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हमारी आजादी की 79वीं वर्षगांठ

04:00 AM Aug 22, 2025 IST | Kumkum Chaddha
हमारी आजादी की 79वीं वर्षगांठ
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भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर कई बातों के बीच तीन बातें विशेष रूप से सामने आईं। निस्संदेह, यह दिन उत्सव और उल्लास का दिन है, कृतज्ञता का दिन है कि हम स्वतंत्र भारत में जन्मे और स्वतंत्रता की उस अमूल्य भावना का आनंद ले पा रहे हैं। यह वह अवसर है जब हम ठहरकर अपनी उपलब्धियों की गिनती करते हैं और राष्ट्र की प्रगति पर गर्व महसूस करते हैं। इस दिन का संबंध किसी सरकार, व्यक्ति विशेष, प्रधानमंत्री या राजनीतिक दल से नहीं है और न ही यह छोटे-बड़े राजनीतिक मतभेदों का मंच है। यह दिन सामूहिक उत्सव का है, समावेशिता का है, हर सच्चे भारतीय के एकजुट होकर स्वतंत्रता की 79वीं वर्षगांठ की भावना में डूब जाने का है। यह दिन तिरंगे को सलामी देने का है, जब वह फहराया जाता है, हां, फहराया जाता है तो यह उस आज़ादी का प्रतीक बनकर लहराता है जिसके लिए लाखों ने अपना रक्त बहाया और हज़ारों ने प्राणों की आहुति दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस 2025 पर अपना अब तक का सबसे लंबा भाषण दिया, पूरे 103 मिनट का। उन्होंने सुबह ठीक 7 बजकर 33 मिनट पर भाषण शुरू किया और 9 बजकर 16 मिनट पर समाप्त किया। इस संबोधन के साथ ही मोदी ने लगातार 12 बार लालकिले से भाषण देने का रिकॉर्ड बनाया। हालांकि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का रिकॉर्ड अभी भी उनसे काफी आगे है। नेहरू ने 1947 से 1963 तक लगातार 17 बार स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित किया था। इंदिरा गांधी ने कुल 16 बार भाषण दिया, जिनमें से 11 लगातार थे। वह 1966 से 1977 और फिर 1980 से 1984 तक प्रधानमंत्री रहीं और पद पर रहते हुए उनकी हत्या कर दी गई थी।
नेहरू और इंदिरा गांधी को छोड़कर मोदी ने अब तक सभी प्रधानमंत्रियों का रिकॉर्ड पीछे छोड़ दिया है। इंदिरा गांधी की तरह मनमोहन सिंह ने भी लगातार 11 बार (2004 से 2014) लालकिले से भाषण दिया। जबकि अन्य प्रधानमंत्रियों की अवधि इससे छोटी रही- लाल बहादुर शास्त्री ने दो बार, मोरारजी देसाई और पी. वी. नरसिम्हा राव ने चार-चार बार और अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल (1998 से 2004) में छह बार भाषण दिया।
समय की दृष्टि से भी मोदी ने अपने ही रिकॉर्ड बनाए हैं। 2014 में उनका पहला भाषण 65 मिनट का था। 2015 में 85 मिनट, 2016 में 96 मिनट, 2019 में 92 मिनट और 2023 में 90 मिनट तक चला। उनका सबसे छोटा भाषण 2017 में रहा सिर्फ 56 मिनट का। मोदी से पहले, सबसे लंबे भाषण का रिकॉर्ड जवाहर लाल नेहरू (1947 में 72 मिनट) और आई.के. गुजराल (1997 में 71 मिनट) के नाम था। वहीं, सबसे छोटे भाषण का रिकॉर्ड भी नेहरू और इंदिरा गांधी के पास है -क्रमशः 1954 और 1966 में सिर्फ 14-14 मिनट। मनमोहन सिंह के 2012 और 2013 के भाषण क्रमशः 32 और 35 मिनट के रहे, जबकि अटल बिहारी वाजपेयी के 2002 और 2003 के संबोधन उससे भी छोटे, 25 और 30 मिनट के थे।
भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर जो एक और बात विशेष रूप से सामने आई, वह थी देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की अनुपस्थिति। न राहुल गांधी और न ही मल्लिकार्जुन खड़गे लालकिले पर दिखे। यह अनुपस्थिति राष्ट्र हित से अधिक दलगत राजनीति का प्रतीक बनी और इसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। राहुल गांधी लोकसभा में और खड़गे राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं। ये संवैधानिक पद हैं और इन पर आसीन नेताओं का कर्त्तव्य है कि वे स्वतंत्रता दिवस समारोह में उपस्थित रहें लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने राष्ट्र से ऊपर दलगत राजनीति को तवज्जो दी। यदि यह विवाद सिर्फ सीटिंग प्लान को लेकर था तो यह और भी खेदजनक है। याद कीजिए 2024 का वह प्रसंग, जब राहुल गांधी को तथाकथित रूप से ‘पीछे’ की सीट दी गई थी और इसे लेकर खूब हंगामा हुआ था।
यहां ठहरकर एक सवाल उठता है-क्या यह सीटिंग प्लान का मुद्दा है या राष्ट्रहित का? क्या किसी समारोह और वह भी स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व में शामिल होना इस तरह की छोटी बातों से कमतर हो सकता है? क्या यह इस पर निर्भर होना चाहिए कि विपक्ष को कहां बैठाया गया या सत्ता पक्ष उनके साथ कैसा व्यवहार करता है? यदि कोई भी सरकार, चाहे बीजेपी हो या कोई और इस स्तर तक गिरती है तो असली राष्ट्रवादी नेता को ऐसे क्षुद्र राजनीतिक आख्यान से ऊपर उठना चाहिए। नेता का पहला कर्त्तव्य राष्ट्र के प्रति होना चाहिए। भले ही खड़ा रहकर शामिल होना पड़े, फिर भी स्वतंत्रता दिवस समारोह में उपस्थित होना ही सच्चे अर्थों में राष्ट्र को सलाम करना है। दुर्भाग्यवश कांग्रेस नेतृत्व ने इसमें कमी दिखाई और राष्ट्र को राजनीति से नीचे रखा। इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता।
और अंत में, प्रधानमंत्री के भाषण की विषय वस्तु भी ध्यान खींचने वाली रही उनके अब तक के सबसे लंबे संबोधन से निकलने वाले बड़े संदेश। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 103 मिनट लंबे संबोधन में सशस्त्र बलों और ऑपरेशन सिंदूर की सराहना की। उन्होंने अत्याधुनिक रक्षा प्रणाली मिशन सुदर्शन चक्र के शुभारंभ की घोषणा की, साथ ही जीएसटी और आयकर सुधार, रोजगार, ऊर्जा और अंतरिक्ष में आत्मनिर्भरता जैसे मुद्दों पर भी ज़ोर दिया लेकिन सबसे बड़ा संदेश उनकी उस चेतावनी से जुड़ा था जिसमें उन्होंने कथित जनसांख्यिकीय बदलाव की साजिश का ज़िक्र किया और इसे रोकने के लिए एक उच्च-स्तरीय मिशन शुरू करने की घोषणा की। उन्होंने कहा-मैं देश को चेतावनी देना चाहता हूं, एक नई चिंता संकट का रूप ले रही है। सोची-समझी साजिश के तहत देश की जनसंख्या संरचना बदलने की कोशिश की जा रही है।
प्रधानमंत्री ने सख्त लहज़े में कहा कि किसी भी परिस्थिति में अवैध घुसपैठ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि घुसपैठिए आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं और युवाओं से अवसर छीन रहे हैं। उनके शब्दों में, “ये घुसपैठिए हमारे युवाओं की रोज़ी-रोटी छीन रहे हैं। ये घुसपैठिए हमारी बेटियों और बहनों को निशाना बना रहे हैं। यह देश इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।” इसी क्रम में उन्होंने पाकिस्तान को भी चेताया और कहा कि यदि दुश्मन ने हिमाकत की तो ‘भारत की प्रतिक्रिया पहले से कहीं अधिक घातक होगी।’ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत किसी भी परमाणु ब्लैकमेल को स्वीकार नहीं करेगा और आतंकवाद के खिलाफ अपनी ‘न्यू नॉर्मल’ नीति पर कायम रहेगा। आतंकवाद को उन्होंने ‘मानवता का दुश्मन’ बताया और पहलगाम आतंकी हमले के बाद सैनिकों के साहस की प्रशंसा की।
प्रधानमंत्री के भाषण का एक और अहम हिस्सा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रशंसा रहा। लालकिले से सार्वजनिक तौर पर आरएसएस को ‘दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ’ बताते हुए मोदी ने इसके 100 वर्षों की सेवा को राष्ट्र निर्माण का ‘स्वर्णिम अध्याय’ करार दिया। उन्होंने कहा कि ‘व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण’ की संघ की प्रतिबद्धता अनुकरणीय है। हालांकि, प्रधानमंत्री की इस खुली सराहना ने कई सवाल भी खड़े किए हैं। विपक्ष के हमलों से परे, क्या यह आरएसएस के साथ रिश्तों को मज़बूत करने का प्रयास है?

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