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अधीर चौधरी का बेसुरा राग

लोकसभा में विपक्ष के अनौपचारिक नेता और प. बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष श्री अधीर रंजन चौधरी ने जी-20 सम्मेलन में पधारे विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान में भारत की राष्ट्रपति श्री द्रौपदी मुर्मु द्वारा दिये गये

01:34 AM Sep 12, 2023 IST | Aditya Chopra

लोकसभा में विपक्ष के अनौपचारिक नेता और प. बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष श्री अधीर रंजन चौधरी ने जी-20 सम्मेलन में पधारे विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान में भारत की राष्ट्रपति श्री द्रौपदी मुर्मु द्वारा दिये गये

लोकसभा में विपक्ष के अनौपचारिक नेता और प. बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष श्री अधीर रंजन चौधरी ने जी-20 सम्मेलन में पधारे विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान में भारत की राष्ट्रपति श्री द्रौपदी मुर्मु द्वारा दिये गये रात्रि भोज में अपने राज्य की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी के शामिल होने पर तीखी आलोचना की है और पूछा है कि यदि वह प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की पक्की विरोधी हैं तो वह भोज में शामिल क्यों हुई? यह सवाल पूरी तरह बचकाना है औऱ बताता है कि श्री चौधरी का राजनैतिक ज्ञान कितना आधा-अधूरा और उथला है। श्री चौधरी को सबसे पहले यह ज्ञात होना चाहिए कि हर विदेशी मेहमान के लिए मौजूदा केन्द्र सरकार किसी पार्टी की सरकार नहीं बल्कि ‘भारत’ की सरकार है। दूसरे यदि भारत के राष्ट्रपति की ओर से किसी भी मुख्यमन्त्री को निमन्त्रण भेजा जाता है तो उसका सम्मान करना उसका परम कर्त्तव्य औऱ दायित्व है। बेशक हमारी व्यवस्था के अऩुसार राष्ट्रपति का चुनाव राजनैतिक आधार पर ही होता है मगर पद पर बैठते ही राष्ट्रपति ‘अराजनैतिक’ हो जाता है। वह भारत के संविधान के संरक्षक होते हैं और इस नाते उनके लिए संवैधानिक पद पर चुने हुए सभी मुख्यमन्त्री किसी राजनैतिक दल की राज्य सरकारों के मुखिया नहीं रह जाते हैं बल्कि उन सभी प्रदेशों की जनता के सिरमौर होते हैं। अतः राष्ट्रपति द्वारा उन्हें गया निमन्त्रण संविधान के संरक्षक का निमन्त्रण होता है जिसकी शपथ लेकर ही किसी भी राज्य का किसी भी दल का व्यक्ति मुख्यमन्त्री बनता है।
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रात्रि भोज में गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमन्त्रियों का शिरकत करना संविधान का सम्मान करना ही होता है। मगर इसके साथ यह प्रश्न भी महत्पूर्ण है कि कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा में विपक्ष के अधिकारिक नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे को निमन्त्रण न भेजा जाना भी उतना ही पीड़ादायक है। भारत की संसदीय प्रणाली की राजनीति में संसद के दोनों सदनों के भीतर विपक्ष के नेता का भी अपना खास मुकाम व रूतबा होता है। यह उन महात्मा गांधी का देश है जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ही स्पष्ट कर दिया था कि लोकतन्त्र में विरोधी या विपक्ष के नेता के विचारों का सम्मान सत्तारूढ़ दल द्वारा किया जाना बहुत जरूरी होता है। उन्होंने अपने अखबार ‘हरिजन’ में सम्पादकीय लिख कर कहा था कि ‘मैं अपने विरोधी के विचार उसे अपने से ऊंचे आसन पर बैठा कर सुनना पसन्द करूंगा’।
विडम्बना यह है कि श्री चौधरी उस राजनैतिक नैतिकता व मर्यादा को नहीं समझ पाते हैं जिसका अनुसरण करने के लिए उनकी ही पार्टी के विभिन्न नेता गुहार लगाते रहते हैं। क्या श्री चौधरी चाहते थे कि राष्ट्रपति द्वारा बुलाये गये भोज का उसी प्रकार राजनीतिकरण किया जाना चाहिए था? नैतिकता का तकाजा था कि श्री चौधरी को राष्ट्रपति की भूमिका को राजनैतिक लाग-लपेट के घेरे में नहीं लाना चाहिए था और सारा मामला राष्ट्रपति के लोकाचार पर ही छोड़ देना चाहिए था जैसा कि श्री राहुल गांधी ने किया। मगर श्री चौधरी इसमें भी परोक्ष रूप से विपक्षी गठबन्धन इंडिया और सत्तारूढ़ भाजपा की राजनीति को ले आये। विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों के मुख्यमन्त्रियों ने रात्रि भोज में शामिल होकर बड़प्पन ही दिखाया है और सिद्ध किया है कि विदेशी मेहमानों के सामने पूरा भारत एक है।  भारत की राजनीति उच्च मानदंड स्थापित करने वाली रही है जिसे सत्तारूढ़ व विपक्षी दल दोनों द्वारा ही शिरोधार्य करना चाहिए। डा. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान जब विपक्षी नेता श्री लालकृष्ण अडवानी को राष्ट्रसंघ में भेजा गया था तो श्री अडवानी ने वहां जाकर यह कहा था  ‘भारत सरकार द्वारा शुरू की गई मनरेगा स्कीम दुनिया की गरीबी हटाने की सबसे बड़ी योजना है’। यही तो लोकतन्त्र की मूल आत्मा है। संसद में विपक्ष के नेता को ‘केबिनेट’ स्तर के मन्त्री का दर्जा देने की प्रथा हमने 1977 में ही तब डाली जब देश में कांग्रेस विरोधी जनता पार्टी की सरकार स्व. मोरारजी भाई के नेतृत्व में बनी थी। उस समय संसद में इस आशय का कानून बनाया गया था। किसे निमन्त्रण भेजा जाना है यह कार्य राष्ट्रपति के सचिवालय का था क्योंकि राष्ट्रपति के अपने अलग लोकाचार ( प्रोटोकोल) नियम होते हैं लेकिन माननीय चौधरी साहब को कौन समझाये कि पांच दशक से अधिक समय तक देश पर राज करने वाली उनकी पार्टी कांग्रेस ने ही संसद के भीतर से लेकर बाहर तक उच्च लोकतान्त्रिक परंपराएं स्थापित की।
राष्ट्रपति के विदेश दौरों में विपक्षी दलों के सांसदों को भी साथ ले जाने की परंपरा शुरू की गई। भारत का लोकतन्त्र कोई छुई-मुई नहीं है कि सरकारी कार्यक्रमों में विपक्ष के नेताओं के शिरकत करते ही यह मुरझा जायेगा? हमारे पुरखे हमारे लोकतन्त्र को जड़ से जमा कर ही गये हैं। हमारी सरकारों ने जो लोकाचार (प्रोटोकोल) के जो नियम बनाये वे सत्ता में विपक्ष की भी भागीदारी सुनिश्चित करने की दृष्टि से कराये क्योंकि विपक्ष के नेता भी जनता का वोट पाकर ही संसद के सदस्य बनते हैं। रात्रि भोज के लिए सभी मुख्यमंत्रियों को निमन्त्रण भेजे गये थे। इसी वजह से इंडिया के घटक दलों जनता पार्टी व झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुख्यमंत्रियों क्रमशः श्री नीतीश कुमार व हेमन्त सोरेन ने भी भाग लिया। यही तो भारत की ताकत है जिसका लोहा विदेशी भी मानते हैं।
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