Putin को एक और झटका, अजरबैजान के बाद अब इस मित्र देश ने रूस से की बगावत!
Putin: दक्षिण कॉकसस (South Caucasus) क्षेत्र में रूस की पकड़ अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही. जहां पहले अजरबैजान ने रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया, अब अर्मेनिया भी उसी राह पर चलता दिखाई दे रहा है. हाल के कुछ फैसलों से यह साफ हो गया है कि अर्मेनिया अब रूस पर निर्भर नहीं रहना चाहता. ये घटनाएं पुतिन के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरी हैं. रूस और अजरबैजान के बीच विवाद की वजह दो अजरबैजानी नागरिकों की मौत है. रूस के येकातेरिनबर्ग शहर में हुसैन और जियाद्दिन सफारोव नाम के दो भाइयों को गिरफ्तार किया गया था.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का आरोप था. कुछ दिन बाद दोनों की मौत हो गई, एक की मौत दिल का दौरा बताया गया, जबकि दूसरे की मौत की जांच अब भी जारी है. अजरबैजान ने इस मामले को राजनीतिक साजिश करार दिया और रूसी जांच एजेंसियों पर सवाल उठाए. इसके बाद रूस ने और छह अजरबैजानी नागरिकों को हिरासत में ले लिया, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में और खटास आ गई.
अर्मेनिया के बदले रुख से पुतिन पर दबाव
अर्मेनिया और रूस पुराने सहयोगी रहे हैं, लेकिन अब अर्मेनिया रूस से दूरी बनाता नजर आ रहा है. प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान के नेतृत्व में अर्मेनिया ने हाल ही में तीन ऐसे बड़े कदम उठाए हैं, जो पुतिन के लिए चिंता की बात हैं.
1. अजरबैजान से शांति की पहल
जिस अजरबैजान से अर्मेनिया ने कई लड़ाइयाँ लड़ी हैं, अब उसी से समझौते की कोशिश की जा रही है. जुलाई के आखिर में दुबई में अर्मेनिया और अजरबैजान के नेताओं की बैठक होने वाली है. नागोर्नो-काराबाख को लेकर दशकों से चला आ रहा विवाद अब धीरे-धीरे सुलझाने की दिशा में बढ़ रहा है. अर्मेनिया अब युद्ध नहीं, बल्कि शांति चाहता है.
2. रूसी मीडिया पर संभावित बैन
अर्मेनिया की संसद ने हाल ही में प्रस्ताव रखा कि देश में रूस के सरकारी न्यूज चैनलों को बंद किया जाए. ये चैनल पुतिन के पक्ष में प्रचार करते हैं. अगर ये कदम उठाया गया, तो रूस की सूचना रणनीति को बड़ा झटका लगेगा. यह अर्मेनिया की तरफ से एक बड़ा संकेत होगा कि वह अब रूस के दबाव में नहीं रहना चाहता.
3. चीन से नजदीकी बढ़ाना
अर्मेनिया अब चीन के साथ भी संबंध मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. चीन की ‘Belt and Road Initiative’ के साथ अर्मेनिया की 'Crossroads of Peace' परियोजना को जोड़ा जा रहा है. अर्मेनिया का कहना है कि दोनों परियोजनाएं एक-दूसरे को सहयोग कर सकती हैं. अब अर्मेनिया, चीन के साथ एक दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की दिशा में बढ़ रहा है.
पुतिन के लिए खतरे की घंटी
अब तक रूस को भरोसा था कि अर्मेनिया जैसे पुराने सहयोगी उसके साथ बने रहेंगे, लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं. अजरबैजान और अर्मेनिया दोनों का रूस से दूर जाना, दक्षिण कॉकसस क्षेत्र में रूस की स्थिति को कमजोर कर रहा है. यह पुतिन की विदेश नीति के लिए एक गंभीर संकेत है कि उसकी पकड़ अब ढीली पड़ रही है.