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प्रवासी मजदूर : जरूरी थी समान नीति

आज सुबह ही मेरी नजर स्वीडन की खबर पर पड़ी। कोरोेना वायरस के चलते दुनिया भर के देश अपने यहां कड़ाई से लॉकडाउन नियमों का पालन कर रहे हैं लेकिन स्वीडन के बड़े हिस्से में ऐसी कोई पाबंदी नहीं।

12:15 AM Apr 30, 2020 IST | Aditya Chopra

आज सुबह ही मेरी नजर स्वीडन की खबर पर पड़ी। कोरोेना वायरस के चलते दुनिया भर के देश अपने यहां कड़ाई से लॉकडाउन नियमों का पालन कर रहे हैं लेकिन स्वीडन के बड़े हिस्से में ऐसी कोई पाबंदी नहीं।

आज सुबह ही मेरी नजर स्वीडन की खबर पर पड़ी। कोरोेना वायरस के चलते दुनिया भर के देश अपने यहां कड़ाई से लॉकडाउन नियमों का पालन कर रहे हैं लेकिन स्वीडन के बड़े हिस्से में ऐसी कोई पाबंदी नहीं। स्वीडन में रोजमर्रा की जिन्दगी और आर्थिक गतिविधियां चालू रखने के फैसले को जनता का भरपूर समर्थन मिला है। स्वीडन वही देश है जिसकी राजकुमारी सोफिया ने खुद एक अस्पताल में हैल्थकेयर असिस्टेंट का काम किया। 
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स्वीडन में अब इतनी गर्मी शुरू हो गई है कि लोग बाहर बैठ पाएं। लोग इस मौसम का आनंद भी उठाने के लिए बाहर निकलने लगे हैं। समाज कोेेे खुला रखने की रूपरेखा भी वहां के वैज्ञानिकों ने बनाई है और सरकार ने इसका समर्थन भी किया है। हालांकि देश के विषाणु विशेषज्ञ सरकार के इस कदम से सहमत नहीं हैं। 
स्वीडन में पब्स में, वातिरक सागर के​ किनारे लोग आईसक्रीम खा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि कोरोना महामारी का स्वीडन में कोई असर नहीं पड़ा है लेकिन इसके बावजूद आंकड़े बताते हैं   कि आबादी का बड़ा वर्ग स्वयं लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहा है। सर्वे के ​मुताबिक महीने भर में दस में से सात लोग दूसरों से कम से कम एक मीटर की दूरी बना कर चलते थे, अब दस में से 9 लोग दूरी बना कर चलते हैं। राजधानी स्टॉक होम अभी तक इस महामारी का केन्द्र रहा है। स्टॉक होम में आधे से ज्यादा कर्मचारी घरों में बैठकर काम कर रहे हैं। स्वीडन सरकार लोगों को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कराने में कामयाब रही है। हर शख्स अपनी जिम्मेदारी समझ भी रहा है। न कोई पैनिक फैला रहा है, न कोई अफवाहें। हर शख्स स्वेच्छा से नियमों का पालन कर रहा है। यह भी सही है कि स्वीडन की आबादी काफी कम है। दूसरी ओर भारत के नागरिकों की अपनी समस्याएं हैं। एक तो लोग स्वेच्छा से जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार नहीं कर रहे दूसरी ओर यहां हर शख्स के चेहरे पर तनाव देखा जा सकता है। एक के बाद एक अफवाहें फैल रही हैं। प्रवासी मजदूर, दूसरे राज्यों में फंसे पर्यटक और तीर्थयात्रियों में आपाधापी का माहौल है। हर कोई भाग रहा है, कोई छोटे-छोटे बच्चों को लेकर पैदल ही निकल पड़े, कई साइकिलों पर तो कई अपनी ​रिक्शा पर। तीन-तीन दिन का सफर तय कर लोग अपने गांव पहुंच रहे हैं। पंजाब में महाराष्ट्र के नादेड़ साहिब की तीर्थयात्रा पर गए श्रद्धालुओं को पंजाब वापिस लाया गया तो लगभग 7 मरीज कोरोना पॉजिटिव निकले। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा से उत्तर प्रदेश और बिहार पहुंचे मजदूरों में भी कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। उन सबको घरों में जाने से पहले एकांतवास में रखा गया है। देश की सब्जी मंडियों का हाल देख लीजिए, लोग तमाम सख्ती के बावजूद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे। अब तो लोगों की जान बचाने में जुटे डाक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ खुद बीमार हो रहा है। कोरोना वायरस हर दिन लोगों की धड़कन बढ़ा देता है, कभी आंकड़े तेजी से बदल जाते हैं तो कभी नए-नए लक्षण सामने आ रहे हैं। लोगों को हर आपदा से सबक सीखना आना चाहिए, लेकिन लोग अभी भी समझने को तैयार नहीं।
एक तरफ पश्चिम बंगाल की सियासत पर कोरोना वायरस हावी है तो दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों का मुद्दा काफी गर्म हो चुका है। कोटा में फंसे बिहार के छात्रों को निकालने के मुद्दे पर चुप्पी धारण करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में अपनी बात मजबूती से रखी कि वह तो सरकार के दिशा-निर्देशों से बंधे हुए हैं लेकिन दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को परवाह ही नहीं। नीतीश कुमार का इशारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ था जो कोटा से छात्रों को वापिस लाने के बाद मजदूरों को वापिस लाने का प्रयास कर रहे हैं। योगी ही नहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ​चौहान भी ऐसा ही कर रहे हैं। 
कोटा से छात्रों को वापिस नहीं लाने पर नीतीश कुमार अपने ही राज्य में आलोचना का शिकार हो रहे हैं। अगर पूरे देश में प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने की मुहिम छेड़ी गई है तो फिर  लॉकडाउन का कोई औचित्य ही नहीं रहेगा। लेकिन चुनावी साल में लोगों की नाराजगी उनकी मुश्किलें बढ़ा रही है। नीतीश कुमार ने बिहार के श्रमिकों को जहां है, वहीं रुकने की अपील की थी लेकिन आपाधापी के माहौल में अपीलों की परवाह कौन करता है। प्रवासी मजदूरों की संख्या इतनी अधिक है कि संकट की घड़ी में हर सुविधा उपलब्ध कराना भी आसान नहीं है। बिहार के मुंगेर सारण और कुछ अन्य शहर हाटस्पाट बनते रहे हैं। नीतीश कुमार ने यह कहकर प्रधानमंत्री के पाले में गेंद सरका दी है कि केन्द्र सरकार राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को लेकर कोई नीति बनाए जिस पर सभी राज्य अमल करें। जो बच्चे कोटा से नहीं लौटे, जो प्रवासी मजदूर अभी तक घरों को नहीं लौटे, उनके परिवार टकटकी लगाए सरकार की तरफ देख रहे थे कि कोई न कोई व्यवस्था की जाए, बाकी बाद में जो होगा देखा जाएगा। अब केन्द्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों, फंसे पर्यटकों और छात्रों को घर जाने की अनुमति दे दी है। राज्य सरकारें उनके ​लिए बसें भेजेंगी लेकिन कई शर्तों का पालन तो करना होगा। इससे लाखों परिवारों को राहत मिलेगी।  भारत कोई स्वीडन तो है नहीं, यहां भूख है, बेरोजगारी है, बीमारी है, ऐसी स्थिति में फंसे हुए लोगों को घर पहुंचाने के ​लिए सरकार ने सही फैसला किया है। 
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