‘आयरन लेडी’ को सजा-ए-मौत
बंगलादेश का निर्माण करने वाली ‘आयरन लेडी’ को वहां के अन्तर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने पूरी तरह से पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर फांसी की सजा सुना दी है। शेख हसीना भारत में िकसी अज्ञात स्थान पर रह रही हैं। शेख हसीना को इतनी कड़ी सजा सुनाए जाने के बाद बंगलादेश में हिंसा और अराजकता का नया दौर शुरू हो चुका है। 77 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री ने शायद इसकी कल्पना भी नहीं की होगी कि जिस न्यायाधिकरण का गठन कट्टर युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए उन्होंने ही किया था वही एक दिन उन्हें कठघरे में खड़ा करेगा। न्यायाधिकरण की स्थापना कभी पाकिस्तान प्रस्तों को सजा देने के लिए स्थापित की गई थी। अब वह पूरी तरह से कंगारू कोर्ट बन चुकी है। इस कोर्ट का उद्देश्य 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान हुए नरसंहार, बलात्कार, यातना और अन्य अत्याचारों में शमिल लोगों को न्याय के कठघरे में लाया जा सके। आईसीटी ने कई बड़े ऐतिहासिक फैसले भी दिए हैं। उसी कोर्ट ने अपदस्थ प्रधानमंत्री को मानवता के विरुद्ध घोर अपराधों के आरोप में सजा सुनाई है। तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने पिछले साल देश में आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या से जुड़े दो मामलों में हसीना को अधिकतम सजा सुनाई। पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी यही सजा मिली, जबकि हसीना सरकार में पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को अभियोजन पक्ष का गवाह बनने के बाद बरी कर दिया गया। यह फैसला एक ऐसी प्रक्रिया का समापन करता है जो पहले दिन से ही प्रतिशोधात्मक प्रतीत होती रही है। आईसीटी में ऐतिहासिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीश और कुछ मामलों में अंतर्राष्ट्रीय अभियोजक भी शामिल रहे हैं लेकिन पूरी तरह से बंगलादेशी न्यायाधीशों से बना न्यायाधिकरण, जिसे व्यापक रूप से पक्षपाती माना जाता है, का मतलब था कि हसीना के खिलाफ हमेशा ही हालात बने रहे। बंगलादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) से जुड़े एक न्यायाधीश की नियुक्ति से लेकर जिसने इस फैसले का स्वागत किया है, हसीना का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी उचित बचाव पक्ष के अभाव तक, तीन महीने तक चली यह कार्यवाही अपदस्थ प्रधानमंत्री के प्रति मुहम्मद यूनुस शासन की शत्रुता से भरी रही। कथित तौर पर सरकार द्वारा नियुक्त बचाव पक्ष के वकील ने कोई स्थगन नहीं मांगा और न ही किसी गवाह को बुलाया। कार्यवाहक सरकार जिसने इस फैसले को "ऐतिहासिक" बताया है, ने न्याय' के इस उपहास से खुद को ही नीचा दिखाया है, उसने एक घटिया शासन होने के आरोपों को न्यौता दिया है। शेख हसीना बंगलादेश में होती तो शायद उन्हें फांसी पर लटका दिया होता, या उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की तरह हत्या कर दी गई होती।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बंगलादेश को कामचलाऊ सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने कट्टरपंथियों के हाथों सौंप दिया है। यूनुस सरकार को इस्लामी कट्टरपंथियों का समर्थन प्राप्त है जो बंगलादेश को एक इस्लामिक राज्य बनाना चाहते हैं। धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील दलों पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। फैसले के बाद यूनुस सरकार ने भारत सरकार से शेख हसीना के प्रत्यार्पण की मांग की है। यूनुस ने अपनी भारत विरोधी चाल चल दी है। शेख हसीना भारत के लिए दशकों तक एक भरोसेमंद साझेदार रही हैं। आईसीटी के फैसले के बाद यह मामला कितना भी नाजुक क्यों न बन जाए लेकिन भारत शेख हसीना को बंगलादेश नहीं भेजेगा। यद्यपि भारत ने पूरे प्रकरण पर बड़ी सधी हुई प्रक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा है िक वह सभी पक्षों से रचनात्मक बातचीत करेगा। शेख हसीना ने भी अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से इंकार करते हुए फैसले को पक्षपातपूर्ण आैर राजनीति से प्रेिरत बताया है। शेख हसीना के पास दो िवकल्प बचे हैं। या तो वह 30 दिन के भीतर आत्मसमर्पण कर फैसले को चुनौती दें। अगर वह आत्मसमर्पण या गिरफ्तार नहीं होतीं तो उनके पास अपील का अधिकार भी नहीं होगा। उनके पास अब एक ही विकल्प है िक वह भारत में ही रहे आैर भारत सरकार से उम्मीद करें कि वह िकसी हाल में उन्हें बंगलादेश को न सौंपे। भारत फिलहाल स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए है। शेख हसीना की पार्टी अभी भी अपना प्रभाव जमाए हुए है। बंगलादेश के हालात बहुत खराब हैं। मोहम्मद यूनुस की सरकार खुद को बचाने के लिए भारत के खिलाफ जहर उगल रही है।
हाल ही में मोहम्मद यूनुस ने ग्रेटर बंगलादेश का नक्शा जारी किया था, जिसमें भारत के पूर्वी राज्यों को अपने देश का हिस्सा बताया था। इसके अलावा बंगलादेश इस समय पाकिस्तान की गोद में बैठा हुआ है। हाल ही में पाकिस्तानी सेना के नंबर दो अधिकारी और पाक नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीद अशरफ ने ढाका दौरा किया था। पाकिस्तान और बंगलादेश के सैन्य अधिकारियों के बीच हालिया महीनों में कई बैठकें हुई हैं। बंगलादेश अब खुलकर अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर रहा है। कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बंगलादेश की राजधानी ढाका आईएसआई का अड्डा बन चुकी है। भारत अचानक उन्हें ऐसे माहौल में वापस भेजकर पुराना रिश्ता खत्म नहीं करना चाहेगा।
भारत और बंगलादेश के बीच भले ही प्रत्यार्पण संधि हो लेकिन भारत कई आैर मार्ग अपना सकता है। फरवरी 2026 में वहां होने वाले चुनावों का औचित्य ही नहीं रहा है लेकिन यह भी हो सकता है कि यूनुस सरकार के लिए यह फैसला आत्मघाती साबित हो और बंगलादेश के हालात काबू से बाहर निकल जाएं और यूनुस सरकार का ही तख्ता पलट जाए। भारत के सामने एक और कूटनीतिक परीक्षा की घड़ी आ गई है।