महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर विवाद तेज, किताबें जलाईं, स्कूलों को चेतावनी
देवेंद्र फडणवीस की सफाई: “हिंदी थोपी नहीं जा रही”
मुंबई : महाराष्ट्र में एक बार फिर भाषाई अस्मिता को लेकर राजनीति गरमा गई है। राज्य सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी पढ़ाए जाने के सरकारी निर्णय के खिलाफ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) खुलकर मैदान में आ गई है। पार्टी प्रमुख राज ठाकरे के नेतृत्व में मनसे कार्यकर्ताओं ने बुधवार को मुंबई, ठाणे, नासिक सहित कई जिलों में स्कूलों में जाकर हिंदी पाठ्यपुस्तकों को फाड़ा, जलाया और विरोध दर्ज कराया। कार्यकर्ताओं ने स्कूलों के प्रिंसिपलों को चेतावनी भरे पत्र भी सौंपे हैं, जिनमें कहा गया है कि यदि हिंदी को पढ़ाने का दबाव जारी रहा तो “मनसे इसका सख्त विरोध करेगी और आगे और बड़ा आंदोलन करेगी।”
राज ठाकरे ने किया खुला विरोध, बोले- “हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है” मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य सरकार को कड़ी चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “हिंदी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। इसे जबरन महाराष्ट्र पर थोपा नहीं जा सकता। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के नाम पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार की मिलीभगत का नतीजा है। इसके पीछे IAS लॉबी का दबाव है।” राज ठाकरे ने यह भी बताया कि उन्होंने 17 जून को ही मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हिंदी को अनिवार्य न बनाए जाने की अपील की थी। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया था कि हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा, लेकिन अब भी दबाव जारी है। मैं आज सभी स्कूलों के प्रिंसिपलों को पत्र भेज रहा हूं, ताकि वे इस आदेश का पालन न करें।”
सरकारी आदेश क्या कहता है?
मामला हाल ही में राज्य सरकार द्वारा जारी GR (सरकारी निर्णय) से जुड़ा है, जिसमें त्रिभाषा फार्मूले के तहत कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को मराठी और अंग्रेज़ी के साथ हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने का निर्देश दिया गया है। हालांकि विवाद के बाद सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि ‘अनिवार्यता’ शब्द को आदेश से हटा दिया गया है और छात्रों को वैकल्पिक भाषा चुनने की स्वतंत्रता होगी। GR में यह भी उल्लेख है कि यदि किसी कक्षा में 20 से अधिक छात्र हिंदी के बजाय कोई अन्य भाषा पढ़ना चाहते हैं, तो उनके लिए शिक्षक की व्यवस्था की जाएगी या ऑनलाइन विकल्प दिया जाएगा।
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देवेंद्र फडणवीस की सफाई: “हिंदी थोपी नहीं जा रही”
राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,“मैंने खुद राज ठाकरे से बात की है और स्पष्ट किया है कि सरकारी आदेश में कहीं भी हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है। जो छात्र तीसरी भाषा के रूप में कोई और भाषा चुनना चाहते हैं, उन्हें यह छूट दी जाएगी।” उन्होंने कहा कि यह केवल त्रिभाषा नीति को औपचारिक रूप देना है, जो कई स्कूलों में पहले से ही लागू थी।
कांग्रेस और विपक्ष का भी सरकार पर हमला
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि यह आदेश भाषा की विविधता पर हमला है। उन्होंने कहा, “त्रिभाषा फार्मूला पंडित नेहरू की सोच थी ताकि सभी मातृभाषाओं को सम्मान मिल सके। लेकिन आज इसके नाम पर हिंदी थोपी जा रही है। यह आरएसएस के हिंदू राष्ट्र एजेंडे का हिस्सा है।”सपकाल ने कहा कि मराठी कोई केवल भाषा नहीं, बल्कि एक संस्कृति है, और इस तरह की जबरदस्ती लोकतंत्र के खिलाफ है।
राजनीतिक मकसद और BMC चुनाव की रणनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव के मद्देनजर गरमाया गया है। मराठी मतदाताओं को एकजुट करने के लिए भाषा और अस्मिता के मुद्दों को हवा देना मनसे की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। राज ठाकरे पहले भी मराठी पहचान और क्षेत्रीय भाषा को लेकर इसी प्रकार की राजनीति करते रहे हैं।
बच्चों की पढ़ाई पर असर, स्कूल प्रशासन असमंजस में
विवाद के बीच राज्य में अधिकांश स्कूल खुल चुके हैं और पाठ्यपुस्तकें वितरित की जा चुकी हैं। लेकिन अब यह विवाद स्कूल प्रशासन और बच्चों के अभिभावकों के लिए नई चिंता बन गया है। स्कूलों को यह समझ नहीं आ रहा कि वे किस दिशा में जाएं, सरकार की नीति का पालन करें या मनसे की चेतावनियों को गंभीरता से लें।