ट्रम्प को करारा जवाब
ऑपरेशन सिंदूर के बीच भारत और पाकिस्तान में हुई संघर्ष विराम सहमति…
ऑपरेशन सिंदूर के बीच भारत और पाकिस्तान में हुई संघर्ष विराम सहमति को लेकर लगातार एक के बाद एक बयान दाग रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को भारत ने करारा जवाब दे दिया। पहले ट्रम्प ने अपने ट्विटर पर दोनों देशों में संघर्ष विराम सहमति का ऐलान किया था, फिर उन्होंने यह कहा कि अमेरिका ने परमाणु युद्ध रुकवा दिया है। हमने दोनों से कहा हम दाेनों के साथ खूब व्यापार करेंगे तो दोनों रुक जाओ। अगर तुम नहीं रुकते तो हम कोई व्यापार नहीं करेंगे। फिर उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश कर दी। भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दा द्विपक्षीय आधार पर हल करना होगा। इस मुद्दे पर किसी तीसरे देश की मध्यस्थता हमें स्वीकार नहीं। भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद शिमला समझौता हुआ था, जिसे दोनों देशों के बीच शत्रुता खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण माना गया था। शिमला समझौते के मुताबिक दोनों देश सभी मुद्दों का समाधान द्विपक्षीय वार्ता और शांतिपूर्ण तरीके से करेंगे।
भारत ने सीज फायर नहीं करने पर व्यापार रोकने की धमकी देने वाले ट्रम्प के बयान को पूरी तरह से खारिज कर दिया। संघर्ष विराम सहमति में ट्रम्प की भूमिका को लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है। उसके बाद भारत ने अपना स्टैंड स्पष्ट कर दिया है। ट्रम्प अपने चुनावी अभियान में रूस-यूक्रेन और गाजा-इजराइल जंग को बंद करवाने और मध्यस्थता करने की बात करते रहे थे। यूक्रेन-रूस युद्ध रुकवाने के लिए उन्होंने कोशिशें भी कीं लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं िमली। अब ऐसा लगता है कि ट्रम्प बयानबाजी कर दुनियाभर में भारत-पाक में युद्ध रुकवाने का श्रेय लेना चाहते हैं। समस्या यह है कि वे युद्ध को भी व्यापारिक डील मानने लगे हैं। अमेरिकी खुद महसूस कर रहे हैं कि ट्रम्प की दूसरी पारी में अमेरिका की विदेश नीति में भ्रम है और उसमें कोई दम नजर नहीं आता। डोनाल्ड ट्रम्प वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी को अपना मित्र बताते हैं लेकिन एक सवाल बार-बार उठता है कि जब भी भारत पाकिस्तान को निर्णायक जवाब देने की स्थिति में होता है, अमेरिका उसमें हस्तक्षेप क्यों करता है। इतिहास देखें तो भारत और पाकिस्तान के बीच 1947, 1965, 1971, और 1999 में चार बड़े युद्ध और कई छोटे-बड़े सैन्य टकराव हो चुके हैं। इनमें से अधिकांश कश्मीर विवाद से जुड़े रहे हैं। 1947 के पहले कश्मीर युद्ध में पाकिस्तान समर्थित कबायलियों ने कश्मीर पर हमला किया, जिसके जवाब में भारत ने सैन्य कार्रवाई की और पाक समर्थक आतंकियों को खदेड़ दिया। 1971 का युद्ध भारत के लिए निर्णायक रहा, जब भारतीय सेना की मदद से बंगलादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) ने स्वतंत्रता हासिल की। इस युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था। अमेरिकी नौसेना की सातवीं फ्लीट को बंगाल की खाड़ी में तैनात किया गया था। इसमें परमाणु-सक्षम विमानवाहक पोत ‘एंटरप्राइज’ शामिल था। हालांकि, सोवियत संघ की चेतावनी और भारत की कूटनीतिक सैन्य ताकत ने अमेरिका को हस्तक्षेप से रोक दिया।
1999 के कारगिल युद्ध में अमेरिका ने तटस्थ रुख अपनाते हुए दोनों देशों से तनाव कम करने की अपील की लेकिन उसने पाकिस्तान पर नियंत्रण रेखा (एलआेसी) से अपनी सेना हटाने का दबाव डाला। 2016 के उरी हमले और 2019 के पुलवामा हमले के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसे कदम उठाए, जिनमें अमेरिका ने भारत के आतंकवाद-विरोधी रुख का समर्थन तो किया लेकिन साथ ही तनाव कम करने की सलाह भी दी।
पहलगाम हमले के बाद भी अमेरिका ने सीधे तौर पर पाकिस्तान को जिम्मेदार नहीं ठहराया, उल्टा भारत को संयम बरतने का उपदेश देता रहा। अमेरिका हमेशा अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तोलता है। सारी दुनिया पाकिस्तान का सच जानती है। इसके बावजूद अमेरिका पाकिस्तान का गैर नाटो प्रमुख सहयोगी का दर्जा बरकरार रखे हुए है। अमेरिका यह दर्जा उन देशों को देता है जो नाटो के सदस्य नहीं हैं लेकिन अमेरिका के साथ रणनीतिक और सैन्य सहयोग रखते हैं। अमेरिका पर 9/11 आतंकवादी हमले के बाद पूरी दुनिया हिल उठी थी लेकिन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान को अपना दोस्त बना लिया था। तब तत्कालीन तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने अपनी पूंछ सीधी कर ली थी। उन्होंने बुश को अपना आका बनाया और खुद सेवक बन गया। तब मुशर्रफ ने बुश के गुलाम की भूमिका िनभाई और कहा, ‘‘आप अलकायदा और तालिबान को अफगानिस्तान में तबाह कर दें, यह हुकम का गुलाम हर हाल में आपके साथ है।’’ भारत ने बहुत समझाने की कोिशश की कि पाकिस्तान आतंकवादी देश है, इसको अमेरिका अपना दोस्त न बनाए लेकिन अमेरिका ने एक न मानी। पाकिस्तान के सारे कर्जे माफ कर दिए गए और नए कर्जों से उसकी झाेली भर दी। पाकिस्तान ने इसी पैसे से आतंकवाद की खेती की। ट्रम्प ने पाकिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से ऋण िदलवाकर अमेरिका की पुरानी नीतियों को ही दोहराया है। पाकिस्तान विश्व शांति के लिए खतरनाक है। यह सही है अमेरिका विश्व का शक्तिशाली देश है लेकिन विश्व शांति में उसकी क्या भूमिका है, यह किसी से िछपा नहीं है। विश्व शांति के नाम पर उसने विध्वंस के खेल खेले हैं। भारत सरकार को अपने इस मित्र से सतर्क और सावधान होकर चलना होगा।