बिछुड़े सभी बारी-बारी
समझ ही नहीं आता, कभी-कभी कलम भी साथ नहीं देती जब सोचती हूं…
समझ ही नहीं आता, कभी-कभी कलम भी साथ नहीं देती जब सोचती हूं कि कितने अच्छे लोग जिनका अश्विनी जी और हमारे परिवार से गहरा संबंध था। जो देश के लिए तो महत्वपूर्ण थे, हमारे लिए भी बहुत महत्वपूर्ण थे। जिनके साथ बड़े भावुकतापूर्ण रिश्ते थे।
अश्विनी जी को गए 5 वर्ष होने वाले हैं, जिनके साथ-साथ कई ऐसे लोग, नेता चले गए जो बहुत अपने थे। सुषमा जी, शीला दीक्षित जी, अरुण जेतली जी, अटल बिहारी वाजपेयी जी और अब मनमोहन सिंह जी तथा चौटाला जी जो राजनीति के टॉप के राजनेता थे। सभी को देखा जाए तो अश्विनी जी से सबका बहुत स्नेह था, फिर भी कलम निष्पक्ष चलती थी और यह लोग कभी बुरा नहीं मानते थे। हमेशा अश्विनी जी को प्यार आैर स्नेह देते थे। सही मायने में सभी कुशल राजनीतिक नेता थे। सच पूछो तो हमारी मातृभूमि ने ऐसे महान नेताओं को जन्म दिया जिन्होंने न केवल अपने विचारों और कार्यों से भारत को गौरवान्वित किया, बल्कि अपनी सादगी, समर्पण और कर्मठता से हर भारतीय के दिल में अमिट छाप छोड़ी
डा. मनमोहन सिंह जी एक कुशल अर्थशास्त्री, नीतिशास्त्री और सादगी के प्रतीक ने भारत की आर्थिक नीति को एक नई दिशा दी, उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक उदारीकरण आैर प्रगति का एक स्वर्णिम युग देखा। उनकी सोच, शालीनता और दूरदर्शिता ने उन्हें हर वर्ग के लिए आदरणीय बनाया। उनका योगदान केवल नीतियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनकी ईमानदारी और सादगी ने उन्हें देश का सच्चा सेवक बनाया। उन्होंने हमें सिखाया कि सेवा, सादगी और समर्पण ही सच्चे नेता की पहचान है। उनका जीवन आैर कार्य हमेशा हमें प्रेरित करेंगे। भले ही वे हमारे बीच शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हैं लेकिन उनकी विरासत और विचार सदैव जीवित रहेंगे।
मुझे आज भी याद है जब 2004 में अिभषेक मनु सिंघवी द्वारा डिनर दिया गया, लोकसभा चुनाव के नतीजे एक दिन बाद आए थे, ऐसे में अश्विनी जी और मेरी मनमोहन सिंह जी और उनकी पत्नी से मुलाकात हुई। अश्विनी जी की हमेशा की आदत थी उनसे स्नेह भी करते थे और मजाक भी करते थे। अचानक उस समय अश्विनी जी ने कहा, ‘‘अरे सरदार जी आप यहां क्या कर रहे हो, आपका इंतजार प्रधानमंत्री की कुर्सी कर रही है। श्रीमती मनमोहन सिंह जी ने मुझे घूर कर देखा और स. मनमोहन सिंह जी बड़ी धीमी मधुर आवाज में बोेले, ‘‘देखो किरण जी, अश्विनी फिर मेरे साथ मजाक कर रहा है, इसे रोको।’’ मैंने अश्विनी जी की तरफ देखा। अश्विनी जी ने कहा, मैं मजाक नहीं कर रहा, यह प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। मैंने तब उनको कहा था कि क्यों एक शरीफ व्यक्ति को छेड़ रहे हो। कुरदत के खेल देखो वो 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे और अश्विनी जी के साथ उनका खट्टा-मिठ्टा रिश्ता चलता रहा।
इसी तरह अश्विनी जी का चौधरी देवी लाल जी से दादा-पोते वाला प्यार था परन्तु ओमप्रकाश चौटाला जी के साथ खट्टा-मिट्ठा रिश्ता था, क्योंकि चौटाला परिवार से बहुत लगाव था। ओम प्रकाश चौटाला जी से स्नेह था परन्तु उनकी नीतियों आैर कार्यशैली के विरुद्ध लिखने को कभी परहेज नहीं करते थे। वो एक शुद्ध राजनीतिक नेता थे। जब भी मुझे मिलते मैं उनके पांव को हाथ लगाती, क्योंकि हमारे परिवार के संस्कार थे आैर वह हमेशा मुझसे अश्विनी जी की शिकायत लगाते थे कि मैं तो होम मनिस्टर को ही कह सकता हूं, अश्विनी तो मेरी सुनता ही नहीं। ऐसे ही वाजपेयी जी का जब हम सब 100वां जन्मदिवस मना रहे हैं तो अश्विनी जी आैर उनका प्यार भी छुपा नहीं रह सकता। अश्विनी जी उन्हें कभी अटल जी, कभी बाप जी कहते थे। वह भी एक ऐसे राजनीतिक नेता थे कि अश्विनी जी की कलम की बहुत तारीफ करते थे। एक बार अश्विनी जी ने उनके बारे प्रशंसा में आर्टिकल लिखा तो उन्होंने फोन करके कहा, आज मैं बहुत खुश हूं, तुमने मुझे पर्वत पर चढ़ा दिया, पर तेरा भरोसा नहीं कब तू कुछ ऐसा लिख देगा कि मुझे एकदम पर्वत से गिरा देगा।
ऐसे ही सन् 2019 हमारे दोनों के लिए कयामत लेकर आया। पहले बैस्ट दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित जो मुझे जादू की झप्पी देती थी, चल बसी। फिर अश्विनी जी को राखी बांधने वाली सुषमा जी जिनके साथ मैंने 28 साल करवा चौथ मनाया। फिर मेरे प्यारे भाई अरुण जेतली जी, जिनका आज हम सब जन्मदिवस मना रहे हैं। फिर 2020, 18 जनवरी को अश्विनी जी….। अब तो कलम जवाब दे रही है आगे नहीं लिख पाऊंगी….।