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DU में बवाल, एडमिशन फॉर्म में मातृभाषा में शामिल किया- मुस्लिम और बिहारी ऑप्शन

डीयू एडमिशन फॉर्म में मातृभाषा विवाद, शिक्षक संगठन नाराज

11:46 AM Jun 20, 2025 IST | Neha Singh

डीयू एडमिशन फॉर्म में मातृभाषा विवाद, शिक्षक संगठन नाराज

डीयू के एडमिशन फॉर्म में मातृभाषा के स्थान पर ‘मुस्लिम’ और जातिसूचक शब्दों को शामिल करने पर विवाद हुआ है। प्रोफेसर रुद्राशीष चक्रवर्ती ने इसे सांप्रदायिक और संविधान के खिलाफ बताया। उर्दू को हटाकर मुस्लिम को भाषा के रूप में दर्शाने से अल्पसंख्यक समुदाय को अलग साबित करने की कोशिश की जा रही है, जो शिक्षकों और छात्रों के लिए चिंताजनक है।

दिल्ली विश्विद्यालय में भाषा को लेकर बवाल मच गया है। डीयू के अंडर ग्रेजुएट यानी एडमिशन की शुरुआत हो गई है, लेकिन एडमिशन फॉर्म ने ही नया विवाद पैदा कर दिया है। दरअसल, रजिस्ट्रेशन फॉर्म में मातृभाषा के विकल्प से ‘उर्दू’ को हटाकर इसकी जगह ‘मुस्लिम’ को शामिल कर दिया गया है। इस पर डीयू के शिक्षक संगठन ने विश्विद्यालय प्रशासन पर इस्लामोबिया फैलाने यानी मुस्लिमों के प्रति नफरत फैलाने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं रजिस्ट्रेशन फॉर्म में बिहारी और जातिसूचक शब्दों को शामिल किया गया है। आरोप है कि यह न केवल संविधान के आठवीं अनुसूची का उल्लंघन है, बल्कि कई शिक्षकों और छात्रों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है।

जातिसूचक शब्द भी शामिल

दिल्ली विश्विद्यालय के एडमिशन फॉर्म में छात्रों से उनकी मातृभाषा पूछी जाती है। इस बार एडमिशन फॉर्म में मातृभाषा की जगह समुदाय और जातिसूचक शब्दों को जोड़ दिया गया है। फॉर्म में मातृॉभाषा में ‘उर्दू’ विकल्प गायब कर उसकी जगह मुस्लिम को एक भाषा के रूप में दिखाया गया है। इसके साथ ही मातृभाषा के कॉलम में ‘बिहारी’, ‘चमार’, ‘मजदूर’, ‘देहाती’, ‘मोची’, ‘कुर्मी’ आदि जातिसूचक शब्द भी लिखे गए हैं।

भड़के डीयू प्रोफेसर

किरोड़ीमल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर रुद्राशीष चक्रवर्ती ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “यह पागलपन है, तो इसमें एक सोची-समझी योजना है। विश्वविद्यालय का यह कदम स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक है। उर्दू को हटाना केवल एक भाषा को हटाना नहीं है, यह उर्दू द्वारा बनाई गई साझा संस्कृति और साहित्य को मिटाने का प्रयास है।”

उन्होंने यह भी कहा कि डीयू के अधिकारी शायद यह मानते हैं कि उर्दू केवल मुसलमानों की भाषा है, इसलिए उन्होंने ‘उर्दू’ की जगह ‘मुस्लिम’ को भाषा के रूप में जोड़ दिया। यह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी को ‘अन्य’ या ‘अलग’ साबित करने की कोशिश भी है।

जानबूझकर की गई चूक?

डीयू की प्रोफेसर और शिक्षक नेता आभा देव हबीब ने कहा, “3 लाख से ज़्यादा छात्र इस फॉर्म को भरने जा रहे हैं। डीयू का यह पतन योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है। यह संविधान के खिलाफ़ है। उर्दू भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त भाषाओं में शामिल है। ऐसे में किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा इसे मातृभाषा के तौर पर हटाना संविधान के खिलाफ़ माना जा सकता है।”

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