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रिन्यूवेबल बिजली प्रोजैक्ट के अन्तर्राज्यीय ट्रांसमिशन में शुल्क छूट समाप्ति से कीमतें बढ़ेंगी?

भारत तेजी से वैश्विक आर्थिक सीढ़ी चढ़ रहा है और जापान को पीछे छोड़कर चौथे स्थान…

03:37 AM Jun 12, 2025 IST | Editorial

भारत तेजी से वैश्विक आर्थिक सीढ़ी चढ़ रहा है और जापान को पीछे छोड़कर चौथे स्थान…

रिन्यूवेबल बिजली प्रोजैक्ट के अन्तर्राज्यीय ट्रांसमिशन में शुल्क छूट समाप्ति से कीमतें बढ़ेंगी

भारत तेजी से वैश्विक आर्थिक सीढ़ी चढ़ रहा है और जापान को पीछे छोड़कर चौथे स्थान पर आ गया है। भारत वैश्विक स्तर पर जलवायु के संदर्भ में नेतृत्व करता है तथा अन्य देश भारत की ओर देखते हैं। भारत ने 2021 में ग्लासगो में जलवायु सम्मेलन के दौरान पांच जलवायु संकल्पों की घोषणा की थी जिसमें सबसे प्रमुख लक्ष्य था कि भारत 2030 तक 500 जीडब्ल्यू नान-फोसिल ऊर्जा क्षमता निर्मित करेगा। इसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत और हाईड्रोजन ऊर्जा जैसी स्रोतों को शामिल किया गया है।

यह लक्ष्य न केवल भारत के कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिससे देश के वातावरण को स्वच्छ रखने में बड़ी सहायता मिलेगी, अपितु यह ऊर्जा सुरक्षा, रोजगार सृजन और सतत विकास के क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी लेकिन इस दिशा में कई चुनौतियां और बाधाएं भी हैं, जिन्हें दूर करना आवश्यक है। यदि हम अब तक की प्रगति पर विचार करें तो यह काफी उत्साहवर्धक है। कुल मिलाकर भारत लगभग 180-190 जीडब्ल्यू क्षमता के निर्माण पर पहुंच चुका है जिसमें सौर चर्चा लगभग 85 जीडब्ल्यू है पवन ऊर्जा लगभग 45 जीडब्ल्यू और जल विद्युत और अन्य 50 जीडब्ल्यू है लेकिन 500 जीडब्ल्यू तक पहुंचने के लिए अगले पांच वर्षों में 60-70 जीडब्ल्यू प्रतिवर्ष की दर से विस्तार करना होगा जो एक बड़ी चुनौती है। इस बारे में अनेक मुख्य बाधायें और चुनौतियां हैं। जैसे बुनियादी ढांचे में कमी, ट्रांसमिशन नेटवर्क (ग्रीड) उतना मजबूत नहीं है कि बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा को संभाल सके और ऊर्जा भंडारण की तकनीक भी अभी महंगी और सीमित है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच समन्वय की कमी है।

इन समस्याओं के समाधान के लिए यह आवश्यक है कि मेक इन इंडिया के तहत सौर और पवन उपकरणों के स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाए और स्थानीय स्तर पर लोगों को प्रशिक्षण देकर रोजगार सूजन किया जाये। इस रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण खतरे का सामना करना पड़ रहा है यह खतरा है इंटर स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) शुल्क माफी की समाप्ति। इसी माहीने जून के अन्त में यह छूट समाप्त होने वाली है इसे बढ़ाने के लिए समय पर नीतिगत हस्तक्षेप के बिना, कई रिन्यूएबल एनर्जी परियोजनाओं में अधिक देरी अनि​श्चितता और ऋण प्राप्त करने में जोखिम है जिससे लगभग 5 लाख करोड़ रुपये का निवेश खतरे में पड़ सकता है और संभावित रूप से क्लीन एनर्जी के उत्थान की दिशा में भारत के स्वच्छ ऊर्जा के मार्ग में बाधा उत्पन्न हो सकती है। आईएसटीएस नेशनल हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन नेटवर्क है जो राज्यों के बीच बिजली की आवाजाही को सुगम बनाता है जो बड़े पैमाने पर रिन्यूएबल एनर्जी परियोजनाआें से उत्पन्न बिजली को एकीकृत करने के लिए महत्वपूर्ण है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य जो स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की सीमित क्षमता वाले हैं। जैसे हिन्द समाचार एनर्जी (पंजाब), एमप्लस सोलर (हरियाणा और उत्तर भारत), एज्याेर पाॅवर (हरियाणा, पंजाब और राजस्थान), क्लीनमेक्स एन्वायरो एनर्जी इत्यादि। ऐसे कई डेवलपर्स ने राजस्थान, गुजरात आदि में-utility scale solar parks स्थापित किये हैं। ट्रांसमिशन चार्जेस की छूट ने इन परियोजनाओं को चालू करने में सहायता की। भारत ने देश के वित्तीय विकास में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जापान को पीछे छोड़कर चौथा स्थान प्राप्त कर लिया है और शीघ्र ही जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरा स्थान प्राप्त करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की ओर अग्रसर है। ऐसे में यह आवश्यक है कि हमारी नीतियां स्पष्ट और स्थायी हो ताकि पूंजी निवेश में बढ़ावा मिले और पूर्ण आशा है कि इस क्षेत्र में भी यह अवश्य और शीघ्र हो सकेगा।

(लेखक कम्पी​टीशन एडवाइजरी सर्विसेज के चेयरमैन हैं)

– धनेन्द्र कुमार

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