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एयर इंडिया को सुप्रबंधित करने की जरूरत

भारत की आजादी के साथ एक नए महाराजा ने आसमान पर विजय पाई। बॉबी कुका द्वारा…

10:44 AM Mar 19, 2025 IST | Editorial

भारत की आजादी के साथ एक नए महाराजा ने आसमान पर विजय पाई। बॉबी कुका द्वारा…

भारत की आजादी के साथ एक नए महाराजा ने आसमान पर विजय पाई। बॉबी कुका द्वारा डिजाइन किया गया एयर इंडिया का शुभंकर यानी उमेठी गई मूंछें और सजी हुई पगड़ी आसमान में भारत के स्वागत की पहचान बन गई, लेकिन बाद के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के भाई-भतीजावाद और असहमति के माहौल में एयर इंडिया की छवि को धक्का लगा और इसका कुल घाटा बढ़ते-बढ़ते 70,000 करोड़ रुपये हो गया, ऐसे में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वह किया, जिसका वादा पहले के प्रधानमंत्रियों ने किया था। उन्होंने अधिक वजनी महाराजा को उसकी अकुशलता और घाटे से आजाद कर दिया।

लगभग 17,000 कर्मचारियों वाली एयर इंडिया को भारतीय उद्योग जगत के सबसे पुराने महाराजा टाटा ने खरीद लिया। सबको उम्मीद थी कि आसमान का महाराजा नई चमक और नई भावनाओं से लैस होगा, पर दुर्भाग्य से हुआ इसका उल्टा, एयर इंडिया का सम्राट और वजनी हो गया। शायद ही कोई दिन होता होगा, जब कुप्रबंधन के कारण उसे पैसेंजरों की नाराजगी का सामना न करना पड़ता हो। उड़ान के दौरान अपर्याप्त और बेहद खराब सेवाओं से लेकर तकनीकी खामियों तक, उड़ान में देरी से कर्मचारियों के उग्र स्वभाव तक-देश की सबसे अच्छी एयरलाइन अनेक बीमारियों से ग्रस्त है। एयर इंडिया के अधिग्रहण के एक साल बाद शेयरधारकों को भेजे गये संदेश में कंपनी के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने लिखा था, “एयर इंडिया की टीम इस ‘राष्ट्रीय संस्था’ को ‘राष्ट्रीय प्रेरणा’ के रूप में रूपांतरित करने के लिए कठिन परिश्रम कर रही है। बोर्ड की तरफ से मैं उनके और अपने साथी निदेशकों के प्रयासों के बारे में आपको बता रहा हूं। इस बीच बहुत कुछ हासिल किया गया है, पर बहुत कुछ हासिल करना अभी शेष है। नई एयर इंडिया के प्रति उम्मीदें बहुत अधिक हैं, तो उसे हासिल करने की प्रतिबद्धता, उत्साह और फोकस उससे कहीं ज्यादा है।” पर अधिग्रहण के तीन साल बाद भी एयर इंडिया प्रेरणा के बजाय अलग-थलग पड़े रहने का ही उदाहरण है।

एयर इंडिया के नये मालिक के बड़े-बड़े अधिकारी जब इसकी गड़बड़ियां दूर करने में लगे हैं, तब कई नई और बड़ी गड़बड़ियां सामने आ रही हैं। इस महीने की शुरूआत में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान यह देखकर स्तब्ध रह गये कि विमान में उन्हें मिली सीट टूटी है। चौहान की छवि भड़क जाने वाले मंत्री की नहीं है। इसके बावजूद वह इतने तिलमिला गये कि एयर इंडिया को टाटा को सौंपने के औचित्य पर ही उन्होंने सवाल उठा दिया। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “मैं मानता था कि टाटा द्वारा अधिग्रहण के बाद एयर इंडिया की सेवा सुधरेगी, पर मेरी सोच गलत साबित हुई। यात्रा के दौरान हुई असुविधा की मैं फिक्र नहीं करता, पर पैसेंजरों को टूटी सीट देकर उनसे पूरा किराया वसूल करना मेरी समझ से अनैतिक है। क्या यह पैसेंजरों के साथ धोखा नहीं है?” यह कहते हुए चौहान दरअसल एयर इंडिया के 4.5 करोड़ पैसेंजरों की पीड़ा ही बता रहे थे।

देश की इस अग्रणी एयरलाइन और उसके शुभंकर को गर्व की निशानी माना जाता था, परंतु टाटा द्वारा अधिग्रहण के बाद संचालन और सेवाओं में आयी गड़बड़ियों ने इसकी छवि धूमिल कर दी है। इसके बेड़े में आई कठिनाइयों के कारण इसकी उड़ानों में बार-बार होते विलंब तथा उड़ानों के रद्द होने समेत अनेक चुनौतियों ने इसके विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने जैसी इसकी महत्वाकांक्षी योजना पर पानी फेर दिया।

एयर इंडिया की सेवाओं में कमी ने पैसेंजरों को लगातार क्षुब्ध किया है। केबिनों की पुरानी साज-सज्जा, कमतर सुविधाएं तथा खराब सेवा के कारण टाटा द्वारा अधिगृहीत एक ऐसी एयरलाइन की छवि हमारे सामने है, जो आधुनिक बनने के लिए संघर्ष कर रही है। पांच मार्च को शिकागो से दिल्ली आ रही एआई, 126 को अचानक ओ’ हेयर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतारना पड़ा, क्योंकि उसके शौचालय काम नहीं कर रहे थे, ऐसा ही बुरा अनुभव 2024 के अंत में तब हुआ था, जब अमेरिका की लंबी उड़ान के दौरान विरासती पहचान वाले बोइंग 777 के मुसाफिरों ने खराब मनोरंजन सिस्टम और खराब सीटों की शिकायत की थी।

इससे एयर इंडिया के इस दावे की हवा निकल गई कि 2025 के मध्य तक वह अपने विमानों को नये सीट कवर, कुशन और कालीनों से सुसज्जित कर देगी। इससे यह भी पता चलता है कि सरकारी नियंत्रण के दौरान दशकों तक एयर इंडिया में निवेश न होने की भरपाई टाटा के लिए जल्दी करना संभव नहीं।

एयर इंडिया के प्रशंसकों का मानना है कि इन इक्का-दुक्का मामलों के जरिये उस एयरलाइन के दर्द को महसूस नहीं किया जा सकता, जो रूपांतरण के दौर से गुजर रही है। एयर इंडिया की परेशानी की मुख्य वजह उसके विमानों की कमी है। उसके बेड़े में लगभग 140 विमान हैं, जो कि उसके प्रतिद्वंद्वी इंडिगो, जिसके बेड़े में 425 से अधिक विमान हैं, तथा एमिरैट्स जैसे वैश्विक खिलाड़ियों की तुलना में बहुत कम हैं। यही नहीं, एयर इंडिया की विरासत मानी जाने वाली बोइंग 777 और पुराने विमान ए320 अब कालातीत हो चुके हैं। बेशक इस दौरान एयर इंडिया की कुछ उपलब्धियां भी रही हैं। टाटा के नेतृत्व में इसके संचालन में सुधार हुआ है : इसके राजस्व में 25 फीसदी वृद्धि हुई है, घाटे में 50 प्रतिशत कमी आई है और बड़ी संख्या में नए विमानों का ऑर्डर दिया जाना इसकी वित्तीय सेहत में सुधार के बारे में बताता है। घरेलू बाजार में इसकी हिस्सेदारी 2022 के 8.7 फीसदी से बढ़कर 2023 में 9.7 हो गई, परंतु टाटा समूह अब भी सार्वजनिक कंपनी की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाया है।

एयर इंडिया के पुराने कर्मचारियों द्वारा आंतरिक रूप से नुकसान पहुंचाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। एक बीमार सरकारी कंपनी को पटरी पर लाने के लिए टाटा ने भले ही एक प्रतिष्ठित विदेशी को जिम्मेदारी सौंपी हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि कंपनी के पास उस ढांचे का अभाव है, जो इसके प्रबंधन को उसकी सही तस्वीर दिखा सके।

एयर इंडिया दूसरे अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की तुलना में लाभ की स्थिति में है, चूंकि इसने इंटरनेशनल स्लॉट्स के अपने हिस्से का पूरा इस्तेमाल नहीं किया है, ऐसे में, सुप्रबंधित एयर इंडिया भारतीय मुसाफिरों के एक बड़े हिस्से की पसंदीदा एयरलाइन बन सकती है। अगर हवाई उड्डयन के क्षेत्र में इसे वैश्विक पहचान बनानी है, तो अपने घुटनों पर चल रहे 79 साल के इस बच्चे में टाटा की संस्कृति कूट-कूटकर भरनी होगी।

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