पाक को मुंहतोड़ जवाब
भारत देगा पाकिस्तान को पहलगाम का करारा जवाब…
पहलगाम हत्याकांड के जवाब में भारत के लोग पाकिस्तान को करार जवाब दिये जाने के पक्ष में हैं। इसके साथ ही भारत के लोगों की अपेक्षा है कि पूरी दुनिया के देश पहलगाम आतंकी घटना पर संवेदनशीलता दिखाते हुए आतंकवाद को फैलाने वाले मुल्क पाकिस्तान का पुरजोर विरोध करें और इस काम में भारत की मोदी सरकार के समर्थन में नजर आये जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंक फैलाने वालों के खिलाफ माकूल कार्रवाई हो सके। इस भावना को रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने पहचाना है और देशवासियों को आश्वस्त किया है कि जैसा भारत के लोग चाहते हैं पाकिस्तान के विरुद्ध वैसी ही मुंहतोड़ कार्रवाई की जाएगी। रक्षामन्त्री का यह बयान बताता है कि भारत की सरकार की मंशा क्या है। भारत चूंकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है अतः इसमें आम जनता की इच्छा का आदर करना किसी भी सरकार का परम कर्त्तव्य है।
दूसरी तरफ विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर का यह बयान भी बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उपदेशकों की जरूरत नहीं है, बल्कि साझीदारों की आवश्यकता है। यूरोप के बहुत से देश भारत को संयम बरतने की सलाह दे रहे हैं। श्री जयशंकर ने इसी के जवाब में यह बयान दिया है। श्री जयशंकर भलीभांति जानते है कि पश्चिमी देशों का परोक्ष समर्थन पाकिस्तान को समय-समय पर मिलता रहा है जिसकी वजह से पाकिस्तान ने पिछले 78 सालों में भारत पर चार बार आक्रमण किया परन्तु हर बार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। हर युद्ध में भारत ने पाक को कड़ी शिकस्त दी और यहां तक उसके छक्के छुड़ाये कि 1971 में पाकिस्तान टूट कर दो हिस्सों में बंट गया और दुनिया के मानचित्र पर एक नये राष्ट्र बंगलादेश का उदय हुआ।
श्री जयशंकर ने कहा है कि भारत रूस के यथार्थवाद को प्रश्रय देता है हालांकि उसे अमेरिका की दोस्ती का भी ख्याल है। जाहिर है कि रूस और अमेरिका दोनों ही भारत के दोस्त हैं परन्तु रूस ने हर मुसीबत के समय भारत का साथ खुलकर दिया है। विदेश मन्त्री ने रूस व यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में यथार्थवाद की विवेचना की है। पूरी दुनिया जानती है कि रूस के विरुद्ध यूक्रेन की मदद यूरोपीय देश ही कर रहे हैं और अमेरिका के नये राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प इसे बीच-बचाव करके निपटाना भी चाहते हैं परन्तु रूस ने अपना यह दावा नहीं छोड़ा है कि यूक्रेन उसके कुछ हिस्से को कब्जाये बैठा है। श्री जयशंकर ने इशारों-इशारों में ही भारत-पाकिस्तान के बीच के यथार्थ की विवेचना कर डाली है।
दरअसल भारत कूटनीतिक मोर्चे से लेकर सैनिक मोर्चे तक पर पाकिस्तान को करारा सबक सिखाना चाहता है मगर इसके लिए वह समय खुद तय करेगा। इसलिए उपदेशक बने यूरोपीय देशों को श्री जयशंकर ताईद कर रहे हैं कि वे दूसरों को उपदेश देने से पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखें कि जब कभी उन पर आफत आती है तो वे किस प्रकार का व्यवहार करते हैं? लेकिन पाकिस्तान के सन्दर्भ में यूरोपीय देश उपदेश देने लगते हैं। इसकी असली वजह यह है कि 1947 में पाकिस्तान के निर्माण में ब्रिटेन का बहुत बड़ा हाथ रहा है। अंग्रेजों के दो सौ साल के भारत पर शासन के दौरान वह सब कुछ किया गया जो हिन्दू-मुसलमानों को आपस में बांट सकता था क्योंकि अंग्रेज जानते थे कि यदि भारत को संयुक्त रखा गया तो वह दुनिया की बहुत बड़ी ताकत के रूप में उभर सकता है। इसका कारण यह था कि संयुक्त भारत में वे सब स्रोत मौजूद थे जो किसी भी देश को विश्व शक्ति बनाते हैं।
इसलिए 1919 में सबसे पहले अंग्रेजों ने श्रीलंका को भारत से अलग किया। फिर 1935 में बर्मा (म्यांमार) को अलग किया और 1947 में भारत को हिन्दोस्तान व पाकिस्तान में विभाजित कर डाला। मगर 1889 में इन सबसे पहले अंग्रेजों ने अफगानिस्तान को अलग कर दिया था। अंग्रेजों ने तो पाकिस्तान बनाने के लिए पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह की विशाल सल्तनत का भी संज्ञान नहीं लिया और पंजाब में ही पाकिस्तान बना डाला। 1947 में जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो उन्होंने विशाल भारत की सात सौ से अधिक देशी रियासतों को भी स्वतन्त्रता प्रदान कर दी और उनके सामने यह विकल्प रख दिया कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसी के साथ भी अपना विलय कर सकती हैं और चाहे तो स्वतन्त्र भी रह सकती हैं।
महाराजा रणजीत सिंह की रियासत के मामले में यह फार्मूला अंग्रेजों ने यह कहते हुए लागू नहीं किया कि अंग्रेजों ने आगरा से लेकर काबुल तक फैली महाराजा की रियासत को 1849 में महाराजा दिलीप सिंह से खरीदा था। जबकि महाराजा दिलीप सिंह की बेटी राजकुमारी बाम्बा ब्रिटिश सरकार से यह गुहार लगा रही थी कि उन्हें भी अन्य देशी रजवाड़ों की माफिक रियासत सौंपी जाये। मगर उनकी किसी ने नहीं सुनी। दरअसल पाकिस्तान का निर्माण अंग्रेजों ने इस लालच की वजह से किया था कि भविष्य में पाकिस्तान उन्हें पूरे पश्चिमी एशिया व प्रशान्त महासागर में वरीयता देगा। वरना भारत के बंटवारे के मुद्दे पर अंग्रेजी सेनाओं के कमांडरों के बीच भी शुरू में मतभेद थे।
अतः यूरोपीय जगत यदि भारत को संयम बरतने का उपदेश दे रहा है तो उसके अपने हितों के ऐतिहासिक कारण हैं। श्री जयशंकर का कथन पूरी तरह यथार्थवादी है और वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के मानकों पर टिका हुआ है। साथ ही राजनाथ सिंह का वक्तव्य भारत के यथार्थ पर टिका हुआ माना जाएगा। उनका यह कहना कि प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी का मिजाज निर्णायक फैसले लेने वाले राजनीतिज्ञ का है अतः उनके नेतृत्व की सरकार पाकिस्तान को माकूल जवाब देगी और रक्षामन्त्री के रूप में वह राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी करेंगे, बताता है कि राष्ट्रीय मोर्चे से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे तक पर भारत यथार्थवादी रुख अख्तियार करेगा। रक्षामन्त्री व विदेश मन्त्री का सन्देश साफ है कि भारत पाकिस्तान को पहलगाम का मुंहतोड़ जवाब देगा।