Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

हेट स्पीच पर आजम को सजा

पिछले कुछ वर्षों से हेट स्पीच यानि नफरती भाषण को लेकर गंभीर चर्चा छिड़ी हुई है।

12:58 AM Oct 29, 2022 IST | Aditya Chopra

पिछले कुछ वर्षों से हेट स्पीच यानि नफरती भाषण को लेकर गंभीर चर्चा छिड़ी हुई है।

पिछले कुछ वर्षों से हेट स्पीच यानि नफरती भाषण को लेकर गंभीर चर्चा छिड़ी हुई है। राजनीतिज्ञ हो या संत समाज या फिर धर्म के नाम पर अपनी सियासत की दुकानें चलाने वाले लोग जुबां संभाल कर नहीं बोल रहे। पिछले 2-3 साल में भड़की हिंसा के पीछे भी हेट स्पीच की बड़ी भूमिका बताई गई है। इसे लेकर अदालताें में मुकद्दमें भी चल रहे हैं। इनमें भी कुछ नेताओं ने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए थे जिन्हें उकसाऊ या भड़काऊ करार दिया गया। जिस तरह से देश में धार्मिक नफरत फैलाने और नफरती भाषण का सिलसिला तेज हुआ उसे लेकर चिंता स्वाभाविक है। अब हेट स्पीच के लिए समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को अदालत ने हेट स्पीच के मामले में तीन साल की सजा सुनाई है।  वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषण को लेकर रामपुर एमपी, एमएलए कोर्ट ने उन्हें 25000 का जुर्माना भी लगाया है। यद्यपि सजा के ऐलान के कुछ ही समय बाद आजम खान को जमानत भी मिल गई। लेकिन इस सजा का भारत की राजनीति में एक व्यापक महत्व है। इसका राजनीतिक पहलू भी है और सामाजिक पहलू भी है। सजा मिलने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता भी रद्द कर दी गई है। यह भी नफरती भाषण के आदी नेताओं को एक सबक होगा सुप्रीम कोर्ट द्वारा नफरती भाषण मामले में सख्ती दिखाए जाने के बाद यह कोर्ट का पहला फैसला है। पहला सवाल यह है कि आखिर हेट स्पीच होती क्या है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हेट स्पीच का मतलब इस प्रकार दिया गया है। “नस्ल, धर्म, लिंग जैसे किसी भेदभाव के चलते किसी समूह विशेष के खिलाफ पूर्वाग्रह व्यक्त करने वाला कोई भी निंदात्मक या आक्रामक बयान” हेट स्पीच को लेकर अलग से कोई कानूनी व्याख्या नहीं है बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर कुछ लगाम कसते हुए एक तरह से हेट स्पीच को परिभाषित किया गया है। संविधान के आर्टिकल-19 के मुताबिक अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर 8 किस्म के प्रतिबंध है । राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, लोकव्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, अदालत की अवमानना, मानहानि, हिंसा भड़काऊ, भारत की अखंडता व संप्रभुता इनमें से किसी भी बिंदु के तहत अगर कोई बयान या लेख आपत्तिजनक पाया जाता है तो उसके खिलाफ सुनवाई और कार्रवाई का प्रावधान है। ऐसे मामलों में दोषी को तीन साल की कैद की सजा या जुर्माना दोनों हो सकते हैं। हाल ही में हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की पुलिस को इस पर रोक लगाने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। अदालत ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड पुलिस को कहा कि प्रशासन नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कार्यवाही करें नहीं तो वह अवमानना के लिए तैयार रहें। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परिकल्पना की गई है और नफरत फैलाने वाले भाषणों को कतई माफ नहीं किया जा सकता।
Advertisement
कुछ महीने पहले हरिद्वार और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में धर्म संसदों का आयोजन कर अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ घृणा भरे बयान दिए गए थे। हरिद्वार की धर्म संसद में तो यती नरसिंहानंद ने अल्पसंख्यकों के जनसंहार तक का आह्वान किया था तब भी अदालत ने कड़ी चेतावनी दी थी। पुलिस को कार्रवाई करने को कहा था, मगर वे लोग बाज नहीं आए। इस तरह के बयानों से सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न होता है एक समुदाय विशेष के प्रति समाज में नफरत का माहौल बनता है। इसमें मुस्लिम समुदाय की नुमाइंदगी करने वाले नेता भी पीछे नहीं है। उनमें से कइयों ने सार्वजनिक मंचों से जहरीले बयान दिए हैं। असदुद्दीन ओवैसी भी कम जहरीले बयान नहीं देते। हिजाब या फिर हिंदुत्ववादी नेताओं के भाषणों की प्रतिक्रिया में उनके बयान देखे जा सकते हैं। कई बार लगता है कि दोनों समुदाय के नेता धार्मिक विद्वेष फैलाना ही अपना कर्तव्य समझते हैं।
कई मामलों में देखा गया कि नफरती भाषण देने वाले खुलेआम घूम रहे हैं। लेकिन उन पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता। कई राजनीतिज्ञ घृणा फैैलाने वाले भाषण देते हैं लेकिन उन्हें कोई सजा नहीं मिलती। कानूनी दांव पेंचों का सहारा लेकर वे जमानत लेकर बैठे रहते हैं। पुलिस और प्रशासन को यह भी देखना होगा कि किसी के खिलाफ कार्रवाई भेदभाव पूर्ण ढंग से नहीं हो। इस मामले में कानून और संविधान का पालन किया जाना बहुत जरूरी है। कानून कहता है कि भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए, लेकिन सभी पार्टियों में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो जहरीले बयानों से समाज में कड़वा माहौल बनाते हैं। अब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे न बैठे, ऐसे मामलों में पुलिस शिकायत का इंतहार न करें, बल्कि खुद संज्ञान लेकर ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही करे। (अब यह राज्य सरकारों और पुलिस की जिम्मेदारी है कि वह बिना किसी भेदभाव के सब पर समान कार्यवाही करें) सोशल मीडिया पर भी अब भाषा और विचारों पर कोई अंकुश नहीं रहा है। धार्मिक मामलों में तो हम बहुत खराब स्थिति में पहुंच चुके हैं। ऐसे में सख्त कार्यवाही की जरूरत है। देखना है कि पुलिस किस तरह से अदालती आदेश का पालन करती है।
Advertisement
Next Article