्यसभा में भी लाया जाएगा, आप इस बात की बिल्कुल भी चिंता न करें।’
...और अंत में
क्या शिवसेना की तेज-तर्रार नेता व प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी अपनी सियासी निष्ठा बदलने के दोराहे पर एक बार फिर से खड़ी हैं? उनकी राज्यसभा की मियाद अप्रैल 2026 में खत्म हो रही है, शिवसेना उद्धव उन्हें फिर से ऊपरी सदन में भेजने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है क्योंकि उनकी पार्टी के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है।
सूत्रों की मानें तो इन दिनों प्रियंका ने सपा की राज्यसभा सांसद जया बच्चन के मार्फत सपा सुप्रीमो से मेल-जोल बढ़ाना शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी ओर आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की भी सपा सुप्रीमो अखिलेश से मेल-जोल की खबरें सियासी हलकों में दस्तक दे रही है। माना जाता है कि जिस तरह से आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का व्यापारीकरण कर रहे हैं इस बात से संजय सिंह खुश नहीं बताए जाते हैं।

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त्रिदीब रमण

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