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प्रकृति से संस्कृति की ओर भारत को जाना होगा!

02:41 AM Dec 13, 2023 IST | Sagar Kapoor

देश प्रेम केवल भावना नहीं, जीवन व्यवहार होता है। देश से प्रेम करने का अर्थ मात्र यह नहीं कि किसी एक अन्यथा दूसरी राजनीतिक पार्टी को सत्ता में लाया जाए, बल्कि भारत से मुहब्बत का अर्थ है, केवल भारत माता की जय जय कार बल्कि भारत के जल, जंगल, जमीन, गाय, पशुधन, जानवर, पेड़-पौधों और व्यक्तियों की सुरक्षा हमारा परम् दायित्व है, जिसको प्रत्येक भारतीय को निभाना है, ठीक ऐसे ही, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा है कि आज समाज और राष्ट्र के सम्मुख जितनी भी चुनौतियां हैं, उनका मुख्य कारण है, की मनुष्य अपने मूल भाव, अर्थात् प्रकृति से दूर चला गया है। जिन पांच तत्वों से हमारा शरीर बना है, यह पूर्ण सृष्टि बनी है, यदि हम उनको उनके मूल भाव में स्थापित नहीं करेंगे तो समस्याएं और दोष आना तय है। इसे जल्द से जल्द ठीक करना होगा
यह बड़ा सुखदाई व संतोषजनक पहलू है कि जहां विश्व में अधिकतर देशों में वातावरण को लेकर वैमनस्य की स्तिथि है, भारत उस पर न केवल देशी बल्कि अंतर्देशीय स्तर पर जुझारू अंदाज से लगा हुआ है। चाहे वह दावोस की अंतर्राष्ट्रीय वातावरण संगोष्ठी हो, दुबई में संपन्न "कॉप-28" में भारत का प्रतिनिधित्व हो या दिल्ली के जल वायु दूषित प्रांत में वातावरण के प्रति देश को जागरूक करने के प्रति राष्ट्र जागरण अभियान हो, वातावरण में शुद्धि लाने का निरंतर प्रयास चल रहा है, भारत में। दावोस में वातावरण संगोष्ठी और प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में कदम उठाए गए, उन्हीं को जी-20 में भी दोहराया गया। वास्तव में होता क्या है कि जिस प्रकार से भारत की राजनीति में लागातार कुछ न कुछ चलता ही रहता है, मीडिया प्रायः वातावरण जैसे मुद्दों पर ध्यान नहीं देता ऐसे ही हाल ही में दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में वातावरण को लेकर एक बहुत बड़ा जलसा हुआ था, जहां अच्छी खासी जनता जुड़ी थी।
वातावरण के प्रति जागरूकता लाने के इस अभियान का संचालन किसी और ने नहीं, बल्कि प्रतिष्ठित वातावरणविद् और आरएसएस के पूर्व थिंक टैंक, के.एन. गोविंदाचार्य ने किया था, जो सियासी उथल-पुथल से है कर दिल्ली के अत्यंत प्रदूषित वातावरण में खुशगवार हवा का झोंका था, जिसमें मुख्य रूप से नदियों को बचाने और उन्हें साफ़ करने के आभियान का लेखा-जोखा भारत के जाने-माने पर्यावरण वैज्ञानिकों ने दिया, जिसमें किसी ने बताया कि किस प्रकार से उन्होंने बुंदेलखंड, बेतवा आदि क्षेत्रों में सूखी हुई व समाप्त नदियों का जीर्णोंद्धार किया। इस प्रकार के धरतीपुत्र भारत में काम ही सही, मगर संगठित हैं। इस परिदृश्य में वातावरण को बचाने के लिए गोविंदाचार्य ने कहा-अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है!" यानी नदियों को गंदगी और सूखने से बचाने और वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए रामलीला मैदान से यह तो मात्र शुरूआत है। भारत पर जितने भी आक्रमण हुए, हमारे देश की प्राकृतिक संपत्ति को लेकर हुए क्योंकि अधिकतर विश्व बर्फ़, रेगिस्तान, समुद्र आदि पर आधारित है और भारत जैसे मौसम, फल, मेवे, मसाले, पानी आदि दुनिया में कहीं नहीं हैं।
भले ही मुगलों और अंग्रेजों ने भारत को लगभग 1300 वर्ष कब्जाए रखा हो, आज बकौल शायर, देर आयद, दुरुस्त आयद, सरकार अपने ही देशी लोगों के हाथ है, जिसमें, आपसी भाई चारे और हिंदू-मुस्लिम एकता द्वारा आज सरकार और संगठन प्रकृति जीर्णोंद्धार के राष्ट्र जागरण अभियान में लगे हैं, क्योंकि इस अभियान की रूहे रवां, सुबूही खां का मानना है कि संगठित समाज द्वारा ही अखंड भारत संभव हो पाएगा। जब तक हम धर्म जाति आदि में बंटे रहेंगे, राष्ट्र विरोधियों को पराजित नहीं कर पाएंगे। वक्त की जरूरत है की हम प्रकृति से संवाद करें। हम इस बात को नहीं समझना चाहते कि जो धरती माता, अर्थात भारत माता हमें अपने पालन पोषण के लिए पानी से लेकर सभी खनिज पदार्थ सदियों से प्रदान करती चली आ रही है, इस बेचारी के लिए भी हमरा कोई कर्त्तव्य है। हम उसकी चिंता किए बिना ही उसकी जड़ों को खोदते चले आ रहे हैं।
पर्यावरण को संभालने और संवारने के लिए हम कुछ नहीं कर रहे। चाहे वह पानी हो, बिजली हो, भोजन हो, कुछ भी हो, सभी को बर्बाद करते चले आ रहे हैं। यदि हम भारतीय चाहते हैं की पर्यावरण और वातावरण को सुधारा और संवारा जाए तो समाज के सभी तबकों को साथ लेकर चलना होगा। यूं तो सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास साथ लेकर चल रही है, मगर फिर भी कुछ त्रुटियां ऐसी हैं जो देश को विश्व में अग्रणी बनने से रोक रही हैं। इनमें मुख्य हैं - प्रथम, वामपंथ और उनके मुखौटे, जैसे, नक्सलवाद, माओवाद और छद्म नारीवाद, द्वितीय, अलगाववादी, कट्टरवादी और आतंकवादी संगठन, तृतीय, विदेशी शक्तियां, जो भारत को विश्व गुरू बनते देख इसे हज़म नहीं कर पा रहीं, चौथा, बौद्धिक आतंकवादी, पांचवां, विधर्मी राजनैतिक दल, छठा, कनवर्जन माफिया और सातवां, कॉरपोरेट बाजारवाद। इन सभी का पक्का इलाज करने के लिए, जिन पांच आवश्यक बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता है। प्रथम, सभी धर्मों के अनुयायियों को इस बात का विश्वास दिलाना कि सभी एक हैं यानि धर्म एक है, भले ही आस्थाएं/ पंथ भिन्न हों।
दूसरी बात, "एकम सत्य, विप्रह बहुधा वदंती", अर्थात सच एक ही होता है, भले ही उसके रूप और रास्ते अलग-अलग हों, जिसमें हम सब को जीव-जन्तु, पक्षियों, पेड़ों आदि को उतना ही सम्मान और अहमियत देने हैं, जैसे हम खुद को देते हैं। तीसरे, नारी का पूर्ण सम्मान। चौथे, इस बात में विश्वास कि मानव, प्रकृति का विजेता नहीं। बल्कि प्राकृति का अंग है और अंत में पांचवीं शाम बात यह कि इस धरती पर जब तक हैं, दूसरों का उद्धार करना है, न कि उन पर प्रहार। यदि भारतवासी, यह समझ गए तो भारत जन्नत-उल-फिरदौस बन सकता है।

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