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आखिर इन्सान खाये भी तो क्या?

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09:16 AM Oct 27, 2018 IST | Desk Team

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दाल-रोटी खाइये, प्रभु के गुण गाइये! पंजाबी की भी एक अन्य मशहूर कहावत है-खाइये दाल जिहड़ी निभे नाल! दालों की पौष्टिकता को लेकर भी अलग-अलग भाषा में कहावतें मिल जाएंगी लेकिन सवाल यह है कि अगर दाल ही विषैली हो तो फिर कोई इसे खाकर प्रभु के गुण कैसे गा सकता है। त्यौहारों के दौरान नकली मावा, नकली दूध की खबरें तो आती ही रहती हैं। कभी ब्रैड को खतरनाक बताया जाता है, कभी किसी को। अब मूंग और मसूर की दालों के विषाक्त होने की खबर आई है। इस सम्बन्ध में चेतावनी भी खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने जारी कर दी है। चेतावनी में कहा गया है कि मूंग आैर मसूर की दालों में अत्यधिक जहरीले पदार्थ हर्बीसाइड ग्लाईकोसेट है जो कि सेहत के लिए हानिकारक है। प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने अब अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन सुनिश्चित किया है ताकि इन दालों की बिक्री और खपत सुरक्षित तरीके से हो। इस चेतावनी का अर्थ हम मूंग और मसूर के साथ जहरीले कैमिकल भी खा रहे हैं जो हमारी किडनी को नुक्सान पहुंचा सकते हैं।

भारत में दालेें कनाडा और आस्ट्रेलिया से आयात होती हैं। दोनों देशों में दालों का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है। एफएसएसएआई का कहना है कि हर्बीसाइड ग्लाईकोसेट का इस्तेमाल कृषि के दौरान घास-फूस आैर शैवाल खत्म करने के लिए किया जाता है आैर यह इतना जहरीला होता है कि इससे इन्सान के शरीर को काफी नुक्सान हो सकता है। यह शरीर के प्रोटीन से जुड़े कार्यों को नुक्सान पहुंचाता है। इम्युनिटी सिस्टम को डैमेज करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी हाल ही में एडवाइजरी जारी करते हुए इन दालों का सेवन बन्द करने की अपील की है। फूड सेफ्टी अथारिटी ने दालों की स्टडी तब करवाई जब एक एक्टिविस्ट ने भारत में पाई जाने वाली दालों की गुणवत्ता पर चिन्ता जाहिर करते हुए कहा कि भारतीय आहार सालों से जरूरत से ज्यादा दूषित है। भारतीयों ने आहार की गुणवत्ता को लेकर कोई ज्यादा ध्यान हीं नहीं दिया लिहाजा यह दालें बिना किसी परेशानी के पास होती गईं और बाजार में बिकती गईं। फूड सेफ्टी अथारिटी ने अब जाकर सम्बन्धित अधिकारियों को कनाडा में हर्बीसाइड का स्टैंडर्ड क्या है, इसकी जानकारी हासिल करने को कहा है।

हैरानी की बात तो यह भी है कि कैनेडियन फूड इंस्पैक्शन एजैंसी ने भी कनाडा आैर आस्ट्रेलिया के किसानों द्वारा उगाई जा रही मूंग आैर मसूर दाल के हजारों सैम्पल टैस्ट किए, उनमें भी ग्लाईकोसेट की मात्रा मानक के हिसाब से काफी ज्यादा पाई गई। हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं को शुद्ध रूप में मिलना दूभर हो चुका है। जितनी चाहे जांच-पड़ताल कर लें, फिर भी विश्वास नहीं होता कि खरीदी गई वस्तु शुद्ध है। मिलावट की समस्या इतनी व्यापक हो चुकी है कि वस्तु की शुद्धता के विषय में हमारे मन में अविश्वास आैर संदेह की जड़ बहुत भीतर तक जम गई है। घी, दूध, मसाले, दवाइयां और बहुत सी वस्तुएं बाजार में किसी भाग्यशाली को ही मिलती होंगी। देश में खाद्य वस्तुओं में मिलावट मुनाफाखोरी का सबसे आसान जरिया बन गई है। 2015 में मुम्बई में 64 फीसदी खुला तेल मिलावटी पाया गया था। वड़ोदरा के एक विश्वविद्यालय की जांच में दाल और सब्जियों के सैम्पल में आर्गेनिक मिलने की बात कही थी। उत्तर प्रदेश में एक जांच में अण्डों में ई-कोलाई बैक्टीरिया पाया गया था। दूध और मक्खन तो शुद्ध मिलने का सवाल ही नहीं।

रासायनिक खेती ने मुनाफा तो बढ़ा दिया लेकिन सब्जियों में पौष्टिकता खत्म कर दी। सब जानते हैं कि लौकी, खीरा सहित तमाम सब्जियों का आकार बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजैक्शन का प्रयोग किया जाता है। रात ही रात में सब्जियों का आकार आैर वजन बढ़ जाता है लेकिन लोग फिर भी खाते हैं। भारत की छोड़िये, अब तो विदेशी कम्पनियों के उत्पादों पर भरोसा नहीं रहा। पाठकों को याद ही होगा कि रसोई में अपना स्थान बना चुकी मैगी नूडल्स को 5 जून 2015 को भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण ने प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि इसमें लेड की मात्रा अधिक पाई गई थी जो शरीर के लिए खतरनाक थी। मैगी की बिक्री की अनुमति तब दी गई जब उसे मानक के अनुरूप बनाया गया। भारत में खाद्य अपमिश्रण रोकने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है। सच्चाई तो यह है कि समस्या की जड़ में देश में जरूरी मानकों का अभाव है। सुरक्षित भोजन से सम्बन्धित भारत में मुख्य कानून है 1954 का खाद्य पदार्थ अपमिश्रण निषेध अधिनियम।

इसका नियम 65 खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों पर मिलावट का नियमन करना है लेकिन यह नियम सजा दिलाने में लगभग नाकाम ही साबित हो रहे हैं। हर राज्य में सरकारी विभाग है लेकिन जिस पैमाने पर मिलावट हो रही है उसमें कर्मचारियों की कमी निश्चित रूप से चिन्ता का कारण है। सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार है, उन्हें तो पैसा उगाहने से फुर्सत नहीं। देश में अब भी काफी कुपोषण है। लोगों को भरपेट खाना नहीं मिलता। जो मिल रहा है वह जहर है। आखिर इन्सान खाये भी तो क्या? स्वास्थ्य मंत्रालय, खाद्य मंत्रालय को मिलकर हर उस उत्पाद की जांच करनी चाहिए जो आयात किया जा रहा है और जो देश के भीतर तैयार हो रहा है। देश को स्वस्थ बनाना है तो ठोस नियम, मानक और कानून बनाने होंगे अन्यथा देश ही बीमार हो जाएगा। हमें ऐसा कुछ करना होगा जिससे भावी पीढ़ी को कम से कम शुद्ध खाना तो मिल सके।

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