वार्षिक ‘फास्टैग’ पास और नितिन गडकरी
भारत जैसे विविधता से भरे विशाल देश में 67 लाख किलोमीटर से अधिक का सड़कों…
भारत जैसे विविधता से भरे विशाल देश में 67 लाख किलोमीटर से अधिक का सड़कों का जाल फैला हुआ है इसमें राष्ट्रीय राजमार्गों से लेकर प्रादेशिक राजमार्ग व अन्य सड़कें शामिल हैं। मार्च 2025 के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार इस कुल सड़क लम्बाई में से राष्ट्रीय मार्गों का हिस्सा एक लाख 46 हजार 207 किलोमीटर का है जबकि प्रादेशिक राजमार्गों का हिस्सा एक लाख 79 हजार 535 कि.मी. का है। शेष साठ लाख 19 हजार 723 कि.मी. की अन्य सड़कें हैं। इन राष्ट्रीय व प्रादेशिक राजमार्गों पर वर्तमान में कुल 1228 टोल प्लाजा स्थित हैं जिन पर निजी वाहनों से टोल टैक्स वसूला जाता है। यह कार्य अब फास्टैगों के माध्यम से हो रहा है जो कार या अन्य निजी वाहनों के सामने वाले ( फ्रंट) शीशे पर चिपके होते हैं।
इन टोल प्लाजाओं से जब वाहन गुजरता है तो शुल्क स्वयं कट जाता है और इन पर भीड़ कम होती है। इससे पहले शुल्क काटने वाले स्थानों पर भीड़ रहा करती थी और यात्रियों को कभी-कभी घंटों लाइन में लगे रहना पड़ता था। इस तरफ सबसे पहले ध्यान मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में भूतल परिवहन मन्त्री रहे कमलनाथ ने दिया था और 2012 में उन्होंने घोषणा की थी कि जल्दी ही वह विकसित देशों की भांति भारत की सड़कों पर आवागमन करने वाले वाहनों के लिए एेसा कार्ड जारी करेंगे जिसे देख कर शुल्क प्लाजा का बैरियर खुदबखुद हट जाएगा और शुल्क सीधे इस कार्ड से कट जाया करेगा। वाहन मालिक अपने बैंक खाते से इस कार्ड को जोड़ेंगे और फास्टैग का धन खत्म हो जाने पर रिचार्ज करा सकेंगे।
2021 से अब निजी वाहनों के लिए फास्टैग जरूरी बना दिया गया है जिसके न होने पर उन्हें दुगना नकद शुल्क देना होगा। भारत में यह व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है। जिसका श्रेय वर्तमान मोदी सरकार के भूतल परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी को दिया जा सकता है। भारत में चूंकि सरकार एक सतत प्रक्रिया है जिसका गठन हर पांच साल बाद होता है। अतः कमलनाथ से लेकर नितिन गडकरी तक के कार्यकाल की यह सफल कहानी है। मगर अब इस व्यवस्था में भी खामी नजर आने लगी है औऱ टोल प्लाजाओं पर वाहनों की भारी भीड़ देखी जाने लगी है। इसकी वजह यह है कि भारत में चार पहिया मोटर वाहनों की संख्या बढ़ कर अब सात करोड़ हो चुकी है जबकि दुपहिया मोटर वाहनों की संख्या 21 करोड़ से भी अधिक है।
भारत की कुल आबादी 140 करोड़ में से 21 करोड़ लोग एेसे हैं जिनके पास अपने दुपहिया मोटर वाहन हैं जबकि सात करोड़ के पास कार आदि है। पैरों से चलने वाली साइकिल को मुश्किल से गांवों में ही देखने को मिलती है। जबकि इनमें वाणिज्यिक मोटर वाहन शामिल नहीं हैं। भारत में इनकी संख्या भी करोड़ों में है। अब परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी इस व्यवस्था में सुधार कर रहे हैं और फास्टैग कार्ड को साल भर के लिए तीन हजार रुपये से चार्ज करने की सुविधा दे रहे हैं। साल में यदि कोई निजी वाहन दो सौ टोल प्लाजाओं से गुजरता है तो उसे तीन हजार के कार्ड की वजह से टोल प्लाजा पर रुकना नहीं पड़ेगा। इससे वाहन मालिक का खर्च भी कम होगा। इसकी सीमा दो सौ टोल रखी गई है। इसका मतलब यह हुआ कि दो सौ प्लाजा और एक वर्ष में जो भी कम होगा वही मान्य होगा।
दो सौ टोल पार करने की सीमा जब पूरी हो जायेगी तो फास्टैग कार्ड को पुनः रिचार्ज किया जा सकता है। मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि यह व्यवस्था केवल राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही लागू होगी जबकि प्रदेशिक राजमार्गों पर टोल प्लाजा राज्य सरकार द्वारा बनाये गये नियमों से चलेंगे। कुल 1228 टोल प्लाजाओं में राष्ट्रीय राजमार्ग टोलों की संख्या 750 के लगभग है जबकि 100 प्रादेशिक टोल प्लाजाओं पर भी फास्टैग मान्य है। शेष जो शुल्क स्थल हैं वे नकद रोकड़ा में शुल्क वसूलते हैं।
श्री गडकरी ने फास्ट टैग को वार्षिक पास में बदलने का जो फार्मूला दिया है उससे सात करोड़ निजी वाहन चालकों को लाभ होगा और उनकी यात्रा सुगम बनेगी। यह प्रणाली आगामी 15 अगस्त से पूरे देश में लागू होगी। वैसे तो फास्टैग व्यवस्था 2014 से ही चालू हो गई थी मगर 2021 में इसे अनिवार्य बनाया गया। एेेसा राजमार्गों पर बढ़ती भीड़ को देखते हुए किया गया। तथ्य यह है कि राष्ट्रीय राजमार्ग भारत में कुल सड़क लम्बई का अभी भी केवल 2 प्रतिशत ही है मगर इन पर माल का ढुलान भारत के कुल माल ढुलान का 40 प्रतिशत होता है। इससे यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि भारत में राजमार्गों पर वाहनों की भीड़ किस तादाद में रहती होगी। इसी वजह से विभिन्न प्रदेशों में एक्सप्रेस मार्गों का चलन भी बढ़ रहा है। यही वजह है कि आजकल जो भी व्यक्ति नई गाड़ी खरीदता है वह अपने वाहन पर शोरूम से ही फास्टैग लगवा कर बाहर लाता है।
इसे हम आर्थिक उदारीकरण या बाजार मूलक अर्थव्यवस्था का वरदान भी समझ सकते हैं कि आज भारत में निजी वाहनों की संख्या इतनी अधिक है। क्योंकि जब भारत आजाद हुआ था तो निजी वाहनों की संख्या हजारों में थी जो अब बढ़कर करोड़ों में हो चुकी है। भारत में वाहन क्रान्ति 90 के दशक से ही शुरू हुई है। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था ने देश के मध्यम आमदनी के वर्ग को बहुत तेजी के साथ सशक्त किया है।
बैंकों से ऋण प्राप्त करके अब सामान्य मध्यम वर्ग का व्यक्ति अपनी कार होने पर गर्व कर सकता है। यही हालत आवासीय क्षेत्र में भी है। बैंकों से ऋण लेकर अपने घर का सपना युवा पीढ़ी भी साकार कर रही है। यह सब नई अर्थव्यवस्था का ही कमाल है। वैसे भारत में कार बाजार बनाने या विकसित करने में सरकारी क्षेत्र मे रही कम्पनी मारुति ने प्रमुख भूमिका निभाई है और मारुति कार का उत्पादन करके सामान्य मध्यम दर्जे के व्यक्ति को अपनी कार होने का एजाज बख्शा है।
अब यह दौर भी पूरा हो चुका है और भारत में लगभग हर विदेशी कार कम्पनी अपनी कारों का उत्पादन कर रही है। साल भर का फास्टैग पास इसी पूरी प्रक्रिया का हिस्सा कहा जा सकता है क्योंकि यह निजी कार मालिक को किफायती दर पर टोल प्लाजाओं से गुजारता है। यदि साल भर में दो सौ शुल्क प्लाजाओं को पार किया जाये तो प्रति टोल 15 रुपये की दर पर पड़ता है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि जिस प्रकार फास्ट टैग लोकप्रिय हुआ उसी प्रकार यह फास्टैग पास भी निजी वाहन मालिकों में लोकप्रिय होगा। इसके लिए नया फास्टैग खरीदना भी जरूरी नहीं होगा। चालू फास्टैग को ही नियमानुसार वार्षिक पास में बदला जा सकता है। हम जानते हैं कि देश में नई-नई सड़कों का जाल बिछना जारी है और इसी के लिए नितिन गडकरी जाने भी जाते हैं। अतः टोल प्लाजा भी बढ़ेंगे और उन पर निजी वाहन भी बढें़गे।