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तै की दर्द न आया...

मुझे आज फिर वह मंजर याद आ गया जब अमर शहीद रमेश जी..

11:14 AM Apr 26, 2025 IST | Kiran Chopra

मुझे आज फिर वह मंजर याद आ गया जब अमर शहीद रमेश जी..

तै की दर्द न आया

मुझे आज फिर वह मंजर याद आ गया जब अमर शहीद रमेश जी ने लिखा था जब बुजुर्ग निहत्थे लाला जी को आतंकवा​िदयों ने गोली मारी थी और बसों से हिन्दुओं को चुन-चुन कर हत्या कर रहे थे कि तै की दर्द न आया। आज फिर दिल रो रहा है और इतना गुस्सा है कि एक-एक कश्मीरी आतंकवादी को पूछें कि तै की दर्द न आया। जब तुम किसी के पति को उसकी पत्नी के सामने, पिता को उसके बच्चों के सामने, उस नई ब्याहता के सामने जिसकी मेहंदी का रंग नहीं सुखा, लाल चूड़ा पहना है, उसके सामने उसके पति को गोलियां मार दीं और हंस रहे हों, फोटो खींच रहे हों। तुम इंसान नहीं हैवान हो जो चंद पैसों की खातिर इंसानियत का खून कर दिया। उन मासूम लोगों का जो अपने परिवार के साथ चंद खु​शी के पल बिताने आए थे, उनके उन पलों की कल्पना करके ही रूह कांप जाती है। तुम हैवानों ने मासूम निहत्थे लोगों का कत्ल तो किया, तुमने कश्मीरियों की रोजी-रोटी भी छीन ली। कुछ महीने पहले मैं भी कश्मीर जाकर आई। भारत की जन्नत जिसे गवर्नर मनोज सिन्हा और मोदी जी ने आर्मी आैर स्थानीय लोगों के सहयोग से सींच-सींच कर शांति बहाल की, खुशहाली दी। स्थानीय लोग पर्यटकों के आने से खुश थे। नए-नए बिजनेस खुल रहे थे। युवाओं को रोजगार मिल रहा था। 90 के दशक में बंद हुए सिनेमा हाल खुल गए। ​िपछले साल 2.35 करोड़ टूरिस्ट जम्मू-कश्मीर और लद्दख पहंचे। इससे यह तो समझ आता है कि स्थानीय लोग नहीं पाकिस्तान या दूर बैठे लोग फैसला ले रहे हैं, योजना बनाते हैं और आतंक के आका आतंकवादियों को उनकी दिल दहला देने वाली परफोरमेंस पर पैसे देते होंगे, जो ऐसी दिल दहला देने वाली घटना घटी।

कोई भी मजहब ऐसी दरिन्दगी नहीं सिखाता तो कश्मीर और इस्लाम के नाम पर यह सब नहीं होना चाहिए। मेरा मानना है कि वो लोग जिन्होंने यह कांड किया न तो वह मुसलमान हैं, न इंसान, न उन्होंने अपनी मां का दूध पिया है। वह किसी जानवर के बच्चे हैं। जानवर भी उन्हें अपना बच्चा कहने से पहले हजार बार सोचेंगे। असली मुसलमान तो आदिल हुसैन है जो खच्चर पर पर्यटकों को ले जा रहा था आैर उनको बचाने के लिए अपनी जान दे दी, जो घर का इकलौता बेटा था।

जिस पहलगाम घाटी में जिसे कश्मीर का ​िस्वट्जरलैंड कहा जाता हो और वहां चारों तरफ से पहाड़ों की तलहटी में सुंदर कुदरती नजारें हों वहां छुट्टियां मनाने गए देशभर के 26 लोगों से खून की होली खेली जाए तो इसे क्या कहेंगे? सब जानते हैं कि कश्मीर घाटी में चार दिन पहले जो आतंकवादी हमला हुआ वह देश के लिए एक ऐसा मंजर है कि हर कोई गुस्से में है और आतंकियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग पूरे देश और दुनिया से उठ रही है। जो 26 लोग आतंकियों द्वारा मारे उनके परिजनों का एक ही सवाल है कि हमारे रिश्तेदार को तो मार दिया लेकिन हमें भी जीते जी मार डाला है। कहीं बच्चे पिता को तो कहीं पत्नी अपने सुहाग, कहीं बेटी ​अपने ​पिता को आंसुओं से अंतिम विदाई दे रहे हैं। यह राष्ट्रीय शोक है। मां-बेटी व बहन विधवा हो गई। बच्चे अनाथ हो गए, इन हत्यारों को जमीन में दफनाने की मांग पूरा देश कर रहा है।

करनाल के जिस नेवी ऑफिसर विनय नरवाल की हत्या की गयी उसकी पत्नी हिमांशी ने तिरंगे में लिपटे पति के शव को गले लगाकर कहा कि तुम पर हमेशा गर्व रहेगा। विनय नरवाल और पत्नी हिमांशी की शादी 6 दिन पहले ही हुई थीं और वह हनीमून मनाने गए थे लेकिन आतंकियों ने खून की होली खेली। इसी कड़ी में देशभर से विशेष रूप से कानपुर के जिस शुभम की हत्या की गयी वह भी पहलगाम गया था और उसकी शादी को महज चार महीने ही हुए थे। उसकी पत्नी आशिना के सामने उनकी हत्या कर दी गयी। इसी कड़ी में बैंगलुरू के कारोबारी मंजूनाथ राव और उनकी पत्नी पल्लवी ने इस हत्या से एक घंटा पहले जो वीडियो बनाया उसमें पहलगाम जाने की खुशी को शब्दों में बयान किया था लेकिन एक घंटे बाद ही दृश्य बदल गया। आतंकियों ने उसकी आंखों के सामने ही उनके पति मंजूनाथ की हत्या कर दी तो पल्लवी ने कहा मेरा पति का क्या कसूर था मुझे भी मार डालो तो आतंकवादी ने कहा – जाओ जाकर सरकार से कह दो हम क्या कर सकते हैं? ये शब्द मंजूनाथ की पत्नी ने सोशल मीडिया पर इंटरव्यू में बताए हैं। इसी तरह कनार्टक के ही दो परिवारों के घरों में सन्नाटा पसर गया है। भारतभूषण को पत्नी सुजाता और तीन साल के बेटे के सामने आतंकवादियों ने गोलियां मारकर मौत की नींद सुला दिया।

पहलगाम घाटी में जो कुछ हुआ वह अमानवीय है। हम हर किसी के दर्द में शामिल हैं। मृतकों की सूची लम्बी है। उड़ीसा के भुवनेश्वर के प्रशांत सतपथी की हत्या उनकी पत्नी और नौ साल के बेटे के सामने कर दी गयी। पहलगाम जाकर छुट्टियां मनाना उनके लिए मौत का संदेशा लेकर आया। प्रशांत का भाई सुशांत आतंकवादियों के खात्मे का इंतजार कर रहा है। अमरीका के फलोरिडा से छुट्टियां बिताने आए बितान अपनी पत्नी के साथ पहलगाम पहुंचे और इस आईटी अधिकारी की हत्या उनकी पत्नी के सामने कर दी गयी। छत्तीसगढ़ में रायपुर के कारेााबारी दिनेश मिरानिया की हत्या आतंकवादियों ने पहलगाम में उस दिन की जब वह पत्नी के साथ सालगिराह मना रहा था। बिहार के मनीष रंजन की हत्या उनकी पत्नी और बच्चों की आंखों के सामने कर दी गयी। सूरत के सैलेश कालठिया अपना 44वां जन्मदिन मना रहे थे और उनकी हत्या आतंकियों ने कर डाली। केरल के रामचंद्रन जो सीनियर सीटीजन थे, भी पहलगाम में आतंकियों की गोली का ​शिकार हुए। इसी तरह मुंबई के संजय लेले, हेमंत जोशी और अतुल मोने पहलगाम पहुंचे लेकिन वापिस नहीं आये। सबके घरों में लाशें पहुंची।

दु:ख की बात यह है कि आतंकवादियों ने पहले धर्म पूछा और कलमा पढ़ने को कहा और फिर चुन-चुन कर वही काला इतिहास लिखा जो पंजाब में आतंकवाद के दिनों में हिंदूओं को चुन-चुनकर मारे जाने के काले पन्नों से जुड़ा है। हर किसी का सवाल यही है कि अब जल्दी से जल्दी इन आतंकियों को जमीन में दफनाकर हिसाब-किताब लिया जाये। इसका हर किसी को इंतजार है। पूरा देश आंसुओं से भरा पड़ा है और गुस्से के गुब्बार फूट रहे हैं। कलम निहत्थों के खून बहने को लेकर थमी जा रही है और आंखों में आंसू बह रहे हैं। ऐसे में पीएम मोदी से एक ही अपील है कि आपने इन आतंकवादियों को अंजाम तक पहुंचाने का संकल्प लिया है। हमें इन आतंकवादियों को बहुत जल्द ही कफन में देखने का इंतजार रहेगा। पहलगाम के इन सभी 26 लोगों को नमन है। प्रभु से कामना है और सरकार से उम्मीद है कि मानवता के नाम पर इस खूनी खेल पर लगाम कसी जाए वरना देश कब तक हिसाब-किताब और न्याय मांगता रहेगा।

मेरा कश्मीर से बहुत स्नेह है। अश्विनी जी के साथ बिताए हुए शादी के बाद के पल आैर अमरनाथ यात्रा पर अपने सास-ससुर, देवर के साथ, अपने माता-पिता के साथ हर गर्मी की छुट्िटयां। अभी कुछ महीने पहले अपने ​िमत्रों के साथ और वहां की बैस्ट प्रोपर्टी ललित पैलेस में ठहरने का मौका, एक-एक पल याद आता है। यह हादसा फिर न किसी के साथ हो। मोदी से पूरे देश को उम्मीदें हैं।

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