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Chhat puja:जानिए चार दिवसीय छठ पूजा के बारे में खास बातें

छठ का महापर्व 31 अक्टूबर यानी आज से शुरू हो गया है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से प्रारम्भ होकर सप्तमी तक चलने वाली चार दिवसीय छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार,झारखण्ड,पूर्वी उत्तरप्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

07:32 AM Oct 31, 2019 IST | Desk Team

छठ का महापर्व 31 अक्टूबर यानी आज से शुरू हो गया है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से प्रारम्भ होकर सप्तमी तक चलने वाली चार दिवसीय छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार,झारखण्ड,पूर्वी उत्तरप्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

छठ का महापर्व 31 अक्टूबर यानी आज से शुरू हो गया है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से प्रारम्भ होकर सप्तमी तक चलने वाली चार दिवसीय छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार,झारखण्ड,पूर्वी उत्तरप्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। छठ का त्योहार पष्ठी का अपभ्रंश है। 4 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार का पहला दिन नहाय खाय का होता है। 
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अब अगले चार दिनों तक सूर्य देव और छठ मइया की उपासना करी जाएगी। ऐसा कहा जाता है कि छठ पूजा करने से छठी माइया प्रसन्न होकर सभी इच्छाएं पूर्ण कर देती हैं। छठ के पर्व को डाला छठ,छठी माई,छठ,सूर्य पष्ठी  पूजा आदि कई सारे नामों से जाना जाता है। तो आइए जानते हैं छठ पर्व से जुड़ी कुछ और भी महत्वपूर्ण जानकारियां…
छठ महापर्व की तारीख…
31 अक्टूबर – नहाय-खाय 1 नवंबर – खरना 
2 नवंबर – सायंकालीन अर्घ्य
3 नवंबर – प्रात कालीन अर्घ्य 
छठ पूजा का पहला दिन
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से छठ पूजा की शुरूआत नहाय खाय के साथ होती है। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान आदि कर नए कपड़े पहनते हैं साथ ही शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। घर में व्रती के भोजन करने के बाद ही बाकी सभी लोग भोजन खाते हैं।
दूसरा दिन
कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन छठ का व्रत रखा जाता है। इस दिन शाम के वक्त व्रती एक बार भोजन ग्रहण करती है। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं। शाम के समय गन्ने के रस में बने हुये चावल की खीर बनाकर खायी जाती है। चावल का पिठ्ठा और घी लगी हुई रोटी ग्रहण करने के साथ प्रसाद रूप में बांट दिया जाता है। 
तीसरा दिन
कार्तिक शुक्ल पष्ठी के पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इसके साथ ही छठ पूजा का प्रसाद भी तैयार किया जाता है। इस दिन व्रती शाम के वक्त किसी नदी या तालाब में जाकर पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य देते हैं। 
चौथा दिन
कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह भी पानी में खड़े होकर उगते हुए सूय को अघ्र्य दिया जाता है। अघ्र्य देने के बाद व्रती सात बार परिक्रमा करते है। इसके बाद अपास में प्रसाद बांटकर व्रत खोला जाता है। 
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