इस रहस्यमयी मंदिर में भगवान को देखना है माना, पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांध करते हैं पूजा
आज हम जिस मंदिर के बारे में बात करने वाले हैं वो देवनगरी उत्तराखंड में असंख्या मंदिर है। यहां पर बने देवी देवताओं के मंदिर को लेकर कई प्रकार की मान्यता है। तो आज हम आपको इस अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।
05:48 PM Apr 20, 2022 IST | Desk Team
आज भी कई ऐसे मंदिर हैं जो काफी प्राचीन हैं। ये पौराणिक अपनी विशेषताओं के लिए दुनियाभर मशहूर हैं। वैसे हमेशा ही ऐसा होता है जब कभी मंदिर जाना हो तो आप और हम सभी सबसे पहले भगवान के दर्शन करने के साथ उनकी आराधना करते हैं। इसके बाद भगवान के सामने खड़े होकर उनसे सभी इच्छाएं जल्द पूर्ण करने के लिए मन्नत मांगते हैं।
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आज हम जिस मंदिर के बारे में बात करने वाले हैं वो देवनगरी उत्तराखंड में असंख्या मंदिर है। यहां पर बने देवी देवताओं के मंदिर को लेकर कई प्रकार की मान्यता है। तो आज हम आपको इस अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल, आपको भी यह बात जानकर हैरानी होगी की इस रहस्यमयी मंदिर है भगवान के स्वरूप के दर्शन करना वर्जित है। जी हां, यह पढ़कर आपको भले ही थोड़ा अजीब जरूर लगेगा, पर यह बिल्कुल सच है। तो चलिए आपको बताते हैं इस रहस्यमयी मंदिर की अनोखी परंपरा के बारे में।
मंदिर के अंदर नहीं जाते श्रद्धालुओं?
बता दें, उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल विकासखंड के अंतर्गत सुदूरवर्ती गांव वाण में लाटू देवता का मंदिर स्थित है। वैसे तो कई मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लिए नियम बनाए गए है। मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में महिला और पुरुष किसी भी श्रद्धालु को मंदिर के अन्दर जाने कि अनुमति नहीं है।
दरअसल इस मंदिर को लेकर इस तरह कि मान्यता है कि जो देश में शायद ही किसी और मंदिर में होगी। इस मंदिर में भगवान के स्वरूप के दर्शन नहीं किया जाता है। जी हां, सिर्फ भक्तों के लिए नहीं बल्कि मंदिर में पुजारी भी भगवान के दर्शन नहीं करते है। वहीं मंदिर में बस पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं। इतना ही नहीं अगर पुजारी मंदिर में प्रवेश करेगा तो वह अपनी आंखें पर पट्टी बांधकर जाएगा।
पुजारी हो सकता है अंधा
पुजारी की आंखों में पट्टी बांधने के लिए ऐसा कहा जाता है कि वह भगवान के महान रूप देखकर डर न जाये। इस कारण तो कई पंडित यहां पूजा करने से भी खौफ खाते हैं। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर में मणि की तेज रोशनी होने की वजह से इंसान अंधा हो जाता है। ऐसे में पुजारी के मुंह की गंध तक देवता तक नहीं पहुंचनी चाहिए और नागराज की विषैली गंध पुजारी की नाक तक नहीं पहुंचनी चाहिए। लोगों का मानना है कि अगर गलती से ऐसा हो जाता है तो कुछ भी बड़ी अनहोनी हो सकती है।
बता दें, इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक बार ही खुलते है और वह वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन ही खुलते हैं। कपाट खुलने के वक्त भी मंदिर का पुजारी अपनी आंख और मुंह पर पट्टी बांधता है। वहीं कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु भी बस मंदिर के बाहर से ही हाथ जोड़कर दर्शन करते हैं। बता दें, इस मंदिर में विष्णु सहस्रनाम और भगवती चंडिका पाठ का आयोजन होता है और फिर मार्गशीर्ष अमावस्या को मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
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