भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास है वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स
वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत को 118वां स्थान, पड़ोसी देश आगे…
बीती 20 मार्च को वर्ल्ड हैप्पीनेस डे के दिन दुनियाभर के खुशहाल देशों की सूची जारी की गई। फिनलैंड लगातार आठ सालों से दुनिया का सबसे खुशहाल देश है। जबकि डेनमार्क, आइसलैंड और स्वीडन चार सर्वोच्च खुश देशों में शामिल हैं। 147 देशों की इस हैप्पीनेस इंडेक्स रैंकिंग में भारत को 118वां स्थान हासिल हुआ है। पिछले साल भारत 126वें नंबर पर था, उस हिसाब से देखें तो भारत की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन चौंकाने वाली बात भारत के कुछ पड़ोसी देश जैसे नेपाल, पाकिस्तान हैप्पीनेस की रैंक में भारत से भी आगे रहे हैं। जबकि श्रीलंका और बंगलादेश रैंक के साथ भारत से पीछे हैं। आश्चर्यजनक रूप से खुशहाली में युद्धग्रस्त फलस्तीन और यूक्रेन इस साल भी भारत से आगे हैं। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वेलबीइंग रिसर्च सेंटर, गैलप, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समाधान नेटवर्क और स्वतंत्र संपादकीय बोर्ड द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
खुशी के मानक निर्धारण के जो पैमाने पश्चिमी देशों द्वारा प्रयोग में लाये जाते हैं उनकी विश्वसनीयता व तार्किकता को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। निस्संदेह, हमारा देश दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। निस्संदेह, देश में गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक सुरक्षा के मोर्चे पर काफी कुछ करने की जरूरत है लेकिन तबाह हो चुका फिलीस्तीन, युद्ध में बर्बाद यूक्रेन व हाथ में कटोरा लेकर दुनिया से मदद की भीख मांगता फिरता पाकिस्तान खुशी के मामले में हम से आगे नहीं हो सकते। फिनलैंड को दुनिया का सबसे खुश देश बताया जा रहा है। इसी कड़ी में डेनमार्क व स्वीडन भी हैं। ये विकसित देश भारत के एक शहर जितनी आबादी वाले देश हैं। इनके यहां साक्षरता दर ऊंची है व समृद्ध संसाधन उपलब्ध हैं। ऐसे में इंडेक्स बनाते समय कौन से फार्मूले को अपनाया जाता है, ये समझ से परे है।
असल ये कोई पहला मौका नहीं है जब भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीचा दिखाने के लिये हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत को पिछड़ा हुआ साबित करने की कुचेष्टा की गई है। पिछले साल भी हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत को पाकिस्तान से नीचे दिखाया गया था। इस बार भी पाकिस्तान को भारत से बेहतर स्थिति में बताया गया है। जबकि जगजाहिर है कि पाकिस्तान की स्थिति आतंकवाद के केंद्र के रूप में है, जो आईएसआईएस सहित 12 सबसे खतरनाक विदेशी आतंकवादी संगठनों को संरक्षण देता है। देश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं के विरुद्ध उच्च स्तर की धार्मिक हिंसा होती है। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की चिंताजनक दर, शारीरिक उत्पीड़न और बाल श्रम की लगातार घटनाओं की खबरें सामने आती रहती हैं। असुरक्षित पेयजल के कारण हर साल ढाई से तीन लाख बच्चों की मौत हो जाती है। भारत में साक्षरता दर 77 फीसदी है जबकि पड़ोसी देश में यह 59 फीसदी है। भारत की लाइफ एक्सपेक्टेंस 71 वर्ष है जबकि पाकिस्तान की 66.5 वर्ष है।
गरीबी दर की बात करें तो भारत के ग्रामीण क्षेत्र में 11.6 फीसदी और शहरी में 6.3 फीसदी जबकि पाकिस्तान की गरीबी दर 40 फीसदी से ज्यादा है। हाल ही में पाकिस्तान में एक ट्रेन को कुछ विद्रोहियों ने हाइजैक कर लिया था। यह ट्रेन हाइजैकिंग के मामले में अब तक का पहला मामला था। पाकिस्तान आए दिन आतंकी हमलों का सामना करने के साथ ही विद्रोहियों की चुनौतियों के चलते गृह युद्ध का सामना कर रहा है। इस बीच वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान के लोग भारत से ज्यादा खुश हैं, जिसके चलते इस लिस्ट में पाकिस्तान का नाम भारत से पहले आता है। पाकिस्तान के क्षेत्र बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हो रहा है। बीते दिनों जिनेवा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 58वें सत्र में बलूच नेशनल मूवमेंट के समन्वयक नियाज बलूच ने पाकिस्तान पर राजनीतिक असहमति को दबाने और बलूचिस्तान में अत्याचार करने का आरोप लगाया है।
वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा जारी कई दूसरे इंडेक्स और सूचियों में भी जान- बूझकर भारत की छवि को धूमिल करने की कोशिश की जाती है। वर्ष 2022 में वर्ल्ड हंगर इंडेक्स के माध्यम से भारत की छवि को खराब किया गया था। उस समय केंद्र सरकार ने इस पर ऐतराज जताते हुए कहा था कि वैश्विक भूख सूचकांक 2022 में भारत को 107वें स्थान पर रखना देश की छवि को ‘एक राष्ट्र जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है’ के रूप में खराब किए जाने के निरंतर प्रयास का हिस्सा है। जीवन की तमाम समस्याओं के बीच हर मनुष्य खुश रहना चाहता है। इसके लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है। खुश रहने की यह होड़ दुनिया भर के देशों में है लेकिन यह किस हद तक संभव हो पाता है? यह तथ्य है कि दुनिया के चंद देश ही अपने नागरिकों की खुशहाली की चिंता करते हैं।
भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देशों के सामने कई चुनौतियां हैं। बेरोजगारी, महंगाई और महंगे होते इलाज से जूझते लोगों में निराशा जरूर पैदा होती है, पर संघर्षों के बीच भी वे अपनी खुशियां तलाश ही लेते हैं। लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों से भारत को इंडेक्स में नीचे रखा गया है, वो इंडेक्स की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। पड़ोसी देश पाकिस्तान और नेपाल के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। ऐसे में इस बात का आभास होता है कि देश की तरक्की से चिढ़ने वाली अंतर्राष्ट्रीय ताकतें भारत की छवि को किसी ने किसी तरीके से ठेस पहुंचाना चाहती हैं, इसके लिये वो नित नए स्वांग रचा करती हैं। हैप्पीनेस इंडेक्स भी देश की तरक्की से जलने वाली ताकतों की रणनीति का ही हिस्सा जान पड़ता है। सच यह भी है कि पश्चिमी पैमाने पर भारतीयों की खुशियों को नहीं मापा जा सकता।
दुख-सुख के बीच यहां लोग थोड़े में गुजारा करते हुए अपनी खुशियां तलाश लेते हैं। मगर इसके लिए अवसर को आसान बनाने की जिम्मेदारी सरकारों की होती है। नागरिकों को सुरक्षित वातावरण और विकास के समान अवसर मिलेंगे, तो खुशियां उनके चेहरे पर निस्संदेह चमकेंगी। पिछले दस सालों में देश में लगभग हर क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि और विकास हुआ है। कोरोना काल में भारत ने स्वयं वैक्सीन का उत्पादन करने का बड़ा काम किया बल्कि दुनियाभर में वैक्सीन भेजी भी। कोरोना काल में जब दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देशों का हाल बेहाल था, लोग भूख और दवाईयों के अभाव में मर रहे थे। तब भारत में कहीं भी भोजन और दवाई का अभाव दिखाई नहीं दिया। गरीबी दूर करने के लिये केंद्र और राज्य सरकारें तमाम कल्याणकारी योजनाएं संचालित कर रही हैं। बिना किसी लाग लपेट के ये कहा जा सकता है मोदी सरकार के लगभग 11 साल के शासन में देश की दिशा और दशा बदली है।