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नस्लवाद का अड्डा है अमेरिका

पूरी दुनिया को मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका खुद नस्लभेद का अड्डा बन चुका है। अमेरिका में एक के बाद एक हो रही नस्लभेद की घटनाएं उसके तमाम दावों की पोल खोल रही हैं

12:40 AM Aug 28, 2022 IST | Aditya Chopra

पूरी दुनिया को मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका खुद नस्लभेद का अड्डा बन चुका है। अमेरिका में एक के बाद एक हो रही नस्लभेद की घटनाएं उसके तमाम दावों की पोल खोल रही हैं

नस्लवाद का अड्डा है अमेरिका
पूरी दुनिया को मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका खुद नस्लभेद का अड्डा बन चुका है। अमेरिका में एक के बाद एक हो रही नस्लभेद की घटनाएं उसके तमाम दावों की पोल खोल रही हैं, जिनकी बुनियाद पर वह खुद को दुनिया का ताकतवर देश बताता है। अमेरिका और अन्य देशों में भारतीय नस्लभेद का शिकार होते रहे हैं। भारतीय राजनयिक, अभिनेता और अभिनेत्रियां भी शिकार हुई हैं। बालीवुड के किंग खान को तो 2000, 2012 और 2016 में अमेरिका में एयरपोर्ट पर डि​टेन किया गया था। अमेरिका में पढ़ाई के दौरान अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा सांवले रंग की वजह से नस्लीय टिप्पणियों से परेशान रही। इस वर्ष मई में टेक्सास में भारतीय अमेरिकी छात्र को सहपाठियों ने धमका कर सीट छोड़ने को कहा था, जब उसने सीट छोड़ने से इंकार किया तो अमेरिकी छात्र ने उसका गला दबाने की कोशिश की थी। इस घटना का वीडियो बहुत वायरल हुआ था। अब अमेरिका के टे​म्सास में ही चार भारतीय महिलाओं के साथ नस्लभेद की घटना सामने आई है। शहर के एक रेस्तरां के बाहर भारतीय महिलाओं के साथ एक मैक्सिकन अमेरिकी महिला ने बदसलूकी करते हुए एक महिला के  चेहरे पर हमला भी किया। उस महिला ने भी कहा कि ‘‘मैं भारतीयों से नफरत करती हूं, इसलिए वह वापिस भारत चले जाएं।’’
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मैक्सिकन महिला को इस बात से भी चिढ़ थी कि भारतीय हर जगह हैं। उसने तो गन दिखाकर शूट करने की धमकी भी दी। हालांकि पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया है लेकिन ऐसी आक्रामकता को नजरंदाज नहीं ​किया जा सकता। अमेरिका में अश्वेतों के साथ अन्याय और भेदभाव का लंबा इतिहास रहा है। दरअसल नस्लवाद वहां के समाज के केन्द्र में है। चाहे कोई कितना भी कह ले​ कि यह आजाद ख्यालों वाला समाज है लेकिन यह काफी अन्दर तक समाया हुआ है। इतने वर्षों बाद भी कई कानून बनाए जाने के  बाद भी अलगाव बना हुआ है। भरतीय महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट किसी गोरी महिला ने नहीं की है बल्कि एक मैक्सिकन अमेरिकी महिला ने की है। जिन्हें खुद भारतीयों की तरह ब्राउन कहा जाता है। 80 के दशक में न्यूूजर्सी के गैंग ‘द डॉटबस्टर्स’ की याद आती है जिसने भारतीय अमरीकियों को निशाना बनाया था। डॉट का मतलब भारतीय महिलाओं के माथे पर लगाई जाने वाली बिंदी से था। इस गैंग ने धमकी दी थी कि वह न्यूजर्सी से भारतीयों को बाहर करने के लिए हर हद तक जाएगा। यह गैंग भी कई अन्य दूसरे गिरोहों की तरह था क्योंकि 80 के दशक का वह दौर था जब भारतीय अमरीकियों की संख्या बढ़ रही थी ​​जिससे दूसरे समुदाय नाराज थे। तब एक भारतीय अमेरिकी नवरोज मोदी को जान से मार दिया और एक अन्य व्यक्ति कुशल सरन को इतनी बुरी तरह से मारा गया था कि वह कई दिन तक कोमा में पड़े रहे थे। 2015 में एक अन्य घटना सामने आई थी जिसने भारतीय अमेरिकियों को हिला कर रख दिया था। दो पुलिसकर्मियों ने 57 वर्षीय सुरेश भाई पटेल को जमीन पर गिरा दिया था जिस वजह से सुरेश आंशिक रूप से विकलांग हो गए थे।
नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने लोगों को बताया था कि अमेरिका में काले लोग क्यों सड़कों पर उतरते हैं। कानून के सामने हर अमेरिकी नागरिक समान है लेकिन हकीकत में अमेरिका की पुलिस लोगों को सड़कों पर उनके रंग और लुक के कारण रोकती है। भले ही वे संदिग्ध न भी हों तब भी उन्हें रोका जाता है। गिरफ्तारी के दौरान अगर श्वेत पुलिसकर्मी या अधिकारी बर्बर गलती कर देते हैं तो भी ऐसे मामलों को दबाया जाता है। अमेरिका में स्थानीय प्रशासन की निगरानी करने वाली कोई स्वतंत्र संस्था नहीं है। पुलिस की कारों में तमाम कानून तोड़ने वाले लोग बैठे हुए हैं जो कानून के रखवाले होने का दावा करते हैं।
अमेरिका के पहले काले राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी नस्लवाद को खत्म करने की को​िशश की ले​िकन उनके कार्यकाल में भी फर्गूसन में 18 साल के निहत्थे काले युवक माइकल ब्राउन को आठ बार गोली मारी गई। अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही दुनिया की सबसे ताकतवर सेना के मुखिया हों लेकिन अपने ही देशवासियों द्वारा हर दिन किए जाने वाले नस्लभेद के सामने वे लाचार दिखाई देते हैं। डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लायड की एक पुलिसकर्मी ने गला दबाकर हत्या कर दी थी उसके बाद अमेरिका में दंगे भड़क उठे थे। अमेरिका में 1993 में ऐसा कानून बनाया गया था जिसकी वजह से अमेरिका में एक ही तरह का अपराध करने पर अश्वेतों को श्वेतों से ज्यादा कड़ी सजा होती है। दुनिया को धार्मिक स्वतंत्रता का ज्ञान देने वाला अमेरिका खुद धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करता है। अमेरिका वास्तव में प्रवासियों का देश है, लेकिन एक ब्राउन दूसरे ब्राउन से नफरत करे यह एक घातक प्रवृति है। भारतीय महिलाओं से दुर्व्यवहार की अनेक संगठनों ने निंदा की है। यह सच है कि अमेरिका में नस्लभेद रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा बन चुका है।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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