बिहार की महिला वोटर
बिहार के राजनीतिक समीकरण इतने उलझे हुए हैं कि राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा इनका वैज्ञानिक विश्लेषण करना आसान कार्य नहीं है। एक ओर जातिगत समीकरण हैं तो दूसरी तरफ अमीरी-गरीबी की गहरी खाई के साथ चहुंओर पसरी हुई गरीबी है वहीं तीसरी तरफ स्त्री-पुरुष के बीच कार्यगत अन्तर है। यह अन्तर इतना गहरा है कि बिहार से पलायन कर दूसरे प्रदेशों को गये पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाओं को ही घर से लेकर बाहर तक के सारे कामकाज करने होते हैं और अपनी गृहस्थी की गाड़ी को चलाना पड़ता है लेकिन एक तथ्य यह भी है कि बिहार की महिलाएं अन्य राज्यों की तुलना में अधिक कार्य पारंगत मानी जाती हैं। बिहार में विगत 11 नवम्बर को हुए अन्तिम चरण के दूसरे मतदान के बाद अब आज 14 नवम्बर को परिणाम आ जायेंगे जिनसे सभी एक्जिट पोलों का सच भी सामने आ जायेगा। बिहार में इस बार पिछले 75 सालों का सर्वाधिक मतदान हुआ है और अधिकतम एक्जिट पोल सत्तारूढ़ एनडीए को विजय दिला रहे हैं। जबकि सामान्य तौर पर यह अवधारणा रहती है कि अधिक मतदान सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ जाता है परन्तु बिहार में एक्जिट पोल एेसा नहीं मान रहे हैं और कह रहे हैं कि मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार के शासन के प्रति मतदाताओं की सद्भावना रही है।
वैसे यह सच है कि 2005 से नीतीश बाबू जिस पाले में भी रहे हैं जीत उसी पाले की हुई है मगर उनकी जीत के पीछे महिलाओं का समर्थन भी एक बहुत बड़ा कारण माना जा रहा है। वैसे तो चुनाव आयोग ने 6 नवम्बर को पहले दौर का मतदान होने के बावजूद पुरुष व महिला मतदाताओं के आंकड़े 11 नवम्बर तक नहीं दिये मगर दूसरे दौर का अन्तिम चरण 11 नवम्बर होने के बाद उसने 12 नवम्बर को महिला व पुरुष मतदाताओं के अलग-अलग आंकड़ों का मतप्रतिशत बताया जबकि कुल महिला व पुरुष मतदाताओं की संख्या अभी तक नहीं बताई है। एेसा चुनाव आयोग क्यों कर रहा है यह तो वही जाने मगर जो आंकड़े आये हैं उनके अनुसार मतदान के दोनों चरणों में कुल मतदान 66.91 प्रतिशत रहा है। जिसमें महिला मतदाताओं ने पुरुषों के मुकाबले 8.8 प्रतिशत अधिक मतदान किया है। राज्य में 2005 के बाद से महिला वोटर पुरुषों के मुकाबले अधिक मतदान करती आ रही है मगर यह अन्तर अभी तक का सबसे बड़ा अन्तर माना जा रहा है। एेसा समझा जाता है कि महिला मतदाताओं की पहली पसन्द श्री नीतीश कुमार होते हैं क्योंकि 2005 में पहली बार सत्ता पर बैठने के बाद उन्होंने महिलाओं के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू कीं। इसके बाद से लगातार नीतीश बाबू ही मुख्यमन्त्री बन रहे हैं और वह उनके लिए हर बार कोई नयी योजना लाते रहते हैं।
राज्य में पहले से चल रही जीविका दीदी योजना के तहत चुनाव से पहले एक करोड़ के लगभग जीविका दीदियों को दस- दस हजार रुपये दिये गये। चुनावों पर इसका क्या असर रहा यह तो 14 नवम्बर को ही पता चलेगा परन्तु जहां तक मत प्रतिशत का सवाल है तो इस बार के चुनावों में महिलाओं में यह 71.6 प्रतिशत रहा जबकि पुरुषों में यह 62.8 प्रतिशत रहा। इस अन्तर को देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 के चुनाव में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों ने पांच लाख अधिक वोट डाले। ये आंकड़े तब हैं जबकि राज्य में हुए विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के नाम अधिक कटे। बिहार में 3.93 करोड़ पुरुष मतदाता हैं और 3.51 करोड़ महिला मतदाता हैं। इस प्रकार पुरुष व महिला मतदाताओं में 42.34 लाख मतों का अन्तर है। हालांकि चुनाव आयोग ने इन चुनावों में कुल स्त्री व पुरुष मतदाताओं की कुल संख्या जारी नहीं की है मगर प्रतिशतता के आधार पर जो आंकड़ा निकलता है वह 2.52 करोड़ महिला वोटरों का है और 2.47 करोड़ पुरुष वोटरों का है। जैसा कि मैंने ऊपर भी लिखा है। इससे जाहिर होता है कि महिला वोटरों में ज्यादा उत्साह था। यह उत्साह इसीलिए था कि बिहार में महिलाओं के सिर पर जिम्मेदारी का बोझ पुरुषों के मुकाबले ज्यादा रहता है लेकिन क्या इसका मतलब यह निकाल लिया जाये कि महिलाओं के सभी वोट नीतीश बाबू को पड़े हैं? यह आंकलन सही नहीं होगा क्योंकि एक तरफ यह भी कहा जाता है कि बिहार का समाज विभिन्न जातिगत खांचों में बंटा हुआ है। अगर यह सच है तो इसका असर महिला मतदाताओं पर भी पड़ना चाहिए क्योंकि राज्य में सभी चुनाव विश्लेषण जातिगत आधार पर ही किये जाते हैं। यह भी सच है कि अलग-अलग जातियों की अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियां भी हैं। यदि महिलाएं जाति-पाति से ऊपर उठकर मतदान करती हैं तो इसे बिहार की राजनीति में एक नया प्रयोग कहा जायेगा परन्तु वास्तव में एेसा है नहीं क्योंकि चुनाव नतीजे हमें इसका प्रमाण नहीं देते रहे हैं। यदि पुराना इतिहास देखें तो ये प्रमाण तो हैं कि नीतीश बाबू फायदे में रहे हैं मगर इस बात के सबूत नहीं हैं कि महिलाओं ने जात-पात से ऊपर उठकर मतदान किया है। अभी तक 2010 में नीतीश बाबू की जद (यू) पार्टी को सर्वाधिक 115 सीटें हासिल हुई थीं। इन चुनावों में महिलाओं ने 54.49 प्रतिशत व पुरुषों ने 51.12 प्रतिशत वोट डाले। इन चुनावों में भाजपा व जद (यू) का गठबन्धन था। यह वोट 2005 से 2010 तक के नीतीश के कार्यकाल के आधार पर था जिसमें लालू जी की पार्टी को मात्र 22 सीटों पर ही सन्तोष करना पड़ा था। इसके बाद 2015 में नीतीश बाबू का लालू जी से गठजोड़ था जिसमें महिलाओं ने 60.48 प्रतिशत व पुरुषों ने 53.32 प्रतिशत मत दिया था। इसमें लालू जी की पार्टी को सर्वाधिक 80 व नीतीश बाबू की पार्टी को 71 सीटें ही मिली थीं। अतः इन चुनावों में जातिगत समीकरण ने भी अपना काम किया था। इस बार 2025 में यही देखा जाना है कि महिलाओं का अधिक मत प्रतिशत किस हद तक नीतीश बाबू की मदद करता है।

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