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क्या यूक्रेन का युद्ध टलेगा

अमेरिका बहुत शक्तिशाली देश है।

01:30 AM Feb 22, 2022 IST | Aditya Chopra

अमेरिका बहुत शक्तिशाली देश है।

अमेरिका बहुत शक्तिशाली देश है। विश्व के मानचित्र पर अमेरिका एक ऐसा मुल्क है जिसके एक इशारे से दुनिया का शक्ति संतुलन बिगड़ता भी है और बनता भी है लेकिन इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने जिस-जिस देश में भी हस्तक्षेप किया वहां आज तक शांति और स्थिरता कायम नहीं हो सकी। ढिंढोरा तो वह विश्व शांति का पीटता है लेकिन उसने इसकी आड़ में विध्वंस का खेल ही खेला है। विश्व शांति की जितनी बातें अमेरिका ने की हैं उतनी आज तक किसी दूसरे देश ने नहीं की। इसके बावजूद न तो वह युद्ध रोक पाया और  न ही शांति के संकल्प को पूरा कर पाया। यूक्रेन को लेकर भी अमेरिका और उसके मित्र देश रूस के खिलाफ धुआंधार दुष्प्रचार करने में लगे हुए हैं। 
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रूस और यूक्रेन के बीच तनाव काफी बढ़ चुका है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने दावा किया है कि रूसी कमांडरों को यूक्रेन पर हमले का आदेश दे दिया गया है। सैटेलाइट तस्वीरों में अमेरिका को दिखा है कि रूस की सेना राजधानी कीव समेत यूक्रेन के कई शहरों पर एक साथ हमला करने की तैयारी कर रही हैं। रूस और  यूक्रेन में तनाव कम न होता देख भारत ने भी अपने राजनयिक निकालने की तैयारी कर ली है और हो सकता है कि उसे अपने छात्रों को भी एयरलिफ्ट करना पड़े। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि युद्ध को रोका जाए तो कैसे। यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जानते हैं कि युद्ध हुआ तो न केवल यूक्रेन को बल्कि पूरी दुनिया को बहुत नुक्सान उठाना पड़ेगा। कभी साहिर लुधियानवी ने निम्न पंक्तियां लिखी थीं-
खून अपना हो या पराया हो,
नस्ल आदम का खून है आखिर।
जंग मगरिब में हो या म​शरिक में,
अमने आलम का खून है आखिर।
बम घरों पे गिरे या सरहद पर,
रूह-तामीर जख्म खाती है।
खेत अपने जलें या गैरों के,
जीस्त फांको से तिलमिलाती है।
बम घरों पे गिरे या सरहद पर,
कोख धरती की बांझ होती है।
रूस ने नवम्बर से यूक्रेन की सीमा पर सैनिकों का जमाव शुरू किया था जो अब एक लाख सत्तर हजार सैनिकों तक पहंुच गया है। इस जमाव की असली वजह अमेरिका के नेतृत्व वाले सामरिक संगठन नाटो का रूस की सीमाओं तक आना है। इससे रूसी राष्ट्रपति पुतिन काफी चिंतित हो उठे हैं। पुतिन इस बात से नाराज हैं कि अमेरिका और यूरोपीय देश अपने उस वादे से मुकर गए हैं कि सोवियत संघ से अलग हुए पूर्वी यूरोप के देशों में नाटो का विस्तार नहीं होगा। पर ऐसे 14 देशों को नाटो देशों में शामिल कर लिया गया और रूस नाटो देशों से ​घिरता गया। पुतिन को लगता है कि अब यूक्रेन की बारी है और फिर बेलारूस और जार्जिया को भी नाटो में शामिल किया जाएगा। क्षेत्रफल के हिसाब से यूक्रेन रूस के बाद यूरोप का सबसे बड़ा देश है। जार शासन के दौरान इसे रूस में शामिल किया गया था। 70 फीसदी लोग यूक्रेनी बोलते हैं बाकी लोग रूसी बोलते हैं और वह रूस के साथ ऐतिहासिक रिश्ते बनाए रखना चाहते हैं। वर्ष 2014 में  रूस समर्थक यूक्रेन के राष्ट्रपति यानू कोविच के तख्तापलट के बाद रूस ने रूसियों की सुरक्षा के नाम पर क्रीमिया में जनमत संग्रह कराकर कब्जा कर लिया था और  यूक्रेन के दो प्रांतों पर विद्रोहियों का कब्जा करवा दिया था। अब अमेरिका और नाटो पूरी तरह से यूक्रेन की मदद को आ गए हैं। इसी बीच रूस ने यूक्रेन की उत्तरी सीमाओं के पास सैन्य अभ्यास को विस्तार दे दिया है। वहीं पूर्वी यूक्रेन में सैनिकों और रूस समर्थित अलगाववादियों के बीच दो दिन से हो रही गोलाबारी के बीच हमले की आशंकाएं बढ़ गई हैं। पश्चिमी देशों को आशंका है कि रूसी सैनिक कभी भी यूक्रेन की राजधानी कीव में घुस सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन खुद को ताकतवर दिखाने के लिए दादागीरी कर रहे हैं और उधर पुतिन इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाए हुए हैं।
भारत का स्टैंड यह है कि तनाव को कूटनीति के माध्यम से कम किया जाए और युद्ध किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए। हालांकि रूस बार-बार कह रहा है कि वह यूक्रेन पर हमला नहीं करने वाला। अमेरिका ने भी कूटनीतिक प्रयास करने शुरू कर दिए हैं। फ्रांस के प्रस्त​ाव पेश किए जाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन का कहना है कि वह पुतिन के साथ किसी भी स्थान और समय में बातचीत के ​ लिए तैयार हैं लेकिन शर्त यह है ​कि  रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा। दोनों में शिखर वार्ता होने की उम्मीद है लेकिन देखना होगा कि क्या कूटनी​ित पुतिन को आगे बढ़ने से रोक पाती है या नहीं। क्या युद्ध टलेगा या अगर युद्ध होता है तो इसका असर भारत पर काफी होगा। कूटनीतिक दाव-पेंचों में भी भारत को अमेरिका, नाटो और  रूस के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि रूस भारत का घनिष्ठ मित्र रहा है और हर संकट में उसने भारत का साथ दिया है लेकिन भारत की सबसे बड़ी चिंता रूस और  चीन के बीच बढ़ती नजदीकियां भी हैं। रूस का चीनी खेमें में जाना भारत-अमेरिका संबंधों के ​लिए  भी मुश्किल खड़ी कर सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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