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बाबा सिद्दीकीः उठते सवाल

04:00 AM Oct 15, 2024 IST | Rahul Kumar Rawat
बाबा सिद्दीकीः उठते सवाल
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महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति गठबन्धन की सदस्य पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार गुट) के नेता बाबा सिद्दीकी की दशहरे वाले दिन मुम्बई में सरेआम की गई हत्या से राज्य की राजनीति में कोहराम मच गया है। मुम्बई महानगर के लिए यह स्थिति वास्तव में शोचनीय है क्योंकि इस शहर की पुलिस की गिनती एक जमाने में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पुलिस बलों में की जाती थी। मगर अब हालत यह हो गई है कि शहर में उस दिन एक बहुचर्चित और लोकप्रिय समझे जाने वाले राजनेता की हत्या कर दी जाती है जिस दिन महानगर में पुलिस चप्पे-चप्पे पर बहुत सावधान थी और बाबा सिद्दीकी को ऊंचे दर्जे की पुलिस सुरक्षा प्राप्त थी। मगर यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि महाराष्ट्र राज्य में नवम्बर महीने तक विधानसभा चुनाव होने हैं अतः कुछ लोग इस हत्या के राजनैतिक आयाम भी देख रहे हैं। बाबा सिद्दीकी अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में थे और उन्होंने अपना राजनैतिक जीवन कांग्रेस पार्टी के साये तले ही शुरू किया था। वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर ही तीन बार दक्षिणी बान्द्रा सीट से विधायक रहे और राज्य की राष्ट्रवादी कांग्रेस व कांग्रेस सरकार में मन्त्री भी रहे। उन्हें बाॅलीवुड सितारों के बीच भी अच्छी-खासी लोकप्रियता प्राप्त थी। उनकी हत्या के जुर्म में दो आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है जिनमें से एक स्वयं को नाबालिग बता रहा है। इन दोनों को अदालत में पेश कर दिया गया है।

प्रारम्भिक विवेचना से जो तथ्य ज्ञात हुए हैं उनके अनुसार श्री सिद्दीकी की हत्या 9 मि.मी. की रिवाल्वर से की गई। यह रिवाल्वर भारत में सिर्फ पुलिस या फौज ही प्रयोग कर सकती है। देश में जिन रिवाल्वरों का लाइसेंस आम नागरिकों को दिया जाता है वे 32 मि.मी. की होती हैं। अतः यह पता लगाना बहुत जरूरी है कि हत्यारों के पास 9 मि.मी. क्षमता की रिवाल्वरें कहां से आईं। कहा जा रहा है कि इस हत्याकांड में लाॅरेंस बिश्नोई गैंग का हाथ है। लाॅरेंस बिश्नोई गुजरात की जेल में कैद है। यह भी रहस्य का विषय है कि जेल में बैठकर यह अपराधी अपना साम्राज्य किस प्रकार चला रहा है। इससे पूर्व बिश्नोई गैंग ने ही पंजाब के गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या का जिम्मा लिया था। सिद्धू मूसेवाला ने भी पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ा था। अतः कोई जासूस इस निष्कर्ष पर पहुंचने का खतरा उठा सकता है कि बिश्नोई गैंग के कुछ न कुछ राजनैतिक तार जुड़े हो सकते हैं परन्तु महाराष्ट्र के सन्दर्भ में सवाल बहुत बड़े हैं। पहला सवाल तो यह है कि इस राज्य के गृहमन्त्री क्या कर रहे हैं? यदि वह अपने सत्ताधारी गुट के ही एक नेता की सुरक्षा नहीं कर सकते तो राज्य की आम जनता उनसे सुरक्षा की क्या उम्मीद रख सकती है। साथ ही राज्य के मुख्यमन्त्री कानून-व्यवस्था का सवाल उठने पर दीवार की तरफ मुंह करके खड़े नहीं हो सकते और हर अपराध पर यह नहीं कह सकते कि अपराधी को सजा दी जाएगी।

यह 21वीं सदी चल रही है और पुलिस आधुनिकतम तकनीक व हथियारों से लैस हो चुकी है। गृहमन्त्री का काम केवल पुलिस अफसरों से सलामी लेने का नहीं होता है बल्कि ऐसी मिसाल कायम करने का होता है जिससे पुलिस अफसरों में भी यह भय बना रहे कि यदि कानून-व्यवस्था में कोताही होती है तो सरकार खुद अपने मन्त्रियों की भी कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटेगी। यदि साठ के दशक में ऐसी घटना होती तो अब तक गृहमन्त्री का इस्तीफा आ गया होता। मगर महाराष्ट्र के गृहमन्त्री तो मुम्बई को अपराधों की महानगरी बनते देखकर भी जांच कराने की ही बात करते हैं। लोकतन्त्र में पहली और आखिरी जिम्मेदारी जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की ही होती है। इन्हें प्रशासन का मुखिया इसीलिए बनाया जाता है कि ये शासन चलाते हुए लोकलाज का ध्यान रखेंगे। इसीलिए समाजवादी चिन्तक डा. राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि लोकतन्त्र में प्रशासन लोकलज्जा से चलता है। बाबा सिद्दीकी की हत्या बताती है कि महाराष्ट्र की सरकार किसी भी तरह इस मामले को रफा- दफा कर इसे चुनावों तक खींचना चाहती है। परन्तु क्या कयामत है कि इस राज्य में शिवाजी महाराज की तीन सौ करोड़ रुपये की लागत से बनी प्रतिमा सिन्धुदुर्ग में सिर्फ तेज हवाओं के चलने से ध्वस्त हो जाती है और बदलापुर में कन्याओं व महिलाओं पर खुलेआम अत्याचार होता है। लोकतन्त्र में ऐसी स्थिति को अराजकता के बहुत निकट माना गया है।

बेशक चुनावों के निकट होने से विपक्षी पार्टियां ऐसी स्थिति का लाभ लेना चाहेंगी मगर सत्तारूढ़ दलों को यह विचार करना होगा कि उनके आचरण से पूरी व्यवस्था में ही गलत परंपराए न पड़ जाएं। महाराष्ट्र की राजनीति पूरे देश के सभी राज्यों से अलग रही है। यहां सामाजिक न्याय और हिन्दू-मुस्लिम एकता के पुरोधाओं ने लोकतन्त्र की परिभाषा लिखी है जिनमें शिवाजी महाराज से लेकर शाहू जी महाराज व महात्मा फुले और डा. अम्बेडकर शामिल हैं। यह सामाजिक नव जागरण की धरती रही है अतः इसकी राजनीति का मिजाज किसी भी तौर पर रूढ़ीवादी व संकीर्णतावादी नहीं रहा है। जहां तक मुम्बई महानगर का सवाल है तो इसके नागरिक तो बहुत शान्तिप्रिय व अनुशासित माने जाते रहे हैं। यहां के टैक्सी वालों को ही कोई भी नवांगन्तुक सबसे अधिक विश्वसनीय मानता था। इस मिजाज के शहर को अपराधों का गढ़ कैसे बनाया जा सकता है।

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Rahul Kumar Rawat

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