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मोदी + हिन्दुत्व + वैलफ़ेयर स्कीम

02:46 AM Dec 07, 2023 IST | Sagar Kapoor

थी खबर गर्म कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े
देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ
विधानसभा चुनाव परिणाम, विशेष तौर पर हिन्दी बैल्ट के तीन प्रदेश मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़, के परिणाम बता गए हैं कि जिन्होंने सोचा था कि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव के बाद भाजपा के लिए जीतना मुश्किल होगा और विशेष तौर पर मध्यप्रदेश में शासन विरोधी भावना एंटी इंकमबंसी पार्टी को ले डूबेगी, वह कितने ग़लत निकले। एक्ज़िट पोल भी कांटे की टक्कर बता रहे थे। सब अनुमान ग़लत निकले और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा कांग्रेस का ‘तमाशा’ बना गई। जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले पन्नू का मामला उछाला था को भी समझ आ जाएगी कि उन्हें भारत की समझ नहीं है। भाजपा को मध्यप्रदेश में 54, राजस्थान में 42 और छत्तीसगढ़ में 39 सीटें अधिक मिली हैं और कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में 48, राजस्थान में 30 और छत्तीसगढ़ में 33 सीटें खोई हैं।
यह मामूली अंतर नहीं है। 2018 के चुनावों में कांग्रेस तीनों प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीतने में सफल रही थी पर फिर भी भाजपा अगले वर्ष लोकसभा चुनावों में इनकी 65 में से 62 सीटें जीत गई थी। अर्थात यह चुनाव स्पष्ट कर गए हैं कि कांग्रेस के लिए हिन्दी बैल्ट में स्थिति कितनी नाज़ुक है। कांग्रेस के पास केवल तीन प्रदेश हैं, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और अब तेलंगाना बचे हैं। तेलंगाना में कांग्रेस की जीत महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां उसकी 45 सीटें बढ़ी हैं पर तेलंगाना की जीत तीन हिन्दी भाषी प्रदेशों में तबाही की भरपाई नहीं कर सकती। जिन्होंने समझा था कि कांग्रेस भाजपा की मुख्य चैलेंजर बन कर उभर रही है वह ग़लत निकले। अब पार्टी अपने ‘इंडिया’ गठबंधन के साथियों जिनके साथ इन चुनावों में वह बहुत अहंकारी ढंग से पेश आई थी, के दबाव में आएगी। जनता दल (यू) और तृणमूल कांग्रेस ने तो अभी से नसीहत देनी शुरू कर दी है। तृणमूल कांग्रेस की पत्रिका ‘जागो बंगला’ ने सम्पादकीय में कांग्रेस के ‘ज़मींदारी रवैये’ की शिकायत की है। ‘आप’ का कहना है कि क्योंकि उसके पास उत्तर भारत में दो सरकारें हैं, इसलिए वहां वह प्रमुख विपक्षी पार्टी है। जयराम रमेश का कहना है कि, “20 साल पहले कांग्रेस को मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार मिली थी पर कुछ महीनों में ज़ोरदार ढंग से वापिसी करते हुए हम लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उबरे थे और सरकार बनाई थी”।
खुद को ग़लतफ़हमी में रखने का कोई फ़ायदा नहीं, जयराम रमेश जैसा बुद्धिमान व्यक्ति भी जानता है कि यह 2003-2004 वाला भारत नहीं है। तब केन्द्र में भाजपा की पूर्ण सरकार नहीं थी और कांग्रेस इतनी ढीली नहीं थी। लेकिन तब और अब में सबसे बड़ा अंतर एक और है, और इस अंतर का नाम है नरेन्द्र मोदी। सीधी सी बात है आज देश में नरेंद्र मोदी का कोई मुक़ाबला नहीं, कांग्रेस के पास उनका कोई तोड़ नहीं। लोग उन पर उस तरह भरोसा करते हैं जैसे कभी जवाहरलाल नेहरू पर करते थे। रिश्ता केवल राजनीतिक ही नहीं भावनात्मक भी है। उनका लोगों के साथ सीधा संवाद है। इन चुनावों में भाजपा ने किसी स्थानीय नेता को आगे नहीं किया गया। मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़े गए। जब वह कहते हैं कि ‘मोदी की गारंटी है’ तो लोग विश्वास करते हैं। यह चुनाव मोदी ब्रैंड को और सशक्त बना गए हैं और 2024 का रास्ता लगभग साफ़ कर गए हैं। राहुल गांधी की छवि में सुधार आया है पर वह मोदी का मुक़ाबला नहीं कर सकते। उनकी ‘भारत जोड़ों यात्रा’ सफल रही थी। पर यह यात्रा मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी गुजरी थी जहां कांग्रेस हार गई। इससे कांग्रेस के मनोबल और छवि दोनों को धक्का पहुंचा है। कर्नाटक की हार के बाद भाजपा ने दिशा सही की जबकि कांग्रेस अति आत्मविश्वास में मारी गई।
राहुल गांधी को भी समझ जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी को अपशब्द कहने का उलटा असर होता है क्योंकि जनता समझती है कि मोदी कुछ ग़लत नहीं कर सकते। 'आत्म निर्भर भारत’ जैसी योजनाएं आशा बढ़ाती हैं। जिन्हें अब ‘लाभार्थी’ कहा जा रहा है,उनके बैंक खातों में सीधा पैसा भेजना गेम चेंजर रहा है। इससे उन लुटेरे और लालची सरकारी कर्मचारियों को बीच से निकाल दिया गया जो ग़रीबों और लाचारों की मजबूरी का नाजायज फ़ायदा उठाते थे। इससे विशेष तौर पर महिला और ग्रामीण वोटर बहुत खुश है। मध्यप्रदेश की ‘लाडली बेहना’ योजना जिसमें 1.32 करोड़ गरीब महिलाओं को हर महीने 1250 रुपए खाते में मिल जातें हैं वहाँ की जीत में बहुत बड़ा फ़ैक्टर रहा है। 81 करोड़ ग़रीबों को 5-5 किलो मुफ्त राशन देने की योजना प्रधानमंत्री ने पांच साल बढ़ा दी है। इस पर हर वर्ष दो लाख रुपए खर्च होंगे। प्रधानमंत्री खुद ‘रेवड़ी कलचर’ का विरोध कर चुकें हैं पर स्पर्धा में भाजपा भी उसी रास्ते पर चल रही है। 81 करोड़ को मुफ्त राशन देना बताता है कि अभी कितनी ग़रीबी है। अर्थशास्त्री अपनी जगह दुखी हैं कि विकास के लिए पैसा नहीं बचेगा पर जिन्हें मिला है वह तो खुश हैं। कांग्रेस भी अब कोशिश कर रही है। कर्नाटक में वह सफल भी रहे पर हिन्दी बैल्ट में मोदी का मुक़ाबला नहीं कर सके। भाजपा का सशक्त संगठन भी इसकी बड़ी ताक़त है।
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ऐसा पैकेज पेश कर रही है जिसे लोग, विशेष तौर पर उत्तर भारत में, बहुत आकर्षक मान रहें हैं। इस पैकेज में हिन्दुत्व का बड़ा हिस्सा है। कांग्रेस ने सॉफ्ट हिन्दुत्व पर चलने की कोशिश की है पर बात नहीं बनी। राहुल गांधी को जनेऊ धारण किए भक्त प्रस्तुत किया गया। मध्यप्रदेश में कमल नाथ ने भी खुद को बड़ा हनुमान भक्त प्रस्तुत किया पर वह नरेन्द्र मोदी और भाजपा का मुक़ाबला नहीं कर सकते। राजस्थान से भाजपा की टिकट पर चार महंत विजयी रहे हैं। डीएमके के नेता उदयनिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म के अपमान पर कांग्रेस के नेताओं की चुप्पी भी हिन्दी बैल्ट में भारी पड़ी है। जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। मोदी खुद नेतृत्व करेंगे। इसी के साथ भाजपा अपने लोकसभा चुनाव की शुरूआत करेगी। रेवड़ी बांटने में विरोधियों की बराबरी करते हुए भाजपा की योजना के केन्द्र में राम मंदिर और हिन्दुत्व ही रहेगा।
महिला वोटर विशेष तौर पर प्रभावित हैं जिनका भारी बहुमत भाजपा को वोट डालता है। देश में विकास हुआ है। इंफ्रास्ट्रक्चर में बहुत काम हुआ है। डिजिटल क्रान्ति से बहुत कुछ बदल गया और आसान हो गया। राजस्थान में अगर कांग्रेस ने गैस का सिलेंडर 500 रूपए करने की घोषणा की तो भाजपा ने 450 रुपए करने की घोषणा कर दी। अर्थात भाजपा किसी भी मामले में पीछे रहने को तैयार नहीं थी। तिजोरी भी इनके पास है इसलिए पैसा बांट सकते हैं चाहे अर्थ व्यवस्था के लिए यह अच्छा नहीं। कई मामलों में भाजपा और कांग्रेस बराबर कदम उठा रहे हैं अंतर यह है कि कांग्रेस के पास नरेन्द्र मोदी नहीं हैं जिनका व्यक्तित्व कमज़ोरियों को ढांप देता है। शिवराज सिंह चौहान और अशोक गहलोत दोनों वरिष्ठ नेता हैं पर गहलोत तो पांच साल में ही चक्कर खा गए जबकि लगभग 20 साल से सत्तारूढ़ शिवराज सिंह चौहान मज़े से ‘एक हज़ारों में मेरी बेहना है’ गा रहे हैं।
कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत में एक और दरवाज़ा खुल गया है। इससे कुछ राहत मिलेगी। कुछ साख बची है। भाजपा के लिए यह चिन्ता की बात है कि दक्षिण भारत की 125 सीटें उसके लिए कठिन हो गईं हैं। तेलंगाना में केसीआर की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले और बेटे और बेटी को उनके द्वारा प्रोत्साहन देना भारी पड़ा है। भाजपा के लिए यह प्रभाव उल्टा पड़ा है कि जैसे उनका केसीआर की पार्टी के साथ गुप्त समझौता है। रेवंत रेड्डी में कांग्रेस ने नया चेहरा प्रस्तुत किया है जिसका लाभ हुआ है। पार्टी कब तक कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे पुराने नेताओं का बोझ उठाए फिरेगी जिनका आज के भारत से कोई तालमेल नहीं? छत्तीसगढ़ में 500 करोड़ रुपये का महादेव एप्प घोटाला भुपेंद्र बघेल को भारी पड़ा। राहुल गांधी ने जातीय जनगणना का मुद्दा ज़ोर शोर से उठाया। राहुल का कहना था कि ‘ जितनी आबादी उतना हक़’। देश आगे बढ़ना चाहता है पर कांग्रेस वह मुद्दे उठा रही है जो बांटते हैं। सवर्ण हिन्दू अब और दूर हो जाएंगे। अगर यही फ़ार्मूला लगाया जाए तो कांग्रेस पर गांधी परिवार के नेतृत्व का भी कोई हक़ नहीं बनता। नरेन्द्र मोदी ने सही कहा है कि सबसे बड़ी जाति ग़रीब है। खेद है कि कांग्रेस का नेतृत्व विभाजित करने वाले रास्ते पर चल पड़ा। यह नीतीश कुमार जैसों को तो शोभा देता है, कांग्रेस के नेतृत्व को नहीं। उनका मंडल-2 का प्रयास फ़्लॉप रहा है।
दो किश्तियों की सवारी करने के प्रयास में कांग्रेस का नेतृत्व बीच मँझधार गिर गया है। दूसरों की नीतियाँ अपनाने का यह नुक़सान होता है। उन्हें महंगाई, बेरोज़गारी और ग्रामीण संकट के मुद्दों पर डटे रहना चाहिए था। कांग्रेस को अब अपने पुराने कोर एजेंडे पर लौट जाना चाहिए क्योंकि नक़ल कभी असल नहीं बन सकती। कांग्रेस के लिए यह संतोष की बात है कि वह न केवल तेलंगाना छीनने में सफल रहें हैं बल्कि चार प्रदेशों के चुनाव में उनका कुल वोट भाजपा से 10 लाख अधिक है और जहां भाजपा जीती है वहाँ भी कांग्रेस को औसत 40 प्रतिशत से अधिक वोट मिलें हैं। बैंगलुरू के बाद हैदराबाद का पैसे वाला शहर भी उनके पास आ गया है। तेलंगाना है भी समृद्ध प्रदेश। लेकिन इसके बावजूद यह प्रभाव क्यों है कि कांग्रेस के ‘पुर्ज़े’ उड़ गए? इसका जवाब है कि पार्टी के पास नैरेटिव सही करने के लिए नरेन्द्र मोदी जैसा नेता नहीं है।

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