‘87 घंटे और 56 मिनट’: युद्ध विराम
87 घंटे और 56 मिनट लगे ‘हे भगवान’ से ‘थैंक गॉड’ तक पहुंचने में -चार दिन…
87 घंटे और 56 मिनट लगे ‘हे भगवान’ से ‘थैंक गॉड’ तक पहुंचने में -चार दिन, जब हर पल टेंशन से भरा था। 7 मई को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। 10 मई को जब दोनों देशों ने सीजफायर का एेलान किया तब जाकर थोड़ी राहत की सांस ली गई। आधी रात के कुछ देर बाद इंडियन आर्म्ड फोर्सेज ने पाकिस्तान और पीओके में मौजूद आतंकी ठिकानों पर निशाना साधा। नौ ठिकाने तबाह कर दिए गए। पाकिस्तान ने पुष्टि की है कि भारतीय मिसाइल हमलों में उसके छह शहर शामिल हैं, जिनमें कई लोग मारे गए और घायल हुए हैं। 26 मिनट चली इस कार्यवाही में जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर के कई करीबी मारे गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक अजहर ने खुद कबूल किया कि उसके परिवार के 14 लोग और चार खास सहयोगी इन स्ट्राइक्स में मारे गए।
भारत उस समय पूरी तरह से हावी था -यह कहना अधिक उचित होगा कि वह युद्ध में शीर्ष पर था और संभवतः अंत तक ऐसा ही रहा। हालांकि पाकिस्तान की जवाबी कार्यवाही की खबरों के चलते कई तनावपूर्ण क्षण भी आए। जम्मू के विभिन्न हिस्सों में धमाकों की खबरें आईं, इसी दौरान पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र में ड्रोन और मिसाइल हमले किए। भारतीय अधिकारियों ने पुष्टि की कि जम्मू, पठानकोट और उधमपुर स्थित सैन्य ठिकानों पर हमले हुए लेकिन कहा कि इन हमलों को निष्क्रिय कर दिया गया। वहीं पाकिस्तान ने भारत से आए ड्रोन को मार गिराने का दावा किया।
दावों और प्रति दावों के बीच तनाव बढ़ने के स्पष्ट संकेत थे और पूरे भारत में टेलीविजन स्क्रीन पर सायरनों, ब्लैकआउट और विस्फोटों की तस्वीरें छाई रहीं जिससे लोगों की नींदें उड़ गईं। ‘पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए, वाली शुरुआती उत्सुकता धीरे-धीरे कम होने लगी और वास्तविक युद्ध की आशंका उभरने लगी’ न केवल सीमाओं पर बल्कि राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे प्रमुख भारतीय राज्यों के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी। साथ ही भारत ने भी जवाबी कार्यवाही करते हुए कराची, लाहौर और रावलपिंडी समेत पाकिस्तान के कई स्थानों पर ड्रोन भेजे।
इसलिए जब तनाव बढ़ने लगा तो शायद दोनों देशों के नागरिक घंटे गिनने लगे कि यह सब कब और कैसे खत्म होगा, अगर होगा तो। और 10 मई को वास्तव में यह समाप्त हुआ, जब युद्ध विराम की घोषणा की गई वह क्षण जिसे ‘थैंक गॉड’ कह सकते हैं, अगर चंडीगढ़ में लोगों ने ‘चार दिन बाद, घरों की लाइटें जलाईं’ जैसा कि एक स्थानीय निवासी ने बताया तो अमृतसर में परिवार बाजारों में सैर के लिए निकल पड़े।
फिर भी पूरे घटनाक्रम को सही संदर्भ में समझने के लिए शुरुआत से बात करनी होगी। उस दिन से जब 8 मई को देश को बताया गया कि ऑपरेशन ‘सिंदूर’ शुरू किया गया है और वह कैसे इसकी जानकारी भारत को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को दी। दो महिला अधिकारियों ने -जिनमें एक मुस्लिम थीं, भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी और उनके साथ थीं विंग कमांडर व्योमिका सिंह, एक हेलीकॉप्टर पायलट। इनके साथ थे भारत के विदेश सचिव विक्रम िमसरी। और गौरतलब बात यह भी थी कि इस ऑपरेशन को नाम दिया गया था ‘सिंदूर’ अर्थात विवाहित महिलाओं द्वारा लगाया जाने वाला सिंदूर।
ऑपरेशन की विस्तृत जानकारी से इतर जो बात सबसे अधिक उभर कर सामने आई, वह था इसका संदेश। दो महिला अधिकारी -जिनमें से एक मुस्लिम थीं, यह स्पष्ट संकेत था कि भारत में हिंदू और मुस्लिम एक साथ खड़े होते हैं और साथ लड़ते हैं। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि पहलगाम आतंकी हमले में पीड़ित हिंदू थे, वास्तव में हमलावरों ने धर्म की पुष्टि करने के बाद उन्हें निशाना बनाया था।
दूसरा महत्वपूर्ण संदेश था इस ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’। अगर रिपोर्टों पर भरोसा किया जाए तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सुझाव था कि ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ रखा जाए। प्रतीकात्मक और अर्थपूर्ण, खासकर तब जब हमले में पतियों की हत्या उनकी पत्नियों के सामने की गई थी। सशस्त्र बलों द्वारा जारी किया गया बहता हुआ सिंदूर का चित्र सीधा और स्पष्ट संदेश था। भारत उन महिलाओं की पीड़ा का प्रतिशोध ले रहा है। यह पहलगाम हमले की विधवाओं को श्रद्धांजलि भी थी।
हिंदू परंपरा में सिंदूर या कुमकुम विवाह का प्रतीक होता है। दो महिला अधिकारियों द्वारा ब्रीफिंग देना, एक तरह से मोदी से जाकर कहो वाली टिप्पणी का जवाब था। यह टिप्पणी पहलगाम हमले की एक महिला जीवित बची पीड़िता से जुड़ी है। जब पीड़ित मंजनाथ की पत्नी पल्लवी ने आतंकवादियों से कहा कि वे उसे भी मार डालें तो उनमें से एक ने कहा -मैं तुम्हें नहीं मारूंगा, जाकर मोदी से कहो। मोदी सरकार ने दो महिला अधिकारियों को सामने रखकर यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत की प्रतिक्रिया की अगुवाई महिलाएं कर रही हैं। यह मोदी से जाकर कहो वाले बयान का प्रतिशोध था। तब तक देश में जोश चरम पर था, आम भारतीय गर्वित था कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘घर में घुस कर मारेंगे’ वादे को निभाया।
यह वाक्य सबसे पहले 2019 में सुर्खियों में आया था -जिसका आशय था कि भारत दुश्मन के घर में घुसकर मारेगा। यह पुलवामा में हुए हमलों और उसके बाद बालाकोट में की गई बमबारी के जवाब में शुरू हुए चुनावी अभियान का मुख्य बन गया था। अब पहलगाम के बाद यह वाक्य फिर गूंजने लगा और पूरे देश की सांसें थमी थीं कि कब भारतीय सेनाएं पलटवार करेंगी। लेकिन जो बात देश ने नहीं सोची थी, वह यह थी कि पाकिस्तान इस हद तक पलटवार करेगा। यह कल्पना भी नहीं की गई थी कि युद्ध जैसी स्थिति हमारे दरवाजे पर खड़ी हो जाएगी और जब ऐसा हुआ तब हकीकत सामने आई, पाकिस्तान झुकने को तैयार नहीं था। अपने नुक्सान चाहे जितने भी हो, वह भारत के अंदर गहराई तक ड्रोन और मिसाइल भेज रहा था।
भारतीय सेना ने जम्मू, अमृतसर और पठानकोट समेत कई स्थानों पर पाकिस्तानी ड्रोन गिराने की पुष्टि की। जैसे-जैसे तनाव बढ़ा और हालात बिगड़ने के संकेत साफ़ होते गए, नागरिकों में घबराहट बढ़ने लगी। चिंता इस बात की थी कि यह सब कितना आगे जा सकता है, क्या पाकिस्तान आत्मविनाश के रास्ते पर है और सबसे अहम क्या वह परमाणु बटन दबा सकता है?
इसलिए जब युद्ध विराम की घोषणा हुई तो पूरे देश में एक राहत की लहर दौड़ गई। वह क्षण जिसे कह सकते हैं ‘थैंक गॉड।’ हालांकि युद्ध विराम की घोषणा के बाद भ्रम की स्थिति बनी रही। क्या हमने वास्तव में युद्ध जीता या हम भी पाकिस्तान की तरह सैन्य कार्यवाही को रोकने के इच्छुक थे?
स्थिति को और जटिल बना दिया अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस ट्वीट ने जिसमें उन्होंने दोनों देशों से पीछे हटने की अपील की थी। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन न हुआ होता तो ये संदेह और गहरे होते और शायद उनके ‘करो या मरो’ वाले नेता की छवि को ठेस पहुंचाते लेकिन जब उन्होंने बात की तो पूरी स्पष्टता और दृढ़ता के साथ की और उन तमाम शंकाओं को खत्म कर दिया जो इस युद्ध विराम को जल्दबाज़ी में लिया गया कदम बता रहे थे।