गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के प्रति देशवासियों में जागरुकता
गुरु तेग बहादुर जी जो कि सिख धर्म में नौवें गुरु के तौर पर जाने जाते हैं। गुरु जी की शहादत अद्वितीय है जिसकी मिसाल आज तक न तो कोई हुई है और रहती दुनिया तक न ही हो सकती है, जहां कोई शख्स जो कि दूसरे धर्म की रक्षा हेतु स्वयं अपने प्राणों का बलिदान दे। मगर बहुत ही अफसोस कि इतनी बड़ी शहादत के इतिहास के प्रति आज तक देशवासी अन्जान रहे। आज तक स्कूलों के पाठ्यक्रम में अत्याचार करने वाले क्रूर औरंगजेब का इतिहास तो पढ़ाया गया, मगर अत्याचार से मुक्ति दिलाने वाले गुरु जी के इतिहास से बच्चों को वंचित रखा गया जो कि एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है।
संयोगवंश आज देश की बागडाेर उन हाथों में आई जो इस बात से भलीभान्ति वाकिफ हैं कि अगर आज हिन्दू धर्म कायम है तो गुरु तेग बहादुर जी की बदौलत ही है। अगर उस समय गुरु जी ने अपनी शहादत देकर मुगलों के अत्याचार से मुक्ति न दिलाई होती तो आज शायद मन्दिरों में पूजा न हो रही होती, हिन्दू बहनों की मांग मंे सिन्दूर, माथे पर तिलक न लग रहा होता, इस देश में कोई और ही धर्म होता। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीते साल बिना किसी सुरक्षा के गुरु जी के शहीदी स्थान गुरुद्वारा शीशगंज साहिब नतमस्तक हुए थे। गुरु जी की शहादत के 350वें दिवस को सरकारी स्तर पर मनाने हेतु उन्होंने केन्द्र व राज्यों की सरकारों को निर्देश दिए ताकि देश के हर घर तक गुरु जी की शहादत के सन्देश को पहुंचाया जा सके। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं हरियाणा सरकार की ओर से करवाए गए शहीदी समागम में भाग लेने के लिए पहुंचे। देश की राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, गृहमंत्री ने दिल्ली के लाल किला समागम में भाग लेकर गुरु जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। दिल्ली सरकार ने दिल्ली के लाल किला में 3 दिवसीय कार्यक्रम दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के सहयोग से करवाए। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने स्वयं तीनों दिन हाजरी भरकर संगत दर्शन भी किए। इसमें बड़ी भूमिका मनजिन्दर सिंह सिरसा के द्वारा निभाई गई। सिरसा स्वयं दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी में बतौर अध्यक्ष रह चुके हैं इसलिए उन्हें मर्यादा का भी पूर्ण ज्ञान है। उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा भी शहीदी समागम में भाग लेकर गुरु जी के प्रति अपना अकीदा भेंट किया गया। पंजाब सरकार ने भी कई तरह के कार्यक्रम करवाए।
दिल्ली के लाल किला पर कार्यक्रम करवाने का मकसद यही था कि जिस लाल किला से गुरु जी की शहादत का फरमान जारी हुआ आज उसी लाल किला पर लाखों लोगों द्वारा पहुंचकर गुरु जी की शहादत को नतमस्तक हुआ जाए। वैसे भी शहीदी स्थान पर तो रोजाना हजारों लोग पहुंचते हैं, दूसरी ओर औरंगजेब की मजार पर कोई नहीं जाता वहां दीया भी लोगों से पैसे मांग कर जलाया जाता है। लाल किला समागम में लाईट एंड साउंउ शो और गुरु साहिब के जन्म से लेकर, गुरगद्ी पर विराजमान होना और शहादत तक के इतिहास को दर्शाता म्यूजियम भी संगत के आकर्षण का केन्द्र रहा। दिल्ली कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका और महासचिव जगदीप सिंह काहलो मानते हैं कि उम्मीद से कहीं अधिक संगत के पहुंचने पर प्रबन्ध कम पड़ गए बावजूद इसके संगत ने पूरी श्रद्धा के साथ शामिल होकर कार्यक्रमों की सराहना की। वहीं कुछ लोगों को सिख जत्थेबंदियाें का सरकारों के साथ मिलकर शताब्दी को मनाना नापसंद गुजरा।
बागपत गुरुद्वारा की अनदेखी क्यों? : गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनका धड़ लख्खीशाह बन्जारा लेकर निकल गये पर शीश वहीं रह गया और औरंगजेब के भय के चलते कोई उसे हाथ तक लगाने को तैयार नहीं था। उसी समय भाई जैता जी ने फुर्ती के साथ शीश को एक टोकरे में रखकर औरंगजेब के सिपाहियों को चकमा देकर कीरतपुर साहिब के लिए निकल़ पड़े और देर शाम बागपत पहुंचे जहां रात्रि विश्राम किया गया जिसके पुख्ता सबूत भी मिलते हैं और बागपत की संगत के द्वारा एक छोटे से कमरे में गुरु महाराज का स्वरूप रखकर गुरुद्वारा साहिब भी बनाया हुआ है। यह एक गंभीर चिन्तन का विषय है कि आज तक इस स्थान का विकास क्यों नहीं हुआ जबकि अन्य स्थानों पर जहां भी भाई जैता जी रुके वहां आलीशान गुरुद्वारा साहिब बने हुए हैं फिर इस स्थान की अनदेखी का कारण समझ से परे है, हालांकि पिछले करीब 5 सालों से प्रोफेसर चरनजीत सिंह, आर.एस. आहुजा सहित अन्य बुद्धिजीवियों की टीम के द्वारा इस स्थान के विकास के लिए निरन्तर आवाज उठाई जा रही है। हर साल गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी पर्व पर दिल्ली के गुरुद्वारा शीशगंज साहिब से बकायदा पैदल यात्रा बागपत तक ले जाई जाती है ताकि संगत जागरूक हो और इस स्थान को भी अन्य स्थानों की भान्ति पहचान मिल सके। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका का भी इन्हें सहयोग मिला है जिसके चलते उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस स्थान को भी भव्य स्थान में तब्दील किया जाएगा।
शहीदी शताब्दी पर समूचे पंथ को एकजुटता का प्रण लेने की अपील : इस समय सारा संसार गुरु तेग बहादुर जी और उनके साथ शहीद हुए भाई मतिदास जी, भाई सतिदास जी, भाई दयाला जी की शहादत के 350 साल पूरे होने पर शहीदी शताब्दी को अपने-अपने अन्दाज में मनाने में व्यस्त हैं। पहली बार यह भी देखने को मिल रहा है कि शहीदी शताब्दी को केवल सिख ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग यहां तक कि देश और राज्यों की सरकारों के द्वारा मनाया जा रहा है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा असम के धुपरी साहिब से एक यात्रा निकाली गई जो कि देश का भ्रमण करते हुए श्री आनंदपुर साहिब में समाप्ति हुई। तख्त पटना साहिब से शहीदी जागृति यात्रा गुरु तेग बहादुर जी और गुरु गोबिन्द सिंह जी के मिलन स्थल गुरु का बाग से श्री आनंदपुर साहिब गुरु बाप बेटा के आखिरी मिलन स्थल तक पहुंची। साइकिल फैडरेशन आफ इन्डिया के द्वारा दिल्ली से अमृतसर तक साइकिल यात्रा निकाली। इसके अतिरिक्त देश ही नहीं विदेशों में भी कई यात्राएं, नगर कीर्तन आदि निकले गए। दिल्ली के लाल किला पर जहां से गुरु साहिब की शहादत का फरमान जारी हुआ था उसी लाल किले पर 3 दिवसीय समागम हुए।
समाजसेवी दविन्दर पाल सिंह पप्पू की सोच है कि बेहतर होता कि अगर सारी सिख जत्थेबंदियां एक होकर इस शताब्दी को मनाती। सिख कौम में आज एकजुटता की जरुरत है इसलिए बेहतर होगा कि सभी जत्थेबंदियां आपसी रंजिशें भुलाकर एकजुटता का प्रण लें जिससे सभी मिलकर कौम की बेहतरी के लिए कार्य कर सकें।