बिहार में महिला आरक्षण
बिहार में आगामी नवम्बर-दिसम्बर महीने में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिसे देखते हुए सत्ता और विपक्ष के दल अपनी-अपनी राजनैतिक चौसर बिछाने लगे हैं। ताजा फैसले में राज्य की भाजपा-जद(यू) नीतीश सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के 35 प्रतिशत आरक्षण को राज्य की स्थायी निवासी महिलाओं के लिए आवश्यक करार दिया है। इससे पहले अन्य राज्यों की महिलाओं के लिए भी नौकरियों के द्वार खुले हुए थे। मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार महिला वर्ग में लोकप्रिय समझे जाते हैं। इसकी कई वजहें समझी जाती हैं। पहली तो यह कि उन्होंने राज्य में पूर्ण शराबबन्दी करके घरेलू महिलाओं को राहत देने की कोशिश की थी। मुख्यमन्त्री का यह फैसला राज्य की महिलाओं ने बहुत सराहा था। इससे उनका पारिवारिक जीवन सुगम होने की संभावनाएं बढ़ी थीं।
शराबबन्दी से गरीब तबके की महिलाओं में खुशी की लहर थी मगर दूसरा पहलू यह भी है कि इससे राज्य में अवैध तरीके से शराब तस्करी भी बढ़ी और राज्य में जहरीली शराब पीकर मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ। नीतीश सरकार ने इस समस्या का हल पुलिस प्रशासन की मार्फत ढूंढने की कोशिश की जिसमें उसे आंशिक सफलता ही मिल पाई। यह भी सच है कि अवैध शराब की राज्य में तस्करी अब भी हो रही है और प्रशासन इसे पूरी तरह बन्द करने में सफल नहीं हो सका है। किसी भी समाज में ऐसी बुराई को जड़ से समाप्त करना बहुत मुश्किल काम माना जाता है। फिर भी राज्य की महिलाओं ने मुख्यमन्त्री की शराबबन्दी की घोषणा का खुले दिल से स्वागत किया था। जहां तक महिलाओं के सरकारी नौकरियों में आरक्षण का सवाल है तो मुख्यमन्त्री ने यह फैसला 2016 में किया था। उस समय नीतीश बाबू जद(यू)-कांग्रेस व लालू जी की पार्टी राजद के महागठबन्धन की सरकार के मुखिया थे।
इससे पहले 2015 को हुए राज्य विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन को भाजपा के मुकाबले भारी सफलता मिली थी। इन चुनावों में राज्य की महिलाओं ने नीतीश बाबू का साथ दिया था। तभी से महिला वोट बैंक नीतीश बाबू का समझा जाता है। पिछले 20 साल से 2005 के बाद से नीतीश बाबू ही राज्य के मुख्यमन्त्री चले आ रहे हैं हालांकि राज्य में सत्तारूढ़ सरकार के गठबन्धन अदलते-बदलते रहते हैं। नीतीश बाबू कभी भाजपा के साथ मिलकर सत्ता में रहते हैं तो कभी कांग्रेस व लालू जी की पार्टी के साथ। अतः पिछले 20 सालों में बिहार सरकार ने जो भी फैसले जनहित में किये हैं उन सभी का श्रेय नीतीश बाबू को दिया जा सकता है।
2022 में उन्होंने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराया था। उस समय नीतीश बाबू लालू जी की पार्टी के सहयोग से मुख्यमन्त्री बने हुए थे। इस सर्वेक्षण का श्रेय हालांकि लालू जी की पार्टी ने लेने का प्रयास किया मगर नीतीश बाबू ने स्पष्ट कर दिया कि इस फैसले में उनकी भागीदारी को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनके पास राज्य के अति पिछड़े वर्ग का व्यापक समर्थन है। इस जातिगत सर्वेक्षण में साफ हुआ था कि बिहार में 36 प्रतिशत लोग अति पिछड़े वर्ग के हैं। जातिगत सर्वेक्षण के बाद नीतीश सरकार ने गरीब वर्ग के लोगों की मदद के लिए कुछ जरूरी कदम भी उठाये और अति गरीब परिवारों को दो लाख रुपये की मदद देने का फैसला भी किया। इस प्रकार नीतीश बाबू इस वर्ग की सहानुभूति बटोरने में पुनः सफल रहे। जहां तक विपक्ष का सवाल है तो वह चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण कराये जाने के खिलाफ व्यापक अभियान चलाये हुए हैं और इस सन्दर्भ में उसने बुधवार को बिहार बन्द का आयोजन भी किया गया।
इस बन्द के सफल होने की खबरें भी आ रही हैं जिससे इस चुनावी राज्य में जनता बनाम चुनाव आयोग की स्थिति पैदा होती जा रही है लेकिन नीतीश बाबू इस विवाद से तटस्थ बने हुए हैं और वह मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया पर अपनी जुबान नहीं खोल रहे हैं। इससे पता चलता है कि मुख्यमन्त्री इस घटना के राजनीतिक हानि-लाभ के समीकरणों को तोल रहे हैं और सही समय पर अपनी बात कहने के इन्तजार में हैं लेकिन इस विवाद से लोगों खासकर महिलाओं का ध्यान हटाने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरियों में स्थायी निवास वाली महिलाओं का मुद्दा गरमा दिया है। जाहिर तौर पर इससे नीतीश बाबू का महिला वोट बैंक सशक्त होगा। अभी तक यह व्यवस्था थी कि 35 प्रतिशत महिला आरक्षण में किसी भी राज्य की महिलाएं बिहार में नौकरी पा सकती थीं। खासकर शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापक की नौकरियों में बिहार से बाहर की महिलाओं को भी अच्छी-खासी संख्या में नैकरियां मिली थीं।
अब ये सब नौकरियां केवल बिहार की स्थायी निवासी महिलाओं के लिए आरक्षित हो जायेंगी। इससे राज्य की राजनीति में जिस प्रकार जातिवाद का बोलबाला है वह भी कम होगा क्योंकि आरक्षण में हर जाति की महिला पात्र मानी जायेगी। इससे भाजपा को चुनावी मैदान में उतरने में मदद मिलेगी क्योंकि यह पार्टी मूल रूप से अगड़े समाज की पार्टी समझी जाती है। जद(यू) के साथ मिलकर ही भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव लड़े थे जिसमें उसे शानदार सफलता मिली थी। अतः विधानसभा चुनावों की चौसर में सत्ता व विपक्ष अपनी-अपनी गोटियां बहुत सावधानी के साथ बिछाते नजर आ रहे हैं।