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महिला सुरक्षा : अजब-गजब फरमान

उत्तर प्रदेश में आम आदमी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े फैसले लेने का सिलसिला जारी है और एक के बाद एक अजब-गजब फरमान जारी किए जा रहे हैं।

10:40 AM Nov 09, 2024 IST | Aditya Chopra

उत्तर प्रदेश में आम आदमी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े फैसले लेने का सिलसिला जारी है और एक के बाद एक अजब-गजब फरमान जारी किए जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में आम आदमी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े फैसले लेने का सिलसिला जारी है और एक के बाद एक अजब-गजब फरमान जारी किए जा रहे हैं। आम आदमी क्या खाएगा, क्या पीएगा, उसकी आदतें क्या होंगी, वो क्या पहनेगा, क्या नहीं पहनेगा यह तय करना सरकारों या सरकारी प्रतिष्ठानों का काम नहीं है। सरकारों को आम आदमी के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। जुलाई महीने में कांवड़ यात्रा शुरू होने से पहले योगी सरकार ने यात्रा मार्ग पर दुकानों के संचालक या मालिक को अपनी पहचान लिखनी होगी का फरमान जारी किया था तब इस फरमान पर काफी बवाल मचा था। आलोचना को देखकर राज्य सरकार ने इस आदेश को ऐच्छिक कर दिया था। केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए के घटक दलों ने भी इस फरमान का विरोध किया था। संविधान में कहा गया है कि धर्म और जाति के आधार पर किसी से भी भेदभाव नहीं होना चाहिए।

उत्तर प्रदेश सरकार के फरमान से साम्प्रदायिक तनाव फैलने का खतरा पैदा हो गया था। दुकानदारों को दुकान पर अपना नाम और धर्म लिखने का निर्देश देना जाति और साम्प्रदाय को बढ़ावा देने वाला कदम करार ​दिया गया था। इस देश में कभी पहनावे, कभी हिजाब पर भी बवाल मचते रहे हैं। ‘नैतिक पुलिस’ बन बैठे कुछ संगठन इस हद तक पहुंच जाते हैं जिसे सभ्य समाज सहन नहीं कर सकता। कभी किसी संस्थान में दाढ़ी रखने वाले छात्र को दाखिला देने से मना कर ​िदया जाता है तो कभी केरल के एक मदरसे में चंदन का टीका लगाकर जाने वाली छात्रा को बाहर कर दिया जाता है। उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर अजब-गजब फरमान जारी किए हैं। यद्यपि यह फरमान अभी तक प्रस्तावित हैं और इन्हें अभी लागू नहीं किया गया है। इस पर लोगों की जबरदस्त प्रतिक्रियाएं भी मिलनी शुुुरू हो गई हैं। महिला आयोग के प्रस्तावित फरमानों में कहा गया है कि पुरुष टेलर अब महिलाओं का माप नहीं ले सकेंगे, जिम और योगा केन्द्रों में ट्रेनर भी महिला ही होनी चाहिए और इन सब में सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिएं। आयोग ने यह भी कहा है कि थिएटर सैंटरों में भी महिलाओं की जरूरत है। महिलाओं के लिए विशेष कपड़े और सामान बेचने वाली दुकानों में भी महिला कर्मचारियों की नियुक्ति करनी होगी। स्कूल बस में भी महिला सुरक्षा गार्ड आैर महिला टीचर का होना जरूरी होगा। प्रथम दृष्टि में यह ​नियम महिलाओं के साथ बढ़ती छेड़छाड़ और अन्य आपराधिक घटनाओं को रोकने वाला कदम लगता है।

आज का आधुनिक समाज बहुत बदल चुका है। आधुनिक समाज को ऐसे तालिबानी फरमान पसंद नहीं हैं और वह इसे जबरन थोपने वाले नियम करार दे रहा है। जब पुलिस की वर्दी में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं तो क्या महिला ट्रेनर लाने से महिलाएं सुरक्षित हो जाएंगी? आधुनिक समाज में जिम जाने वाली महिलाएं पुरुषों से ट्रेनिंग लेने में संतुष्ट हैं और उनका कहना है कि पुरुष ज्यादा अच्छी ट्रेनिंग देते हैं, इसके उलट महिलाएं इतनी अच्छी ट्रेनिंग नहीं दे पातीं। अगर कोई महिला पुरुष ट्रेनर के साथ सहज है तो उसे जिम ट्रेनिंग की स्वतंत्रता होनी चाहिए। समाज का एक वर्ग ऐसे नियमों को सही करार दे रहा है तो दूसरा वर्ग यह कह रहा है ​िक महिलाओं की यदि इच्छा है कि वह किसी पुरुष टेलर से अपने कपड़ों का माप करवाएं, अगर उनकी इच्छा है कि वह किसी लेडिज टेलर से कपड़े का नाम करवाएं तो यह सब महिलाओं के स्वविवेक पर होना चाहिए। आधुनिक समाज में महिलाएं फैसला लेने में सक्षम हैं और यह उनकी स्वेच्छा पर निर्भर है कि वह क्या करें या न करें। समाज में रूढ़िवादी सोच का पिटारा सिर पर लिए घूमते बहुत से लोग नजर आएंगे लेकिन उसी समाज में ऐसे भी लोग हैं जो महिलाओं के प्रति समाज में बराबरी की सोच रखते हैं। आज हर छोटे-बड़े शहर में को-एजुकेशन और कॉलेज चल रहे हैं, जहां एक साथ लड़के-लड़कियां शिक्षा प्राप्त करते हैं। आज हर जगह चाहे वह गांव हो या शहर महिला सशक्तिकरण की चर्चा है। आज हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। ऐसे में पुरुषों के महिला सशक्तिकरण के प्रति दृष्टिकोण को उदार बनाना जरूरी है। आज पुरुष भी महिलाओं के विकास व उत्थान में योगदान दे रहे हैं। विषम परिस्थितियों में महिलाओं का साथ देने के लिए पिता, भाई, पुत्र और समाज का वर्ग खड़ा होता है। अगर ऐसे ही नियम बनाए गए तो समाज में सामाजिक व्यवस्था को बहुत नुक्सान हो सकता है। रूढ़िवादी और संकीर्ण विचारधाराओं से समाज विकास नहीं कर सकता। समाज के प्रत्येक पुरुष को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए महिलाओं के उत्थान व विकास में अपनी भूमिका ​िसद्ध करनी होगी और अपने कामकाज को प्रोफैशनली ढंग से करना होगा। समाज में प्रत्येक व्यक्ति की ​िवचारधारा ऐसी होगी तो ऐसे अजब-गजब फरमानों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। समाज को अपनी मानसिकता बदलनी होगी तभी महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

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