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Ahilyabai dedicated to the values ​​of serving the nation: राष्ट्र सेवा संस्कारों को समर्पित अहिल्याबाई

06:20 AM May 31, 2024 IST | Shivam Kumar Jha
ahilyabai dedicated to the values ​​of serving the nation  राष्ट्र सेवा संस्कारों को समर्पित अहिल्याबाई

Ahilyabai dedicated to the values ​​of serving the nation: भारत ऐसे ही विश्व गुरु नहीं बना था। यहां की महिलाओं ने इतिहास में वह स्थान अर्जित किया है जिससे देवता भी वंचित रहे हैं। लौह महिला महारानी अहिल्याबाई होल्कर का व्यक्तित्व व कृतित्व उन्हें विश्व की श्रेष्ठतम महिलाओं की पंक्ति में अग्रणी बनाता है जिनका भारत के इतिहास और जनमानस पर विशेष प्रभाव रहा है। विश्व के सबसे बड़े महिला संगठन राष्ट्र सेविका समिति कर्तृत्व के आदर्श के रूप में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर का अनुसरण करती है।

बचपन के संस्कार ही बच्चों के भविष्य का निर्माण करते हैं। यही संस्कार जीवन की सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। किसे पता था चौंडी ग्राम जामखेड़ अहमदनगर में एक छोटी सी सौम्य, शांत, तेजवान बालिका मालवा के सूबेदार मल्हारराव को अपनी भक्ति व गायन से इस कदर प्रभावित कर देगी कि वह अपने पुत्र खंडेराव के विवाह के लिए मानकोजी के समक्ष प्रस्ताव रखने से भी नहीं हिचकिचाएंगे।
बालिका के संस्कारों से प्रभावित मल्हारराव आश्वस्त थे कि यह बालिका अपने संस्कारों, कुशल व्यवहार, सेवा भावना से सभी का हृदय जीत लेगी और क्रोधी, हठी, विषय वासनाओं में रत पुत्र खंडेराव को सही दिशा में लाने में अवश्य सफल होगी और हुआ भी यही। बालिका अहिल्याबाई में आदर्श भारतीय नारी के सभी गुण विद्यमान थे। अपने विवेक, नम्रता, सेवा, त्याग और सहनशीलता का ही यह परिणाम था कि खंडेराव में आत्म गौरव व वीरता का भाव उत्पन्न हुआ। खंडेराव के जीवन में आए आमूल चूक परिवर्तनों का कारण अहिल्याबाई बनीं। अहिल्याबाई ने भी शनै: शनै: राजकाज के कार्यों में रुचि लेना प्रारंभ किया और युद्ध क्षेत्र में गोला बारूद, बंदूक, तोप और रसद की व्यवस्था की जिम्मेदारी अब उन्हीं पर थी। इसी बीच 1745 व 1748 में अहिल्याबाई ने क्रमशः मालेराव व मुक्ताबाई को जन्म दिया।

भरतपुर का युद्ध मल्हारराव, खंडेराव और देवी अहिल्याबाई की मानो परीक्षा लेने ही आया था। जाटों और मराठों के बीच घमासान युद्ध हुआ और युद्ध का परिणाम खंडेराव के जीवन से चुकाना पड़ा। मल्हार राव के लिए पुत्र की मृत्यु की वेदना सहन करना असहनीय था वहीं अहिल्याबाई ने सती होने का प्रण लिया कि प्राणों से प्रिय पति अगर जीवित नहीं हैं तो मेरे जीवन का भी कोई अर्थ नहीं है। ससुर मल्हार राव के लाख समझाने के बाद ही अहिल्या ने सती होने का विचार त्यागा और जी जान से प्रजा की सेवा करने का दायित्व निभाया। ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ के मूल मंत्र को अपने जीवन में उतार राजसी सुखों का त्याग कर दुखी, पीड़ित जनों की सेवा को ही उन्होंने अपने जीवन का परम लक्ष्य बना लिया।

कुशल शिक्षक ससुर मल्हार राव के संरक्षण व मार्ग निर्देशन में शिष्या, पुत्रवधू अहिल्याबाई अब राजकाज के कार्यों में कुशल हो रही थी। मल्हार राव अपने जीते जी पुत्रवधू को देश-दुनिया की भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति से परिचित कराना चाहते थे इसी कारण उन्होंने उसे देशाटन के लिए भी भेजा। समाज के बीच में रहकर ही समाज का बेहतर ज्ञान होता है। अब वे स्वयं लगान वसूलती, न्याय करती, आदेश निकालती और जनता के दुःख-दर्द को दूर करने का हर संभव प्रयास करती। मल्हार राव कुशल शासक थे। कई बार युद्धों में व्यस्त होने के कारण राज्य से जब वे बाहर रहते तो पत्रों के माध्यम से अहिल्याबाई क पुत्री मुक्ताबाई के विवाह की कहानी रानी के राजनीतिक कौशल की एक अनोखी दास्तां है। राज्य में चोर, डाकुओं का आतंक इतना अधिक था कि व्यापारी, यात्री और प्रजा भयभीत थे। ऐसे में रानी ने घोषणा की थी कि जो भी व्यक्ति इन डाकुओं का राज्य से सफाया कर देगा उससे वह अपनी पुत्री का विवाह कर देंगी। यशवंत राव फणसे ने रानी की यह शर्त पूरी की और इस तरह मुक्ताबाई का विवाह वीर व बुद्धिमान योद्धा यशवंत फणसे से हुआ। मुक्ताबाई के पुत्र नथ्या से अहिल्याबाई अत्यंत प्रेम करती थी। लंबी बीमारी से नवासे नथ्या की मृत्यु और उसके बाद यशवंत राव फणसे की मृत्यु ने अहिल्याबाई को तोड़कर रख दिया। दुर्भाग्य तो यह रहा कि पति की मृत्यु पर पुत्री मुक्ताबाई ने भी सती होने का निश्चय किया। ये सभी आघातों को सहन करना किसी लौह महिला के लिए भी सहनीय नहीं होगा। धीरे-धीरे सब अपने बिछड़ रहे थे। पहले पति फिर ससुर, पुत्र, नवासा, दामाद और पुत्री। जीवन का रस निचुड़ चुका था। फल-फूल से लदे वृक्ष पर मानो पतझड़ ने बसेरा बना लिया था। तब भी अपनी प्रजा के हित व संरक्षण के लिए रानी उठ खड़ी हुई। अपने साम्राज्य के संरक्षण के लिए जो कुछ भी संभव था वह उन्होंने किया।

अहिल्याबाई होल्कर ने 1757 में होलकर राज्य की बागडोर संभाली। ससुर मल्हारराव से मिले संस्कारों व मार्गदर्शन का यह प्रभाव रहा की रानी अहिल्याबाई में एक कुशल शासक के सभी गुण विद्यमान थे। प्रजा के हित में उठाए कदमों ने उन्हें लोकमाता की उपाधि दी। प्रजा की भलाई, सुरक्षा, सुख सुविधा जुटाना, बाहरी आक्रमण, विद्रोहियों और डाकुओं से राज्य की रक्षा करने के हर संभव प्रयास रानी ने किए। एक ओर जहां राज्य को चोर डाकुओं से सुरक्षित रखा वहीं दूसरी ओर राज्य के शत्रुओं से भी (उदयपुर के राजा जगत सिंह और रामपुरा के सरदार चंद्रावत माधव सिंह, गंगाधर चंद्रचूड़, दादा राघोबा)।

अहिल्याबाई ने महिलाओं की सेना भी तैयार कर उन्हें हथियार चलाना, रण व्यूह का प्रशिक्षण देना भी प्रारंभ किया। रानी ने अपने शत्रु दादा राघोबा को एक पत्र लिखा- "आप मेरा राज्य हड़पने आए हैं। यह आपको शोभा नहीं देता। आप एक नारी के साथ युद्ध मत कीजिए नहीं तो यह कलंक मिट नहीं पाएगा। मैं एक असहाय नारी हूं यह समझकर आप आए हैं तो इस बात का पता युद्ध भूमि में चलेगा। मैं एक स्त्री हूं। युद्ध में हार भी गई तो मुझे कोई याद नहीं रखेगा, आप युद्ध में हार गए तो जग में आपकी हंसी होगी। मैं अपनी महिला सेना के साथ युद्ध भूमि में आपका मुकाबला करूंगी। आपका भला इसी में है जैसे आए हैं वैसे ही चुपचाप वापस चले जाएं।'
प्रसिद्ध इतिहासकार श्री चिंतामणि विनायक वैद्य ने लिखा है- "उनकी धार्मिकता इतनी उदार थी कि धर्म व नीति के हर क्षेत्र में उन्होंने अपना नाम अजर-अमर कर दिया। उनका दान-धर्म इतना महान था कि वैसा दान-धर्म आज तक हिंदुस्तान में किसी ने भी नहीं किया है।' रानी अहिल्याबाई में इतिहास के गौरवशाली वीरों के गुण देखने को मिलते हैं। कोई भी महिला सर्वगुण संपन्न कैसे हो सकती है? इतिहास, वर्तमान और भविष्य में केवल एक ही व्यक्ति में इतने गुणों का समावेश होना संभव ही नहीं है। वर्तमान समय में अहिल्याबाई होल्कर एक जीवंत उदाहरण है। देश की बेटियों को उनकी योग्यता के आधार पर अगर अवसर दिए जाएं तो इस देश की बेटियां लक्ष्मीबाई और अहिल्याबाई होल्कर के पदचिन्हों पर चलकर देश के गौरव का मान बढ़ाने वाली बनेंगी।

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