Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

स्पेसकिड्स की उपलब्धि

NULL

09:26 AM Jan 26, 2019 IST | Desk Team

NULL

अंतरिक्ष में एक के बाद एक उपलब्धियां हासिल करने वाले भारतीय अनुसंधान संस्थान इसरो ने एक बार फिर नया इतिहास रचा है। श्रीहरिकोटा लांचिंग सैण्टर से इसरो ने एक ऐसा उपग्रह लांच किया जो अब तक दुनिया के किसी भी देश ने नहीं किया है। खास बात यह है कि इस उपग्रह का वजन 1 किलो 26 ग्राम है और इसे हाईस्कूल के छात्रों ने बनाया है। इस उपग्रह का नामकरण पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर ‘कलामसैट’ रखा गया है। कलामसैट के साथ ही इसरो ने इमेजिंग उपग्रह माइक्रोसैट-आर को भी अंतरिक्ष में भेजा गया है। कलामसैट को चेन्नई स्थित स्टार्टअप कम्पनी स्पेस एजूकेशन फर्म स्पेसकिड्स इंडिया के छात्रों ने महज 6 दिन में बनाया है। भारत के गणतंत्र दिवस के ठीक दो दिन पहले इसकी लांचिंग एक बड़ी सफलता है और यह देश के लिए एक उपहार है।

कलामसैट की खासियत यह है कि इस सैटेलाइट को हैम रेडियो ट्रांसमिशन के कम्युनिकेशन सैटेलाइट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा। हैम रेडियो ट्रांसमिशन से आशय वायरलैस कम्युनिकेशन के उस रूप में है जिसका इस्तेमाल गैर-पेशेवर गतिविधियों में इस उपग्रह से शौकिया तौर पर रेडियो सेवा चलाने वालों को अपने कार्यक्रमों के लिए तरंगों के आदान-प्रदान में मदद मिलेगी। वर्ष 2017 में एक अन्य भारतीय छात्र ने भी इससे भी हल्के उपग्रह को बनाया था जिसका वजन मात्र 64 ग्राम था। इस उपग्रह को नासा ने लांच किया था हालांकि वह पृथ्वी की कक्षा में पहुंचने में असफल रहा था। यह पहला मौका है जब इसरो ने किसी भारतीय निजी ​संस्था का सैटेलाइट लांच किया है। इसरो इससे पहले छात्रों के 9 उपग्रह लांच कर चुका है। पहले छात्रों द्वारा बनाए गए उपग्रहों को इसरो गुब्बारे के जरिये छोड़ा करता था। ज्यादातर ये सैटेलाइट कभी किसी कक्षा तक नहीं पहुंचते थे। यह पहला अवसर है जब छात्रों द्वारा बनाए गए उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया है। छात्रों द्वारा तैयार किए गए इस सैटेलाइट से यह बात प्रमाणित हो गई है कि देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। जरूरत है प्रतिभाओं को निखारने की, उन्हें सही दिशा देने की।

हाईस्कूल के छात्रों ने उपग्रह के मॉड्यूल और इलैक्ट्रोनिक्स को खुद ही बनाया है। इससे छात्रों काे भविष्य में सस्ते सैटेलाइट बनाने में मदद मिलेगी। छात्रों ने अंतरिक्ष की गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों के बीच अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए सैटेलाइट में एयरोस्पेस ग्रेड एल्युमीनियम का प्रयोग किया है और इसका ढांचा 3-डी मॉडल साफ्टवेयर के जरिये तैयार किया है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्टार्टअप योजना की शुरूआत इसलिए की थी कि देश के युवा जो स्वयं अपनी प्रतिभा के बल पर अपना काम शुरू करना चाहते हैं, कर सकें। इसके लिए सरकार वित्तीय सहायता भी करेगी। हालांकि स्टार्टअप को अधिक सफलता नहीं मिली लेकिन ‘स्पेसकिड्स ने इस योजना का लाभ उठाया और सफलता हासिल की। स्पेसकिड्स इंडिया आर्ट, साइंस और कल्चर को भारत के स्टूडेंट्स तक ले जाने के लिए काम कर रही है।

भारत में छात्रों की विज्ञान और इंजीनियरिंग में रुचि कम हो रही है। वह केवल एमबीए या कॉमर्स की शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज बन्द हो चुके हैं क्योंकि छात्र उनमें दाखिला ही नहीं लेते। सबसे बड़ा सवाल बेरोजगारी का है। जब इंजीनियर को काम नहीं मिलेगा तो निराशा फैलेगी ही। ऐसी स्थिति में छात्रों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में रुचि को पैदा करने के लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है। यह काम शैक्षणिक संस्थान ही कर सकते हैं। सैटेलाइट लांचिंग के बाद देश के छात्रों को बधाई देते हुए इसरो के प्रमुख सिवन ने संदेश भी दिया है कि इसरो सारे छात्रों के लिए हमेशा उपलब्ध है।

छात्र अपने बनाए सैटेलाइट लेकर इसरो के पास आए और हम उसकी लांचिंग करेंगे। यह संदेश भी छात्रों को प्रेरित करेगा। जरूरत है इसरो की तरह सभी शिक्षा संस्थान छात्रों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवोन्मेष को प्रोत्साहित करें। हाल ही में वैश्विक संगठन क्लेरीनेट एनालिटिक्स ने दुनिया के मौजूदा 4 हजार सबसे काबिल वैज्ञानिकों की एक सूची जारी की थी लेकिन दुर्भाग्य से इस सूची में भारत जैसे विशाल देश में महज 10 वैज्ञानिकों को जगह मिली है जबकि भारत की शैक्षिक अधिसंरचना दुनिया में चीन के बाद सबसे विस्तृत है। हम हर साल 50 लाख से ज्यादा स्नातक पैदा करते हैं जिनमें अकेले 15 लाख तो इंजीनियर ही होते हैं। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि देश में कितने बड़े पैमाने पर छात्र विज्ञान विषयों को लेेकर पढ़ाई करते हैं। बावजूद इसके काबिल वैज्ञानिक पैदा करने के मामले में हम पिछड़े हुए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जिन 10 वैज्ञानिकों को सूची में जगह मिली है वे भारत के विश्व प्रसिद्ध संस्थानों के नहीं हैं बल्कि ऐसे संस्थानों से हैं जिनकी शैक्षिक बाजार में बहुत ऊंची साख नहीं है। प्रतिभाएं केवल महानगरों में नहीं होतीं बल्कि प्रतिभाएं गांव और देश के दूर-दराज के पिछड़े इलाकों में भी हो सकती हैं। भारत के मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम इसका उदाहरण रहे हैं। भारत को विश्व गुरु बनना है तो प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना ही होगा।

Advertisement
Advertisement
Next Article