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कृषि क्षेत्र ने अर्थव्यवस्था को बचाया

लॉकडाउन हटाये अब दो महीने का समय पूरा हो रहा है। सरकार ने अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति को देखते हुए अनलॉक फेज-एक और दो में आर्थिक गतिविधियों को लगभग पूरी तरह खोल दिया है।

12:05 AM Aug 25, 2020 IST | Aditya Chopra

लॉकडाउन हटाये अब दो महीने का समय पूरा हो रहा है। सरकार ने अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति को देखते हुए अनलॉक फेज-एक और दो में आर्थिक गतिविधियों को लगभग पूरी तरह खोल दिया है।

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कृषि क्षेत्र ने अर्थव्यवस्था को बचाया
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लॉकडाउन हटाये अब दो महीने का समय पूरा हो रहा है। सरकार ने अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति को देखते हुए अनलॉक फेज-एक और दो में आर्थिक गतिविधियों को लगभग पूरी तरह खोल दिया है। भारत की जीडीपी को देखें तो इसमें औद्योगिक क्षेत्र की 30 फीसदी और सेवा क्षेत्र की 57 फीसदी के करीब हिस्सेदारी है। इसके बाद कृषि क्षेत्र आता है जिसकी जीडीपी में हिस्सेदारी लगभग 13 फीसदी है।
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कोरोना महामारी के चलते जीडीपी घटकर 5.2 फीसदी रह गई है। यह आंकड़ा 1979-80 के बराबर है परन्तु उस वर्ष कृषि जीडीपी में 12.8 फीसदी नकारात्मक रिकार्ड की गई थी। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक राहत भरी खबर यह है कि यद्यपि जीडीपी गिर रही है लेकिन इसके बावजूद कृषि उत्पादन बढ़ा है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि अगर देश की अर्थव्यवस्था को कोई बचा रहा है तो वह है कृषि क्षेत्र। रबी सीजन में गेहूं, चना और अन्य खाद्यान्न का उत्पादन 151.72 मिलियन टन हुआ है जो पिछले वर्ष के मुकाबले 5.6 फीसदी ज्यादा है। यद्यपि तिलहन मस्टर्ड का उत्पादन 3.2 फीसदी घटकर 10.49 मीट्रिक टन रह गया है लेकिन रबी की सब्जी फसल जमकर लहलाई है। प्याज, टमाटर, बींस और जीरे से लेकर आम, अंगूर और तरबूज के उत्पादन में बढ़ौतरी हुई है।
कृषि से जुड़े अन्य व्यवसायों में भी अप्रैल-जून में 4.5 फीसदी की बढ़ौतरी देखी गई। मानसून के दौरान आधी वर्षा से भी अगली फसल में बढ़ौतरी  की उम्मीदें जगा दी हैं। डेयरी फार्म सैक्टर में पिछली तिमाही में दूध का उत्पादन भी पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़ा है। 2019 में महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के अधिकांश भागों में सूखे की स्थिति थी जिस कारण गाय के दूध की कीमतें दस रुपए लीटर तक बढ़ गई थी, अब मानसून की वर्षा अच्छी हुई है और चारे की कोई समस्या नहीं रही, इसलिए दूध की आपूर्ति भी बढ़ी है।
हाल ही में गूगल की कोविड-19 मोविलटी रिपोर्ट आई है। यह रिपोर्ट इस ओर इशारा कर रही है कि भारत की अर्थव्यवस्था वापस लॉकडाउन से पहले की स्थिति की तरफ तेजी से बढ़ रही है। यह रिपोर्ट 131 देशों के लिए निकाली गई है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का सबसे लम्बा लॉकडाउन लगाने के बाद भी भारत उन टॉप 50 देशों में शुमार है जिनकी अर्थव्यवस्था ज्यादा तेजी के साथ सामान्य स्थिति की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है।
खुदरा, किराना, फार्मा, ट्रांसपोर्ट और बैंकिंग सैक्टर लॉकडाउन से एकदम पहले जैसी स्थिति की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। लॉकडाउन हटने के बाद बीते जून में वस्तु एवं सेवा कर यानी  जीएसटी के संग्रह में भी तेजी आई है। जून में कोरोना वायरस महामारी के बीच जीएसटी संग्रह 90,917 करोड़ रहा है। यह जून 2019 की तुलना में 91 फीसदी है। बीते मई माह में सरकार को जीएसटी 62,009 करोड़ और अप्रैल में केवल 32,204 करोड़ रुपए का राजस्व ही मिल सका था।
आर्थिक विशेषज्ञों का शुरू से ही मानना रहा है कि अर्थव्यवस्था को बचाने में ग्रामीण भारत और कृषि क्षे​त्र महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। उनका आकलन शत-प्रतिशत सही निकला है। आर्थिक विशेषज्ञों के आकलन का आधार यह है कि जिस तरह से शहरी क्षेत्रों में कोरोना के मामले तेजी से सामने आ रहे थे उसे देखते हुए साफ था कि औद्योगिक क्षेत्रों और सेवा क्षेत्रों की रफ्तार धीमी ही रहेगी। सिर्फ कृषि क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र था, जो अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकता था।
ग्रामीण भारत में कोरोना का प्रभाव काफी कम रहा और वहां रबी की फसल की कटाई भी सामान्य रूप से हुई। रबी की फसल के जो आंकड़े सामने आ रहे थे वे भी उत्साहित करने वाले थे। केन्द्र और राज्य सरकारों ने किसानों को लॉकडाउन की मार से बचाने के लिए राहत योजनाएं बनाईं, इससे ग्रामीण क्षेत्रों को फायदा हुआ।
केन्द्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री किसान सम्मान नििध के तहत मिलने वाली दो हजार रुपए की दो किश्तों को तत्काल किसानों के खाते में डालने, उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनैक्शन प्राप्त लोगों को तीन सिलैंडर मुफ्त में देना, राशन में हर महीने अनाज और चना दाल मुफ्त देने से उन्हें आर्थिक तौर पर परेशानी काफी कम हुई। जून महीने में ग्रामीण क्षेत्रों में आटो इंडस्ट्री के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि इस दौरान ट्रैक्टरों की ​बिक्री में रिकार्ड उछाल आया। सभी ट्रैक्टर निर्माता कंपनियों की बिक्री बढ़ी है। ट्रैक्टरों के अलावा दोपहिया, तिपहिया और चार पहिया वाहनों की बिक्री में भी शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में काफी ज्यादा बढ़ौतरी हुई है।
वैश्विक मंदी के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर और संभले रहने का कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था ही रहा। अभी भी 70 प्रतिशत श्रम ग्रामीण क्षेत्रों में है। मनरेगा ने भी ग्रामीण भारत को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई है। मांग और उत्पादन के लिहाज से अब ज्यादा ध्यान शहरी बाजारों से ग्रामीण बाजारों पर केन्द्रित किया जाना चाहिए।
मवेशी, मछली पालन, दूध, सब्जी, फल, फूड प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्र ज्यादा रोजगार और ज्यादा लाभ देने वाले  हैं। जब तक कोरोना की कारगर दवा नहीं आती तब तक हमें वायरस के साथ जीना है तो अर्थव्यवस्था को सुरक्षित और अधिक रिकार्ड उत्पादन और उपभोग की दृष्टि से नया स्वरूप प्रदान करना होगा। जिसके लिए कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था ही बड़ी ताकत साबि​त होगी।
-आदित्य नारायण चोपड़ा
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