ट्रम्प और नाटो की दादागिरी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी दादागिरी के चलते टैरिफ लगाने की घोषणाएं कर विश्व व्यापार को अनिश्चितता के दौर में धकेल दिया है। एक तरफ भारत और अमेरिका में द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिए बातचीत चल रही है तो दूसरी तरफ ट्रम्प खुद भारत को धमकाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है तब से ही भारत का रूस से सस्ते में तेल खरीदना अमेरिका और उसके दुमछल्ले देशों को खटक रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर इस बात के लिए दबाव डाला था कि वह रूस से तेल पर अपनी निर्भरता कम करे लेकिन भारत ने दबाव के आगे झुकने से साफ इन्कार करते हुए अपने देश के हितों की रक्षा करने के लिए रूस से तेल खरीदना जारी रखा। अब नाटो ने भारत, चीन और ब्राजील को धमकी दी है कि अगर इन्होंने रूस से तेल और गैस की खरीद जारी रखी तो इन पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा। नाटो महासचिव मार्क रूट ने साफ शब्दों में कहा कि मास्को में बैठा व्यक्ति अगर यूक्रेन के साथ युद्ध रोकने की सलाह को गंभीरता से नहीं लेता है, तो फिर उसे आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के लिए कड़े टैरिफ लगाए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि आप बीजिंग या दिल्ली में रहते हैं और या फिर चाहे ब्राजील के राष्ट्रपति हैं तो आपको इस पर विशेष रूप से ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा आप तीन इससे प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ही नाटो महासचिव ने तीनों देशों से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को शांति वार्ता के लिए गंभीरता से राजी कराने के प्रयास करने की भी अपील की। इससे पहले ट्रम्प ने रूस पर यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए दबाव बनाते हुए कहा था कि अगर 50 दिनों के बाद भी युद्ध रोकने का कोई समझौता नहीं किया जाता तो वह रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाएंगे। दुनिया में चल रही टैरिफ वॉर के बीच नाटो का कूदना एक बड़ी चुनौती के समान है। पश्चिमी देशों का नेतृत्व अमेरिका और नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) जो मुख्य रूप से सैन्य और आर्थिक शक्ति का केन्द्र है। साफ है कि नाटो ने यह धमकी ट्रम्प के इशारे पर दी है। अब सवाल यह है कि क्या यह धमकी ब्रिक्स देशों और पश्चिमी देशों के बीच एक नए शीत युद्ध की शुरूआत है? ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संगठन ब्रिक्स इस समय उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को मंच देता है। यह संगठन अब 10 देशों का समूह हो चुका है और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर 41 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है।
शीत युद्ध का मतलब है दो देशों या समूहों के बीच बिना सीधे युद्ध के तनाव, प्रतिस्पर्धा और आर्थिक-सैन्य दबाव। 1945 से 1991 तक अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चला शीत युद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उस समय दोनों पक्षों ने हथियारों की होड़, जासूसी और आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिश की। आज ब्रिक्स और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ता तनाव कुछ वैसा ही दिख रहा है लेकिन यह आर्थिक और भू-राजनीतिक (जियोपॉलिटिकल) मुद्दों पर केंद्रित है। ब्रिक्स समूह लगातार अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए नई ब्रिक्स मुद्रा बनाने की बात कर रहा है ताकि डॉलर के वैश्विक वर्चस्व को चुनौती दी जा सके। उसने अमेरिका के टैरिफ और इजराइल-ईरान युद्ध की भी निंदा की है। इससे अमेरिका और नाटो उसे अपना दुश्मन समझने लगे हैं। यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद ही पश्चिमी देशों ने रूस को व्यापारिक प्रतिबंधों में बांध दिया था।
जिसके बाद भारत और चीन रूस के सबसे बड़े तेल खरीदार बन गए। 2023 में इन दोनों देशों ने रूस से समुद्री मार्ग से आने वाले क्रूड ऑयल के लगभग 85-90 प्रतिशत हिस्से का आयात किया। अकेले भारत हर दिन 1.6 से 1.7 मिलियन बैरल कच्चा तेल रूस से खरीदता है, जो भारत की कुल दैनिक जरूरत का लगभग 35 प्रतिशत है। रूस भारत को भारी-भरकम डिस्काउंट पर तेल बेचता है, ऐसे में ट्रम्प की धमकी भारत की ऊर्जा रणनीति पर सीधा हमला करती है। जी-7 देशों ने पहले ही रूस तेल की कीमत पर 60 डॉलर प्रति बैरल का कैप लगा रखा है। इसलिए भारत 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत पर रूसी तेल खरीदता है, जबकि इंटरनेशनल मार्केट करीब 70 डॉलर प्रति बैरल तेल बिक रहा है। (कीमत 66 से 72 के बीच) ऐसे में समझा जा सकता है कि भारत को कितना फायदा हो रहा है।
हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत से रूसी तेल का आयात जून महीने में 11 महीनों में उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। ट्रम्प और नाटो की चेतावनी भारत के लिए परेशानी पैदा करने वाली है। रूस हमारा परखा हुआ मित्र रहा है। भारत हर हाल में उसके साथ रहेगा। ट्रम्प जिस तरह से पाकिस्तान को गले लगा रहे हैं उसको लेकर भी भारत को सतर्क रहना होगा। भारत के लिए अभी यह भी देखना होगा कि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार पर होने वाला नया समझौता घरेलू अर्थव्यवस्था और व्यापार पर क्या असर डालता है। भारत के पास समझौता करने के लिए एक अगस्त तक की मोहलत है। समझौते में जैनेटिकली मॉडिफाइड फसलों, डेयरी उत्पाद और दवा निर्यात जैसे मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है। भारत के सामने बहुत सी चुनौतियां हैं और विकल्प सीमित हैं। इसलिए भारत को सतर्क रवैया अपना कर आगे बढ़ना होगा। भारत ने हमेशा ही संतुलन की नीति अपनाई है। वह अपने मित्र रूस से गहरे संबंध बनाए रखेगा और साथ ही वह पश्चिम के भी पूरी तरह से खिलाफ नहीं जाना चाहता। भारत को एक बार फिर ऐसी धमकियों का जवाब अपनी स्वतंत्र नीतियों से देना होगा।