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वक्फ बोर्ड की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की, शाहदरा में गुरुद्वारे की जमीन पर था दावा

सुप्रीम कोर्ट ने शाहदरा गुरुद्वारे की जमीन पर वक्फ बोर्ड का दावा खारिज किया

04:57 AM Jun 04, 2025 IST | Aishwarya Raj

सुप्रीम कोर्ट ने शाहदरा गुरुद्वारे की जमीन पर वक्फ बोर्ड का दावा खारिज किया

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज कर दी, जिसमें शाहदरा स्थित जमीन पर गुरुद्वारे के रूप में दावा किया गया था। न्यायमूर्ति संजय करोल और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने वक्फ बोर्ड की अपील को अस्वीकार करते हुए 2010 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली वक्फ बोर्ड की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें शाहदरा स्थित एक धार्मिक स्थल पर अपना दावा जताया गया था, जो वर्तमान में एक गुरुद्वारे है। यह मामला Delhi Waqf Board बनाम हीरा सिंह के रूप में दर्ज था। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ वक्फ बोर्ड द्वारा दायर की गई अपील को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने पहले ही वक्फ बोर्ड का दावा अस्वीकार कर दिया था। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने वक्फ बोर्ड की ओर से दलील दी कि निचली अदालतों ने इस स्थान को मस्जिद माना था, लेकिन अब वहां “कुछ तरह का गुरुद्वारा” बना हुआ है।

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जब गुरुद्वारा है, तो उसे रहने दें

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने वक्फ बोर्ड की ओर से दलील दी कि निचली अदालतों ने इस स्थान को मस्जिद माना था, लेकिन अब वहां “कुछ तरह का गुरुद्वारा” बना हुआ है। इस पर न्यायाधीश शर्मा ने टिप्पणी की, “कुछ तरह का नहीं, एक विधिवत रूप से कार्यरत गुरुद्वारा है। जब एक धार्मिक स्थल पहले से ही कार्यरत है, तो आप खुद ही उस दावे को छोड़ दें।”

वक्फ बोर्ड ने “मस्जिद ताकिया बब्बर शाह” होने का दावा किया था

दिल्ली वक्फ बोर्ड का कहना था कि शाहदरा स्थित यह संपत्ति “मस्जिद ताकिया बब्बर शाह” के रूप में जानी जाती थी और यह स्थल “अनादिकाल” से धार्मिक प्रयोजन के लिए समर्पित था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह अपील खारिज कर दी।

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वक्फ बोर्ड ने “मस्जिद ताकिया बब्बर शाह” होने का दावा किया था

दिल्ली वक्फ बोर्ड का कहना था कि शाहदरा स्थित यह संपत्ति “मस्जिद ताकिया बब्बर शाह” के रूप में जानी जाती थी और यह स्थल “अनादिकाल” से धार्मिक प्रयोजन के लिए समर्पित था। वहीं, प्रतिवादी ने दलील दी कि यह संपत्ति वक्फ की नहीं है, बल्कि इसके असली मालिक मोहम्मद अहसान ने वर्ष 1953 में उसे यह संपत्ति बेच दी थी।

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