लहूलुहान होता अमेरिका
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लाडले चार्ली किर्क की सनसनीखेज हत्या से पूरा देश सन्न है। इस घटना ने अमेरिका में राजनीतिक हिंसा के खतरे को एक बार फिर उजागर कर दिया। चार्ली किर्क ने युवा रिपब्लिकन मतदाताओं को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई थी और वे इजराइल के कट्टर समर्थक भी थे। चार्ली किर्क ट्रम्प के करीबी सर्कल में प्रभावशाली थे और वे ट्रम्प के मेक अमेरिका ग्रेट अगेन अभियान का प्रमुख चेहरा बन चुके थे। चार्ली किर्क यूटा वैली यूनिवर्सिटी में मास शूटिंग्स पर सवालों के जवाब दे रहे थे तभी अचानक उनकी गर्दन में गोली लगी और उनकी तुरन्त मौत हो गई। यह भी एक संयोग है िक उनकी हत्या 9/11 हमले की बरसी के दिन की गई। चार्ली किर्क ने कई विवादास्पद बयान दिए। 2 सितम्बर को उन्होंने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका को भारत के लोगों के लिए और वीजा देने की जरूरत नहीं। अमेरिका पूरा भर चुका है। अब अपने लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए। चार्ली किर्क को ठीक उसी तरह से गोली मारी गई जैसे डोनाल्ड ट्रम्प को चुनाव प्रचार के दौरान गोली मारी गई थी लेकिन वे बाल-बाल बच गए थे।
पिछले एक साल के भीतर ही अमेरिका 5 बार ऐसी हाई प्रोफाइल हत्याओं या हत्या के प्रयासों का गवाह बन चुका है। इस सूची में स्वयं ट्रम्प, मिनेसोटा के पूर्व हाऊस स्पीकर मेलिसा हाॅर्टमैन और उनके पति और दक्षिणपंथी निक का नाम शामिल है। अमेरिका में राजनीतिक हिंसा की घटनाओं से इस बात पर बहस छिड़ गई है कि यदि अति विशिष्ट लोग ही सुरक्षित नहीं तो आम लोग कैसे सुरक्षित हो सकते हैं। इसी बीच अमेरिका के टेक्सास राज्य के डलास शहर में स्थित एक मोटल में भारतीय मूल के नागरिक कर्नाटक के चन्द्रा नागमल्लैया का उसी मोटल के कर्मचारी ने सिर धड़ से अलग कर दिया। हत्या के समय नागमल्लैया की पत्नी और बेटे मौजूद थे। वाशिंग मशीन के इस्तेमाल को लेकर हुए झगड़े में हत्यारे ने नागमल्लैया का सिर काटकर उसे पार्किंग तक लात मारी और सिर को कूड़ेदान में डाल दिया। हत्यारा क्यूबा का नागरिक बताया जाता है। एक सप्ताह पहले हरियाणा के जींद के 26 वर्षीय युवक कपिल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसका कसूर केवल इतना था कि उसने एक अमेरिकी को सड़क के किनारे पेशाब करने से रोका था। इससे गुस्साए अमेरिकी ने पिस्टल िनकाल कर उस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं।
अब सवाल यह है कि क्या अमेरिका असिहष्णु हो चुका है आैर आत्मघाती बंदूक संस्कृति लोगों को लहूलुहान कर रही है। अमेरिका में बंदूक संस्कृति देश के दूसरे संशोधन के तहत नागरिकों को हथियार रखने के अधिकार और ऐतिहासिक तथा सामाजिक कारणों से जुड़ी है, जहां लोग सुरक्षा, खेल आैर आत्मरक्षा के लिए बंदूकों का उपयोग करते हैं। अमेरिका में बंदूक संस्कृति ब्रिटिश राज के समय से ही चल रही है। जब लोगों को खुद अपनी सुरक्षा करनी पड़ती थी। अमेरिका के स्कूलों, क्लबों और रेस्तरांओं में गोलीबारी की घटनाओं में लोगों की मौत की खबरें अक्सर आती रहती हैं। इस वर्ष अब तक अमेरिका में बंदूक हिंसा की 146 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। अमेरिका में बंदूकें दुकानों पर आसानी से उपलब्ध हैं और बंदूकें रखना समाज में स्टेट्स सिम्बल बन चुका है।
एक रिपोर्ट के अनुसार 2024 में अमेरिका में लगभग 16.17 मिलियन (1.61 करोड़) बंदूकों की बिक्री हुई। यह पिछले साल (2023) की तुलना में 3 फीसदी की कमी को दर्शाता है। 2020 में कोविड-19 महामारी, सामाजिक अशांति और राष्ट्रपति चुनाव के कारण बंदूकों की बिक्री में रिकॉर्ड उछाल आया था। उस साल अनुमानित 21.8 मिलियन (2.18 करोड़) बंदूकें बेची गई। जब भी चुनाव होते हैं या बंदूक नियंत्रण को लेकर कोई कानून बनने की चर्चा होती है, तो बंदूकें खरीदने वाले लोग अक्सर ये सोचकर ज्यादा बंदूकें खरीद लेते हैं कि कहीं भविष्य में खरीद पर प्रतिबंध न लग जाए। मास शूटिंग (गोलीबारी की बड़ी घटनाएं) जैसी घटनाओं के बाद कुछ लोग अपनी आत्मरक्षा के लिए बंदूकें खरीदते हैं। जबकि इससे बंदूक नियंत्रण की मांग भी बढ़ती है। आर्थिक अस्थिरता के दौरान भी लोग सुरक्षा के लिए बंदूकें खरीदना पसंद करते हैं।
एक अनुमान के अनुसार अमेरिकी नागरिकों के पास लगभग 39.3 करोड़ से ज्यादा बंदूकें हैं। यह संख्या अमेरिका की आबादी से ज्यादा है। स्कूलों में गोलीबारी की घटनाओं के बाद अमेरिका में बंदूकों पर रोक लगाने की बहस कई बार तेज हुई। देश के कई शहरों में प्रदर्शन भी हुए। लोगों का कहना है कि बंदूक से मरने वालों की संख्या आतंकवाद से मरने वालों से कहीं ज्यादा है। गन कल्चर के विरोध में समय-समय पर आवाजें उठती रही हैं लेकिन नेशनल राइफल एसोसिएशन और बंदूक लॉबी इतनी प्रभावशाली है कि डेमोक्रेट आैर िरपब्लिकन पार्टियां अब तक कोई कदम नहीं उठा सकीं। बंदूक लॉबी दोनों पार्टियों को वोट के साथ-साथ काफी धन भी देती हैं, इसलिए अमेरिका में सरकारें बदलती रहीं लेकिन अब तक कुछ नहीं हो पाया। दूसरा पहलू यह भी है िक अमेरिका में रंग और नस्लभेद आज भी मौजूद है। अमेरिका में बंदूक चलाकर जान लेने की प्रवृत्ति में नस्लभेद भी दिखाई देता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिस तरह से अप्रवासियों के िखलाफ घृणा का वातावरण बना रहे हैं उससे भी घृणा अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं। महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि अमेरिका के लोग आिखर पुलिस प्रशासन पर भरोसा क्यों नहीं करते। उन्हें ऐसा क्यों लगता है िक किसी भी अपराध से खुद को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा उपाय खुद हथियार रखना है। दुनिया भर को शांति और सद्भाव का संदेश देने वाला अमेरिका खुद लहूलुहान हो रहा है। इसके बारे में फैसला वहां की सत्ता को ही करना है।