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सिंधु जल संधि : भारत ने सिंधु जल संधि की समीक्षा और संशोधन के लिए पाकिस्तान को औपचारिक नोटिस भेजा है। सरकारी सूत्रों ने बुधवार को बताया कि यह नोटिस 30 अगस्त को सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद 12 (3) के तहत भेजा गया है। भारत का कहना है कि संधि की परिस्थितियों में मूलभूत बदलाव हुए हैं, जिससे पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता महसूस हो रही है।
Highlight :
सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता था। इस संधि का उद्देश्य दोनों देशों के बीच जल वितरण पर सहयोग और जानकारी का आदान-प्रदान करना है। भारत ने नोटिस में कुछ प्रमुख चिंताओं का उल्लेख किया है, जैसे जनसंख्या परिवर्तन, पर्यावरणीय मुद्दे और स्वच्छ ऊर्जा के विकास की आवश्यकता। इसके अलावा, पाकिस्तान में निरंतर आतंकवाद के प्रभाव को भी समीक्षा का एक कारण बताया गया है।
भारत ने किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं के विवाद के संदर्भ में यह नोटिस जारी किया है। एक सरकारी सूत्र ने कहा, ये बदलाव संधि की शर्तों की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। भारत ने विश्व बैंक से अनुरोध किया है कि वह विवादों के समाधान के लिए दोनों तंत्रों (तटस्थ विशेषज्ञ और आर्बिट्रेशन कोर्ट) की प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे। भारत ने कहा है कि वह विवाद को हल करने के लिए सीधे बातचीत शुरू करने की उम्मीद करता है।
हालांकि, पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार किया। पाकिस्तान के निरंतर आग्रह पर, विश्व बैंक ने पिछले साल तटस्थ विशेषज्ञ और आर्बिट्रेशन कोर्ट की प्रक्रियाओं दोनों पर कार्रवाई शुरू की। इस संदर्भ में, भारत ने स्पष्ट किया है कि समान मुद्दों पर समानांतर विचार सिंधु जल समझौते के किसी भी प्रावधान के अंतर्गत नहीं आते हैं।
बता दें कि, सिंधु जल संधि के प्रावधानों के तहत, सतलज, व्यास और रावी का पानी भारत को, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को दिया गया है। दोनों देशों के जल आयुक्तों को साल में दो बार मुलाकात करनी होती है, और परियोजना स्थलों एवं महत्वपूर्ण नदी हेडवर्क के तकनीकी दौरे का प्रबंध करना होता है। अब भारत की इस नई पहल के बाद यह देखना होगा कि पाकिस्तान का क्या रुख होता है और क्या इस विवाद को सुलझाने में कोई प्रगति हो सकेगी।
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