विमान यात्रियों की जिन्दगी से खिलवाड़
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विमान का पायलट होना एक सम्मानजनक पेशा है। अभिभावक अपने बच्चों को पायलट बनाने के लिए लाखों रुपए खर्च कर डालते हैं, फिर बेहतर नौकरी की तलाश की जाती है लेकिन चंद पायलट शराब पीकर उड़ान भरते हैं। ऐसा करके वह न केवल अपनी बल्कि यात्रियों की जिन्दगी से खिलवाड़ करते हैं। सवाल पेशे के नियमों और व्यक्तिगत आचरण से जुड़ा है। पायलट बनना आसान नहीं होता, इसमें आपको बुद्धि, कौशल और साहस का परिचय देना पड़ता है। एक बार हवा में उड़ान भरने के बाद यह निश्चित नहीं होता कि आप नीचे आएंगे या नहीं। बहुत सी विमान दुर्घटनाओं के कारणों का पता ही नहीं चलता, वर्षों जांच चलती रहती है।
डीजीसीए ने एयर इंडिया के परिचालन निदेशक कैप्टन ए.के. कठपालिया को ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट में पाजिटिव पाए जाने पर उनका लाइसेंस निलम्बित कर दिया है। डीजीसीए की कार्रवाई के अनुसार उनका लाइसेंस तीन वर्ष के लिए निलम्बित किया गया है। एयर इंडिया ने रविवार को उड़ान से पहले एल्कोहल टेस्ट में कथित तौर पर फेल रहने पर अपने निदेशक कैप्टन ए.के. कठपालिया को विमान उड़ाने से रोक दिया था। इस सारे मामले में एयर इंडिया के कार्मिक विभाग की पोल खुल गई है। इससे पहले भी 2017 में डीजीसीए द्वारा उड़ान से पूर्व ब्रेथ एनालाइजर परीक्षण न कराने पर कठपालिया का उड़ान लाइसेंस तीन महीने के लिए निलम्बित कर दिया गया था। बाद में उन्हें कार्यकारी निदेशक, संचालन पद से हटा दिया गया था। हैरानी इस बात की है कि उनकाे फिर एयर इंडिया लिमिटेड में निदेशक (संचालन) पद पर पांच साल की अवधि के लिए नियुक्ति दी गई। डीजीसीए ने ऐसा किस आधार पर फैसला लिया कि कठपालिया को पदोन्नत कर नियुक्ति दी गई। एयर इंडिया को भी इसका जवाब देना होगा कि जिस व्यक्ति का ट्रैक रिकार्ड खराब था, उसे पुनः नियुक्ति कैसे दी गई। इस मामले में जांच की जरूरत है, ताकि जिन लोगों ने उसे पदोन्नत किया, उन्हें भी जांच की तपिश झेलनी पड़े। कभी उड़ान के दौरान पायलट सो जाते हैं, कभी काकपिट के भीतर महिला पायलट से छेड़छाड़ करने लगते हैं, बहुत सी ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। यह सब घटनाएं अस्वीकार्य हैं।
विमान नियमावली की नियम संख्या 24 उड़ान के शुरू होने से 12 घंटे पहले चालक दल के सदस्यों को किसी भी तरह के शराब युक्त पेय पदार्थों के सेवन से रोकती है। साथ ही नियम के अनुसार उड़ान शुरू होने से पहले और बाद में चालक दल के सदस्यों को ब्रीथ टेस्ट से गुजरना अनिवार्य होता है। पहली बार इस तरह के उल्लंघन पर नागर विमानन महानिदेशालय के नियमों के मुताबिक तीन महीने के लिए उड़ान लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है और दूसरी बार नियम उल्लंघन करने पर लाइसेंस तीन साल के लिए निलम्बित किया जाता है और तीसरी बार ऐसा होने पर स्थाई रूप से लाइसेंस निलम्बित कर दिया जाता है। यद्यपि डीजीसीए ने कठपालिया के खिलाफ कार्रवाई नियमों के तहत ही की है, सवाल यह है कि लोगों की जिन्दिगयों से खिलवाड़ करने वालों को दंडित क्यों नहीं किया जाता।
जब सड़क दुर्घटनाओं के जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कार्यवाही के लिए मोटर वाहन अधिनियम है तो फिर शराब पीकर उड़ान भरने वाले पायलटों के लिए कोई कानून लागू क्यों नहीं किया जाता। विमान में यात्रा करने वाले इस विश्वास के साथ यात्रा करते हैं कि उनकी यात्रा सुरक्षित होगी। अगर विमान यात्रियों का विश्वास ही एयर इंडिया पर से उठ गया तो फिर इस कंपनी के विमानों में उड़ान कौन भरेगा। नागरिक विमानन मंत्रालय को पुख्ता जांच आैर सतर्कता के लिए नए सिरे से व्यवस्था करनी चाहिए। सुरक्षा नियमों का पालन सख्ती से होना चाहिए। इसके लिए कड़े नियम लागू किए जाने चाहिएं। उड्डयन विशेषज्ञ शराब को पायलटों के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं क्योंकि इसे पीने से पायलट सुस्त हो जाता है और किसी आकस्मिक स्थिति में उसकी प्रतिक्रिया करने की क्षमता घट जाती है। ऊंचाई पर शराब सर्वािधक असर दिखाती है।
हाल ही में नागरिक विमानन मंत्रालय ने बताया था कि 2015-2017 के दौरान निजी एयर लाइनों के 132 पायलट ड्यूटी के दौरान शराब पिये हुए पकड़े गए। सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने के तीन-चौथाई मामले तो निजी एयरलाइनों के हैं। 7200 के लगभग पायलटों के पास लाइसेंस हैं लेिकन अनुशासन तोड़ने वालों पर कड़ी नज़र रखी जानी चाहिए। एयर इंडिया की माली हालत पहले ही खराब है। जिस कम्पनी को कभी महाराजा कंपनी कहा जाता था, वह महाराजा ही कंगाल हो चुका है। आखिर इस कंगाली का कारण कुप्रबंधन ही तो है। एयर इंडिया जनता द्वारा चुकाए गए टैक्स से चलती है, सरकार कंपनी को पुनर्जिवित करने के लिए कई बार धन दे चुकी है परन्तु इसकी स्थिति नहीं सुधरी। मानवीय भूलों से हुई विमान दुर्घटनाएं हादसा नहीं बल्कि हत्या होती है। महाराजा की साख को पुनः बहाल करने के लिए ऐसे कदम उठाए जाएं ताकि यात्री अपनी जान की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो सकें। विमान यात्री भारी-भरकम राशि चुकाते हैं। अगर उनकी जिन्दगी बार-बार जोखिम में डाली जाती है तो फिर कंपनी चलाने का ही कोई फायदा नहीं।