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सैक्स के माध्यम से संस्कृति पर हमला

माता-पिता के निजी संबंधों पर रणवीर अलाहबादिया की शर्मनाक टिप्पणी तो महज एक बानगी है..

11:30 AM Feb 17, 2025 IST | Editorial

माता-पिता के निजी संबंधों पर रणवीर अलाहबादिया की शर्मनाक टिप्पणी तो महज एक बानगी है..

माता-पिता के निजी संबंधों पर रणवीर अलाहबादिया की शर्मनाक टिप्पणी तो महज एक बानगी है… यदि मैं यह कहूं कि सेक्स के माध्यम से हमारी संस्कृति पर हमला हो रहा है तो ये बात आपको थोड़ी अजीब लग सकती है। संभव है कि आप में से कई लोग इसे अतिशयोक्ति भी कहें मगर हालात वाकई यही हैं। यूट्यूबर रणवीर अलाहबादिया ने समय रैना के यूट्यूब शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ में जिस तरह की शर्मनाक बातें कही हैं वह तो महज बानगी भर है। हकीकत तो यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इंटरनेट का मायाजाल अभद्रता, गाली-गलौच और दिमागी गंदगी का कूड़ाघर बना हुआ है। हमारी युवा पीढ़ी के दिमाग को गंदगी से भर देने का षड्यंत्र बड़ी चालाकी से रचा गया है।

इस षड्यंत्र को समझने से पहले चलिए बात करते हैं ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ की। टीवी पर ‘इंडियाज गॉट टैलेंट’ एक मशहूर कार्यक्रम रहा है। इस शीर्षक में टैलेंट की जगह लेटेंट करके समय रैना ने यूट्यूब पर चैनल बना लिया। टैलेंट का अर्थ तो सभी जानते हैं, लेकिन लेटेंट प्रचलित शब्द नहीं है। लेटेंट का अर्थ होता है अव्यक्त, गुप्त या सुप्त। मसलन कोई बात है लेकिन सामान्य तौर पर कही नहीं जाती, गुप्त है या सुप्त यानी डॉरमेंट स्टेज में है। बड़ी चालाकी से इस शब्द का चयन किया गया होगा ताकि सेक्स मसाला परोसने पर भी कानूनी अड़चन न आ पाए। बहाना बनाया जा सकता है कि जो बातें कही जा रही हैं वह भले ही सार्वजनिक रूप से नहीं कही जा रही हों लेकिन मौजूद तो हैं ही। इसमें मां-बहन की गालियों से लेकर किसी महिला या पुरुष के अंगों की व्याख्या शामिल हो सकती है। हमारे-आपके लिए ये अश्लीलता है लेकिन अलाहबादिया या समय रैना जैसे लोगों के लिए यह पैसा कमाने का माध्यम है।

पॉडकास्ट पर गाली-गलौच करने वाले यूूट्यूबर करोड़ों कमा रहे हैं क्योंकि लाखों लोग उनके फॉलोवर हैं। यूट्यूब जैसे सौदागर यह कभी नहीं देखते कि उस पर सामग्री क्या परोसी जा रही है। उन्हें हिट्स और सब्सक्राइबर की संख्या से मतलब है। इस कसौटी पर जो खड़ा उतरेगा, वही अपनी झोली भरेगा। इस बार विवाद इसलिए गंभीर हो गया है कि गाली-गलौच और अंग-प्रत्यंग व शारीरिक संबंधों की अभद्र व्याख्या से भी आगे अलाहबादिया ने एक प्रत्याशी से ऐसी बात पूछ ली कि मैं शब्दश: उसे अपने इस कॉलम में लिख भी नहीं सकता क्योंकि हमारा जमीर अभी जिंदा है, फिर भी शालीन शब्दों में बताना जरूरी है। उसने प्रत्याशी से पूछा कि तुम अपने माता-पिता को संबंध बनाते जिंदगी भर देखते रहोगे या एक बार शामिल होकर उसे हमेशा के लिए खत्म कर दोगे? वो प्रत्याशी हंस रहा था लेकिन वीडियो देखते और सुनते हुए मेरा खून खौल गया।

ये कौन सा लेटेंट है? कौन नहीं जानता कि प्रणय लीला प्रकृति की रचना के चलते रहने का अविभाज्य माध्यम है? तो क्या इसे सड़क पर अभिव्यक्त करते रहें? आज इंटरनेट के अमूमन सभी प्लेटफॉर्म नंगे नाच का अड्डा बने हुए हैं। गालियां तो ऐसे धड़ल्ले से निकलती हैं कि सुनने वाले को शर्म आ जाए, यहां तक कि लड़कियां भी महिलाओं की अस्मत से जुड़ी गालियां देती हैं। शरीर के अंगों के साइज की चर्चा ऐसे होती है जैसे किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की चर्चा हो रही हो। सेक्सुअल बातें करने वाले स्टैंडअप कॉमेडियन को सुनने के लिए लोग हजारों रुपए के टिकट खरीदकर सुनने आते हैं, जो खर्च नहीं कर पाता, उसके लिए सोशल साइट पर वीडियो डाल दिए जाते हैं। लाखों लाइक्स मिलते हैं और पैसा बरसता है।

क्या आपको पता है कि भारत के युवा औसतन हर रोज ढाई घंटे विभिन्न सोशल साइट्स पर सर्फिंग करते हैं जिनमें से करीब 40 मिनट वे रील्स देखते हैं। निश्चित रूप से अच्छे रील्स भी इंटरनेट साइट्स पर मौजूद हैं, लेकिन सेक्स से भरी रील्स की भी कम भरमार नहीं है। स्वाभाविक तौर पर युवा ऐसी रील्स के प्रति ज्यादा आकर्षित होते हैं, यहां मैं पॉर्न फिल्मों या क्लिपिंग्स की तो बात ही नहीं कर रहा हूं। हाल ही में मैं इंटरनेट इंडस्ट्री को लेकर एक रिसर्च पेपर पढ़ रहा था। मैं यह पढ़कर चौंक गया कि पॉर्न देखने वालों में दुनिया में सबसे ऊपर भारतीय हैं। अमेरिका दूसरे नंबर पर है, अब तो भारतीय भी पॉर्न फिल्में बनाने लगे हैं। फिल्मी दुनिया के कुछ नाम भी सामने आ चुके हैं जो सॉफ्ट पॉर्न बनाकर विदेशों में बेच रहे थे, कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि ‘मस्तराम’ की कहानियां तो पहले भी बाजार में उपलब्ध थीं, वहीं अब वीडियो के रूप में है, लेकिन मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूं। सेक्सी कहानियों की वो किताबें निजी कुंठाओं की पूर्ति करती थीं।

चोरी-छुपे पढ़ी जाती थीं, लेकिन आज जो चल रहा है, वह सीधे तौर पर हमारी संस्कृति पर हमला है। समझ में नहीं आता कि किस-किस को दोष दें। सोशल साइट्स को मीडिया कहकर उसका बचाव करने वालों की लंबी जमात है, जिस अलाहबादिया की अभी थू-थू हो रही है, उसके कार्यक्रमों में राजनीति के कई धुरंधर भी शामिल हो चुके हैं। हां, उन कार्यक्रमों में गाली-गलौच नहीं हुई थी, लेकिन सवाल है कि ऐसे लोगों को प्रश्रय दें ही क्यों? एक बहुत पुरानी कहावत है कि किसी राष्ट्र को यदि समाप्त कर देना हो तो उसकी संस्कृति को नष्ट कर दीजिए। आज यही चल रहा है। अभी हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसका जिक्र मैं करना चाहूंगा।

अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इंटरन्यूज नेटवर्क नामक संस्थान खड़ा किया जिसने पिछले चार वर्षों में 30 देशों में करीब 9 हजार तथाकथित मीडियाकर्मियों को ‘लोकतंत्र जिंदा रखने’ की ट्रेनिंग दी। इनमें से 7500 मीडियाकर्मी भारत के हैं! उन्हें भरपूर पैसा भी मिला। इसे लेकर क्या आपके मन में कोई शंका पैदा नहीं हो रही है? यह भी सोचिएगा जरूर कि सेक्स के माध्यम से भारतीय संस्कृति पर हमला करने वालों को करोड़ों-करोड़ रुपए कौन दे रहा है? सोचना तो हमारी सरकार को भी चाहिए। सभंव है कि कुछ देश इस बात से खफा हों कि उनके लोग हमारे कुंभ में आ रहे हैं और हिंदुस्तानी संस्कृति के पूजक बन रहे हैं। फिलहाल हमारी चिंता यह है कि हम क्या कर रहे हैं? हम पाश्चात्य चलन की ज्वाला में झुलसे जा रहे हैं।

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