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Ahoi Ashtami ki Katha: इस कथा के बिना अधूरा है अहोई अष्टमी का व्रत, एक क्लिक में पढ़ें पूरी व्रत कथा

12:19 PM Oct 13, 2025 IST | Kajal Yadav
Ahoi Ashtami ki Katha (Ai Generated Image)

Ahoi Ashtami ki Katha: अहोई अष्टमी का व्रत हिन्दू धर्म में माताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। शाम के समय अहोई माता की पूजा की जाती है और तारे दिखने के बाद जल ग्रहण किया जाता है।

लेकिन इस व्रत को सफल और पूर्ण बनाने के लिए कुछ नियमों और परंपराओं का पालन करना बहुत जरूरी माना गया है। आइए जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें, नियम और क्या है इस दिन का धार्मिक महत्व।

Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी व्रत का महत्व

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Ahoi Ashtami ki Katha (Ai Generated Image)

अहोई अष्टमी व्रत को मां की ममता, त्याग और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। अहोई माता का व्रत माताओं द्वारा संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सफलता के लिए किया जाता है। यह व्रत परिवार में खुशहाली और संपन्नता का स्रोत भी माना जाता है। इतना ही नहीं, जो महिलाएं संतानहीन हैं वे संतान प्राप्ति की कामना से भी इस व्रत कर सकती हैं। चूंकि यह व्रत निर्जला (बिना पानी के) रखा जाता है, इसलिए इसे कठिन माना जाता है। हालांकि, विधिपूर्वक और सही समय पर पूजा करने से माता अहोई का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। इस उपवास के दौरान माताएँ पूरे दिन केवल अपनी संतान और उनके उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करती हैं।

Ahoi Ashtami Vrat Katha in Hindi: अहोई अष्टमी व्रत कथा

Ahoi Ashtami ki Katha (Ai Generated Image)

बहुत समय पहले की बात है, जब एक नगर में एक साहूकार रहता था। उस साहूकार के सात बेटे और सात बहुएं थी, उसकी एक बेटी भी थी। दिवाली के समय उसकी बेटी अपने मायके आई थी, क्योंकि दिवाली से पहले दिये बनाने थे। दिया बनाने के लिए साहूकार की सातों बहुएं घर से बाहर मिट्टी लाने के लिए गई थी। उनके साथ साहूकार की बेटी भी गयी। जिस जगह वो लोग मिट्टी खोदने के लिए गई थीं वहां पर सेह की मांद थी। जब ननद मिट्टी खोद रही थी, तो अचानक उसके हाथों एक बच्चा मर गया।

इस गलती के बाद स्याऊ को गुस्सा आया और उसने कहा कि तूने मेरा बच्चा मारा अब मैं तेरी कोख बांधूंगी। यह सुनकर ननद अपनी सातों भाभियों से विनती करने लगी कि मेरे बदले आप लोगों में से कोई एक अपनी कोख बंधवा ले।

Ahoi Ashtami ki Katha (Ai Generated Image)

लेकिन उसकी सभी भाभियों ने ऐसा करने से मना कर दिया। तभी उसकी छोटी भाभी के मन में ख्याल आया कि अगर मैंने ऐसा नहीं किया, तो सासु मां नाराज़ हो जाएंगी। सोच-विचार के बाद छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली। जिसके बाद उसे बच्चा होने के सात दिन बाद वो मर जाता था। साहूकार की पत्नी इन सब से परेशान होकर एक दिन पंडित को बुलाती है और पूछती है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। मेरी इस बहु की संतान 7 दिन बाद क्यों मर जाती है। पंडित ने बहु को काली सुरही गाय की पूजा करने को कहा।

जिसके बाद साहूकार की छोटी बहु रोज गाय माता के उठने से पहले ही वहां की सफाई कर देती थी। एक दिन जब गौमाता ने देखा कि साहूकार की छोटी बहुत यहां की साफ़-सफाई करती है, तो काली सुरही गाय बहु की पूजा से प्रसन्न हो जाती है और उसे स्याहु के पास पंहुचा देती है। स्याहु उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू को संतान की प्राप्ति होती है और उसका घर खुशियों से भर जाता है।

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