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विश्व की सभी भाषाओं का हो सम्मान

मातृभाषा की मदद से न केवल क्षेत्रीय भाषाओं के बारे में जानने-समझने में सहायता मिलती..

11:30 AM Feb 20, 2025 IST | Editorial

मातृभाषा की मदद से न केवल क्षेत्रीय भाषाओं के बारे में जानने-समझने में सहायता मिलती..

मातृभाषा की मदद से न केवल क्षेत्रीय भाषाओं के बारे में जानने-समझने में सहायता मिलती है बल्कि एक-दूसरे से बातचीत करना भी आसान हो जाता है। यही वजह है कि भाषा की विविधता को विस्तार से जानने के लिए कई देशों ने इस विषय पर मिलकर काम करने का निर्णय लिया है, जिसके तहत एक क्षेत्र का व्यक्ति किसी दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति की मातृभाषा को न केवल जान पाएगा बल्कि उसे सीख भी सकेगा। मानव जीवन में भाषा महत्व को देखते हुए विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति व बौद्धिक विरासत की रक्षा करने, भाषायी तथा सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषावाद का प्रचार करने और दुनियाभर की विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा उनके संरक्षण के लिए यूनेस्को द्वारा हर साल 21 फरवरी को वैश्विक स्तर पर ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस भाषाओं का जश्न मनाने का समय है, साथ ही यह भाषाओं की विविधता और बहुभाषिता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने का भी समय है।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का एक महत्वपूर्ण कारण बहुभाषिता को बढ़ावा देना भी है। बहुभाषिता एक से अधिक भाषा बोलने की क्षमता है, जो कई मायनों में फायदेमंद हो सकती है। यह लोगों को विभिन्न संस्कृतियों को समझने में मदद कर सकती है और उन्हें बेहतर संचारक भी बना सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस प्रतिवर्ष एक महत्वपूर्ण थीम के साथ मनाया जाता है और इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस के लिए इस वर्ष की थीम है ‘भाषाएं मायने रखती हैं : अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का रजत जयंती समारोह’। 2024 में यह दिवस ‘बहुभाषी शिक्षा अंतर पीढ़ीगत शिक्षा का एक स्तंभ है’ विषय के साथ मनाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2023 की थीम ‘बहुभाषी शिक्षा : शिक्षा को बदलने की आवश्यकता’ थी। इससे पहले 2022 की थीम ‘बहुभाषी शिक्षण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग : चुनौतियाँ और अवसर’ थी जबकि 2021 के मातृभाषा दिवस की थीम थी ‘शिक्षा और समाज में समावेशन के लिए बहुभाषावाद को प्रोत्साहन’। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया गया था। यूनेस्को द्वारा मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवम्बर 1999 को की गई थी और पहली बार वर्ष 2000 में इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था। सही मायनों में इस दिवस को मनाए जाने की शुरूआत अपनी मातृभाषा के लिए बांग्ला भाषा बोलने वालों के प्यार के कारण ही हुई थी।

21 फरवरी को ही यह दिवस मनाए जाने का सुझाव कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा दिया गया था, जिन्होंने बांग्ला भाषा आन्दोलन के दौरान ढाका में 1952 में हुई नृशंस हत्याओं को स्मरण करने के लिए यह दिन प्रस्तावित किया था। भाषा के इस बड़े आन्दोलन में शहीद हुए युवाओं की स्मृति में ही यूनेस्को द्वारा वर्ष 1999 में निर्णय लिया गया कि प्रतिवर्ष 21 फरवरी को दुनियाभर में मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर भाषा तथा संस्कृति से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और शिक्षा तथा साहित्य से जुड़े लोग विभिन्न भाषाओं को लेकर चर्चा करने के साथ-साथ किसी भी भाषा को सरल व सुगम बनाने के लिए परामर्श भी देते हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में बोली जाने वाली करीब सात हजार भाषाओं में से नब्बे फीसद भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं। चिंता की बात यह है कि दुनियाभर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में से अब 40 फीसद से अधिक भाषाएं लुप्तप्राय हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक केवल कुछ सौ भाषाओं को ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक क्षेत्र में जगह मिली है और वैश्विक आबादी के करीब चालीस फीसदी लोगों ने ऐसी भाषा में शिक्षा प्राप्त नहीं की, जिसे वे बोलते अथवा समझते हैं। डिजिटल दुनिया में तो वैश्विक स्तर पर सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग किया जाता है। वैश्वीकरण के इस दौर में बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृ भाषाओं के लुप्त होने के पीछे एक प्रमुख कारण माना जाता है।

लुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिए भारत में ‘लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण’ योजना भी चलाई जा रही है। यूजीसी देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने तथा ‘लुप्तप्राय भाषाओं के लिए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में केन्द्र की स्थापना’ योजना के तहत कई केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को सहयोग करता है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृ भाषाओं के विकास पर काफी ध्यान दिया गया है, जिसमें सुझाव दिया गया है कि जहां तक संभव हो, कम से कम पांचवीं कक्षा तक तो शिक्षा का माध्यम मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा ही होना चाहिए। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार भी शिक्षा का माध्यम, जहां तक व्यावहारिक हो, बच्चे की मातृ भाषा ही होनी चाहिए।

दरअसल प्राथमिक स्तर पर मातृ भाषा में शिक्षा दिए जाने से यह छात्रों को उनकी पसंद के विषय तथा भाषा को सशक्त बनाने में मददगार साबित होगा और यह भारत में बहुभाषी समाज के निर्माण, नई भाषाओं को सीखने की क्षमता इत्यादि में भी मदद करेगा। प्राथमिक स्तर पर मातृ भाषा में शिक्षा की सुविधा के लिए संविधान के अनुच्छेद 350ए में स्पष्ट है कि देश के प्रत्येक राज्य और स्थानीय प्राधिकारी का प्रयास होगा कि वह भाषायी अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक चरण में मातृ भाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करें।

बहरहाल, हालांकि आज भारत सहित कई बड़े देशों में भाषा को सरल एवं सुगम बनाने के लिए कई प्रकार की योजनाएं तैयार की जा रही हैं और छात्रों को विभिन्न भाषाओं की जानकारी मिल सके, इस उद्देश्य से कई विश्वविद्यालयों में भाषा को लेकर नए कोर्स भी तैयार किए जा रहे हैं लेकिन भाषाओं के संरक्षण के लिए गंभीर वैश्विक प्रयासों की सख्त दरकार है।

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