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अमृत महोत्सव : रक्षा आत्मनिर्भरता-8

भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन-तीन युद्ध लड़े और जीते भी, लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में 1962 में चीन से युद्ध हारना पड़ा।

05:01 AM Jul 26, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन-तीन युद्ध लड़े और जीते भी, लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में 1962 में चीन से युद्ध हारना पड़ा।

भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन-तीन युद्ध लड़े और जीते भी, लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में 1962 में चीन से युद्ध हारना पड़ा। इस पराजय का कारण था नेहरू शासन की पिलपिली रक्षा नीति। हमारी सेना के पास लड़ने के लिए हथियार ही नहीं थे। तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन ताई को गले लगाने और हिन्दू चीनी भाई-भाई के नारों को धूर्त चीन ने भारत की कमजोरी समझा। चीन ने हमारे महत्वपूर्ण इलाके अक्साई चिन पर अवैध कब्जा जमा लिया। चीन ने 37,244 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल भूमि पर कब्जा कर लिया। चीन युद्ध के बाद ही भारत ने अपनी रक्षा नीति में बदलाव किया और हमारी सेनाएं पाकिस्तान को पराजित करने में सक्षम हो गईं और 1971 के युद्ध में हमारी सेना ने न केवल पाकिस्तान से बंगलादेश को अलग कर​ दिया, बल्कि पाकिस्तान के 95 हजार सैनिकों का आत्मसमर्पण कराया था।
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हम रक्षा उपकरणों और अन्य साजो-सामान के लिए रूस पर निर्भर हो गए। धीरे-धीरे भारत के संबंध अमेरिका, फ्रांस, इस्राइल और अन्य देशों से प्रगाढ़ हुए तो भारत ने अपनी सेना को मजबूत करने के लिए नवीनतम हथियार खरीदे।
आज भारत चीन की आंख में आंखें डालकर बात करता है, आंखें झुका कर नहीं। चीन से सम्मान और अपनी भूमि खोने वाले भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में डोकलाम में चीन की औकात बता दी थी। लद्दाख में सीमा पर गतिरोध के चलते दो वर्ष हो चुके हैं, लेकिन भारतीय सेना के जवान वहां डटे हुए हैं। चीन ने कभी सोचा नहीं था कि उसे भारत से इतने कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। 
मोदी सरकार के शासन में राष्ट्रीय सुरक्षा को भी अभूतपूर्व मजबूती मिली है। आतंकवाद के प्रति इस सरकार का रुख जीरो टोलरेंस का है। अब आतंकी हमलों पर कांग्रेस सरकारों की तरह केवल ​निंदा-भर्त्सना कर कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं की जाती, बल्कि पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के द्वारा आतंकियों को उनके घर में घुस कर मुंहतोड़ जवाब दिया जाता है। यह परिवर्तन देश के नेतृत्व की मजबूती के कारण ही सम्भव हुआ है। कांग्रेस सरकारों के समय अक्सर ऐसा भी सुनने को ​मिलता था कि भारतीय सेना के पास गोला-बारूद की कमी हो गई है, लेकिन अब गोला-बारूद ही नहीं, सेना को सभी अत्याधुनिक संसाधनों एवं उपकरणों से युक्त रखने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। आज देश के आसपास की ​हिफाजत राफेल जैसा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान कर रहा है, तो वहीं एस-400 जैसी सर्वश्रेष्ठ मिसाइल रक्षा प्रणाली भी कवच बनकर तैनात हो चुकी हैं। रक्षा सामग्री के लिए पहले दूसरे देशों पर निर्भर रहने वाले भारत ने 2019 में 10 हजार करोड़ रुपए मूल्य के रक्षा उत्पादों का निर्यात किया और 2025 तक इसे 35 हजार करोड़ करने का लक्ष्य है। यह सब इसलिए सम्भव हुआ है, क्योंकि मोदी सरकार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा राजनीति का नहीं, राष्ट्रहित का विषय है। प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक के कार्यकाल में राष्ट्रीय स्तर पर तो देश को सुदृढ़ किया ही है, विश्व पटल पर भारत के गौरव को बढ़ाने का भी काम किया है।
रक्षा क्षेत्र में एक बड़ा सुधार करते हुए पिछले वर्ष जून में केन्द्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए आर्डिनेंस ​फैक्ट्री बोर्ड की आयुध निर्माणियों का निगमीकरण कर इनकी जगह रक्षा क्षेत्र की सात कम्पनी बनाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा है कि किसी देश की शक्ति का मूल्यांकन करने के दो मापदंड होते हैं। पहला उस देश की रक्षा क्षमता कितनी है और दूसरा वहां की अर्थव्यवस्था का आकार कितना है। जहां तक रक्षा क्षमता का सवाल है तो सरकार ने फैसला लिया  है कि अधिक से अधिक रक्षा सामग्री घरेलू स्तर पर ही खरीदी जाएगी। भारत पहले लाखों करोड़ों रुपए का सामान विदेश से खरीदता था, लेकिन अब यह सुनिश्चित किया गया है कि रक्षा सामग्री का निर्माण भारत में होगा, क्योंकि भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है।
उल्लेखनीय है कि 85 हजार कराेड़ रुपए की जो पूंजी रक्षा सामान खरीदने के लिए है उसका 68 प्रतिशत भारतीय कम्पनियों से ही लिया जाएगा। दरअसल सरकार की योजना है कि हम अपनी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर दूसरे देशों पर आश्रित न रहें। इसी के मद्देनजर ऐसी 309 रक्षा सामग्रियों की घोषणा की गई है जो बाहर से नहीं मंगाई जाएंगी। पहले छोटे से छोटे रक्षा उत्पादों के लिए भारत दूसरे देशों पर निर्भर रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। भविष्य में सेना को अपनी जरूरत के हथियार चाहिएं और उसमें सेना किस तकनीक को चाहती है इसके ​लिए सबसे पहले स्वदेशी हथियार निर्माताओं तथा भारतीय कम्पनियों से ही सम्पर्क किया जाएगा। यह माना जा रहा है कि 90 प्रतिशत या इससे भी अधिक के आर्डर भारतीय कम्पनियों को ही मिलेंगे। अब देश में सैन्य साजो-सामान चीन व पाकिस्तान जैसे देशों से मिलने वाली चुनौतियों के अनुरूप तैयार किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2025 तक 35 हजार करोड़ रुपए निर्यात का लक्ष्य तय करने के साथ 1.75 लाख करोड़ रुपए के स्वदेशी रक्षा उत्पाद खरीदने का लक्ष्य भी रखा है। नई रक्षा कम्पनियों ने अच्छे नतीजे दिए हैं। वह दिन दूर नहीं जब भारत रक्षा उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएगा। और भारतीय हथियारों की धमक दुनिया के अन्य देशों तक भी होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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